Monday, July 25, 2022

Direct and Indirect sources of Information of Interior of Earth (Chapter 3, 11th Geography)

 

पृथ्वी के आंतरिक भाग  (भू गर्भ )की जानकारी के लिए वैज्ञानिक अप्रत्यक्ष स्त्रोतों पर अधिक निर्भर होने के कारण

पृथ्वी की सतह से केन्द्र की दूरी 6370 किलोमीटर है | पृथ्वी की आंतरिक परिस्थितियों के कारण यह संभव नहीं है की पृथ्वी के केन्द्र तक जाकर उसके आंतरिक भाग का निरीक्षण कर सके | अभी तक ज्ञात प्रमाणों से पता चलता है कि अभी तक सतह से 4 किलोमीटर तक ही खादाने खोदी गयी है जो दक्षिणी अफ्रीका में स्थित है | प्रवेधन परियोजनाओं के द्वारा भी अधिकतम 12 किलोमीटर तक ही खुदाई की गई है | जो केन्द्र की गहराई के अनुपात में बहुत ही कम है | ज्वालामुखी उद्गारों से प्राप्त पदार्थ से हम यह स्पष्ट नहीं कर पाते कि यह मैग्मा पृथ्वी के अंदर कितनी गहराई से निकला है | अत: पृथ्वी के आंतरिक भाग की जानकारी के लिए वैज्ञानिक अप्रत्यक्ष स्त्रोतों पर ही अधिक निर्भर है |

भूगर्भ की जानकारी के स्त्रोत

पृथ्वी के आंतरिक भाग की जानकारी के लिए वैज्ञानिक अप्रत्यक्ष स्त्रोतों पर निर्भर है | फिर भी कुछ जानकारी प्रत्यक्ष प्रेक्षणों से भी प्राप्त होती है | जानकारी के इन स्त्रोतों कों हम दो मुख्य भागों में बाँटते है |

1.        प्रत्यक्ष स्त्रोतों

2.        अप्रत्यक्ष स्त्रोतों

भूगर्भ की जानकारी के प्रत्यक्ष स्त्रोत

पृथ्वी के आंतरिक भाग की जानकारी के लिए प्रत्यक्ष स्त्रोतों में निम्न लिखित स्त्रोत शामिल किए जाते है |

1.       धरातलीय चट्टानें

2.       खनन ,

3.       प्रवेधन परियोजनायें

4.       ज्वालामुखी उदगार

इनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है |

धरातलीय चट्टानें

धरातलीय चट्टानें पृथ्वी के भूगर्भ की जानकारी के लिए  सबसे आसानी से प्राप्त होने वाले स्रोतों में है | जिनसे हमें पृथ्वी के अंदर पाए आने वाले खनिजों की रासायनिक तथा भौतिक विशेषताओं का पता चलता है |

खनन

खनन के द्वारा पृथ्वी की सतह पर कुछ गहराई में मौजूद चट्टानों के बारे में हम उनकी संरचना तथा उस स्थान  के  तापमान आदि का पता लगा सकते है | उदाहरण के लिए दक्षिणी अफ्रीका की सोने की खाने 3 से 4 किलोमीटर गहरी है | इससे अधिक गहराई में जाना असंभव है क्योंकि इससे अधिक गहराई में  तापमान बहुत अधिक होता है  |

प्रवेधन परियोजनायें

खनन के अतिरिक्त वैज्ञानिक पृथ्वी की आंतरिक स्थिति कों जानने के लिए दो मुख्य परियोजनायों पर कार्य कर रहे है | जिनमें गहरे समुद्र में प्रवेधन परियोजना (Deep Ocean Drilling Project) तथा समन्वित महासागरीय प्रवेधन परियोजना (Integrated Ocean Drilling Project) मुख्य हैं | उदाहरण के लिए आजतक का सबसे गहरा प्रवेधन (Drill) आर्कटिक महासागर में कोला (Kola) नामक क्षेत्र में किया गया है | इन परियोजनाओं के अतिरिक्त बहुत सी अन्य गहरी परियोजनाओं के अंर्तगत गहराई तक खुदाई करके पृथ्वी की आंतरिक संरचना के बारे में असाधारण जानकारी प्राप्त हुई है |

ज्वालामुखी उद्गार

ज्वालामुखी उद्गार प्रत्यक्ष जानकारी के महत्वपूर्ण स्त्रोत है | जब कभी पर ज्वालामुखी विस्फोट होता है तो उससे निकलने वाले लावा कों प्रयोगशाला में अन्वेषण  के लिए ले जाया जाता है | लेकिन हम यह स्पष्ट नहीं कर पाते कि यह मैग्मा पृथ्वी के अंदर कितनी गहराई से निकला है |

भूगर्भ की जानकारी के अप्रत्यक्ष स्त्रोत

पृथ्वी के आंतरिक भाग की जानकारी के लिए अप्रत्यक्ष स्त्रोतों में निम्नलिखित स्त्रोत शामिल किए जाते है |

   क).            तापमान

  ख).            दबाव

    ग).            घनत्व

   घ).            उल्काएँ

   ङ).            गुरुत्वाकर्षण बल

   च).            चुम्बकीय क्षेत्र

   छ).            भूकम्प संबंधी क्रियाएँ

 

 

इनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है |

घनत्व

पृथ्वी का औसत घनत्व 5.5 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है |   लेकिन हम परतों के अनुसार देखतें है तो पाते है कि भू पर्पटी का घनत्व केवल  2.7 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है | ये परत अवसादी चट्टानों से बनी है | इसके नीचे की परत आग्नेय शैलों से बनी है लेकिन इस परत का घनत्व भी 3 से 3.5 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर तक ही है | इसका अर्थ यह हुआ कि पृथ्वी के आंतरिक भाग अर्थात क्रोड का घनत्व अधिक होना चाहिए |वैज्ञानिक मानते है कि पृथ्वी के बाह्य क्रोड पर घनत्व 5 से बढकर 10 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर हो जाता है  और आंतरिक क्रोड पर यह 11 से 12 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर तक पहुँच जाता है |  जिससे यह स्पष्ट होता है कि पृथ्वी का आंतरिक भाग भारी तथा अधिक घनत्व वाली चट्टानों से बना है |

तापमान

पृथ्वी के विभिन्न स्थानों पर खानें खोदने पर हम देखते है कि जैसे- जैसे हम पृथ्वी के धरातल से केन्द्र की ओर जाते है  वैसे-वैसे तापमान में वृद्धि होती जाती है | वैज्ञानिक मानते है कि सामान्य रूप से प्रत्येक  32 मीटर की गहराई पर 10 C तापमान बढ़ जाता है | इस हिसाब से 50 किलोमीटर की गहराई पर तापमान 1200 0 C से 18000 C होना चाहिए और पृथ्वी के क्रोड में लगभग 2000000C (2 लाख डिग्री सेल्सियस) होना चाहिए | लेकिन जब हम भूकम्पीय तंरगों के व्यवहार कों समझते है तो पता चलता है कि यह सत्य नहीं है |

वैज्ञानिक मानते है कि गहराई बढ़ने के साथ-साथ  तापमान के बढ़ने की दर कम होने लगती है | उनके  अनुसार पहले 100 किलोमीटर की गहराई तक प्रत्येक एक किलोमीटर पर लगभग 12 0 C की वृद्धि होती है | उसके बाद प्रत्येक 300 मीटर की गहराई पर 2 0 C तापमान बढ़ता है | उसके बाद अधिक गहराई में 1 0 C प्रति किलोमीटर के हिसाब से तापमान बढता है | एक गणना के अनुसार वैज्ञानिक मानते है कि आंतरिक क्रोड का तापमान 60000 C होना चाहिए | इतने अधिक तापमान पर पदार्थ का ठोस अवस्था में पाया जाना मुश्किल है | अत : इस भाग में पदार्थ द्रव या गैसीय अवस्था में होना चाहिए | लेकिन अत्यधिक दबाव के कारण वस्तुओं का गलनांक अधिक हो जाता है | जिससे ठोस वस्तुएँ द्रव अवस्था में नहीं होती | अत: पृथ्वी के केन्द्र के निकट क्रोड की चट्टानें अधिक तामपान के रहते हुए भी अधिक दबाव के कारण ठोस होने का गुण रखती है |

 

दबाव

वैज्ञानिकों का मत है कि पृथ्वी के आंतरिक भागों में तामपान तथा घनत्व की तरह दबाव में भी वृद्धि होती है | स्पष्ट है कि पृथ्वी कि भू पर्पटी पर दबाव बहुत ही कम है लेकिन जैसे-जैसे गहराई में जाते है दबाव में वृद्धि होती जाती है | वैज्ञानिकों के अनुसार दबाव बढ़ने पर घनत्व भी बढता है  लेकिन एक सीमा से अधिक नहीं बढ़ सकता | प्रत्येक चट्टान में दबाव के कारण घनत्व में वृद्धि एक सीमा तक ही हो सकती है चाहे दबाव कितना ही बढा दिया जाए | पृथ्वी के क्रोड का घनत्व 11 से 12 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है |  यहाँ से पता चलता है कि पृथ्वी के क्रोड का घनत्व अधिक होने का कारण दबाव ही नहीं है बल्कि इस भाग में पाए जाने वाली चट्टाने अधिक घनत्व वाले पदार्थों से बनी हैं |

उल्काएँ

पृथ्वी के आंतरिक संरचना के बारे में जानने का एक और महत्वपूर्ण स्त्रोत  उल्काएँ है | इसका कारण यह है कि उल्काओं के अध्ययन से पता चला है कि उल्काओं से प्राप्त पदार्थ और उनकी संरचना भी पृथ्वी से  मिलती जुलती है | ये उल्काएँ वैसे ही ठोस पिंड है जिस प्रकार हमारी पृथ्वी है |

गुरुत्वाकर्षण बल

पृथ्वी के धरातल पर विभिन्न अक्षांशों पर गुरुत्वाकर्षण बल एक समान नहीं है | यह बल धुर्वों पर अधिक तथा भूमध्य रेखा पर कम होता है | पृथ्वी के केन्द्र से धुर्वों की दूरी भूमध्य रेखा की अपेक्षा कम होने के कारण ऐसा है | लेकिन हम जानते है कि गुरुत्व बल का मान पदार्थ के द्रव्यमान (भार) के अनुसार भी बदलता है | पृथ्वी के भीतर पदार्थों का असमान वितरण भी इस विभिन्नता कों प्रभावित करता है | इसके अलावा अन्य कारण से भी पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण बल में भिन्नता पायी जाती है |

            पृथ्वी पर पायी जाने वाली गुरुत्वाकर्षण बल की भिन्नता कों गुरुत्व विसंगति कहते है | इसी गुरुत्व विसंगति के करण हमें भू पर्पटी में पदार्थ के द्रव्यमान के वितरण की जानकारी प्राप्त होती है |

चुम्बकीय क्षेत्र

चुम्बकीय सर्वेक्षण से हमें भू पर्पटी में चुम्बकीय पदार्थों के वितरण की जानकारी प्राप्त होती है |  इससे हमें चुम्बकीय गुणों वाले पदार्थों के वितरण  पता चलता है |

भूकम्प संबंधी क्रियाएँ  (भूकम्पीय गतिविधियाँ)

            भूकम्पीय गतिविधियाँ भी पृथ्वी की आंतरिक भाग की जानकारी का मुख्य स्त्रोत है | भूकंप के दौरान विभिन्न प्रकार की भूकम्पीय तरंगें उत्पन्न होतीं है | इन तरंगों के व्यवहार के द्वारा हम पृथ्वी के आंतरिक भाग के बारे में अत्यधिक जानकारी प्राप्त कर सकते है | इन तरंगों के प्रकार तथा विशेषताओं का संक्षिप्त वर्णन निम्न प्रकार है |

   क).            प्राथमिक तरंगे  (P-WAVES)

ये तरंगे ध्वनि तरंगों की तरह  होती है | इन्हें अनुदैर्ध्य तरंगें भी कहते है | क्योंकि इन तरंगों में संचरण की दिशा तथा कणों के दोलन की दिशा एक ही दिशा में होती है | ये सबसे तेज होती है जिसके कारण ये पृथ्वी पर किसी भी स्थान पर सबसे पहले पहुँचती है | ये सभी तरह ठोस, तरल और गैस तीनों माध्यमों में से गुजर सकती हैं |

  ख).            गौण तरंगे (S- WAVES)

ये जल तरंगों की तरह होती है |इन्हें अनुप्रस्थ तरंगें भी कहते है | क्योंकि इन तरंगों में संचरण की दिशा तथा कणों के दोलन की दिशा एक दूसरे समकोण पर होती है | इनकी औसत गति 4 किलोमीटर प्रति सैकेंड होती है | ये तरंगें केवल ठोस माध्यम से ही गुजर सकती है और तरल माध्यम में आने पर लुप्त हो जाती है |

    ग).            धरातलीय तरंगे (L-WAVES)

ये तरंगें लंबी तरंगों के नाम से भी जानी जाती है | ये धरातल तक ही सीमित रहती हैं | इनकी औसत गति 3 किलोमीटर प्रति सैकेंड होती है | ये भी प्राथमिक तरंगों की तरह ठोस, तरल और गैस तीनों माध्यमों में से गुजर सकती हैं |

भूकम्पीय तरंगों का व्यहवार

इन तीनों प्रकार की भूकम्पीय तरंगों  कों भूकंप लेखी यंत्र (सिस्मोग्राफ) के द्वारा रेखांकित किया जाता है | इन तरंगों के व्यवहार की मुख्य बातें निम्न लिखित है |

a.       सभी भूकम्पीय तरंगों का वेग (गति ) अधिक घनत्व वाले पदार्थों में से गुजरने पर बढ़ जाता है और कम घनत्व वाले पदार्थों में से गुजरने पर कम हो जाता है |

b.       केवल प्राथमिक तरंगें ही पृथ्वी के केन्द्रीय भाग से गुजर सकती है | लेकिन इस भाग से गुजरने पर इन तरंगों के वेग में काफी कमी आ जाती है |

c.       गौण तरंगे द्रव पदार्थों में से नहीं गुजर सकती |  केवल ठोस माध्यम से ही गुजर सकती है |

d.       धरातलीय तरंगे (L-WAVES)  धरातल पर ही चलती हैं |

e.       विभिन्न माध्यमों में से गुजरते हुए सभी प्रकार की तरंगें परावर्तित तथा आवर्तित होती है |

भूकम्पीय तरंगों का व्यहवार से हमें पृथ्वी के आंतरिक भाग के बारे में जानकारी मिलती है | जो निम्नलिखित है |

A.     भूकंप के केन्द्र के निकट ये तीनों ही तरंगे पहुँचती है |

B.     पृथ्वी के आंतरिक भागों में ये तरंगें अपना मार्ग बदल लेती है और अवतल मार्ग आपनाती  है | इससे इस बात की पुष्टि होती है कि पृथ्वी के आंतरिक भाग में चट्टानों का घनत्व अधिक है |

C.     प्राथमिक तथा गौण तरंगों कि गति भूकंप के केन्द्र से धरालत के साथ पृथ्वी के क्रोड की सीमा  तक (2900 किलोमीटर तक)  गहराई में तक जाते समय बढती जाती है | लेकिन इसके बाद बाद गौण तरंगें लुप्त हो जाती है और प्राथमिक तरंगों की गति में काफी कमी आती है | इससे यह पता चलता है कि 2900 किलोमीटर तक क्रोड की बाह्य सीमा तक पृथ्वी ठोस अवस्था में होने का अनुमान है | क्रोड का आंतरिक भाग जो 2900 किलोमीटर  से केन्द्र तक जाता है ठोस अवस्था में नहीं बल्कि तरल अवस्था में है |

D.     भूकंप  के केन्द्र से 1050 तक भूकम्पीय तरंगे जाती है | लेकिन उसके बाद  1050  किलोमीटर से 1450 के बीच कोई भी तरंग नहीं जाती | इस क्षेत्र कों भूकम्पीय छाया क्षेत्र कहते है | इस क्षेत्र होना यह बताता है कि भूकम्पीय तरंगे आवर्तित हो जाती है और यह आवर्तन अधिक घनत्व वाले पदार्थों के कारण होता है | जिससे पता पता चलता है कि पृथ्वी का केन्द्रीय भाग अधिक घनत्व वाले पदार्थों का बना है | इस भाग में लोहा तथा निकिल जैसे भारी पदार्थों की अधिकता है |

Saturday, July 23, 2022

Tuesday, July 12, 2022

The Origin and Evolution of the Earth (Lesson 2 class 11th Subject Geography )

 

कक्षा 11वीं

पुस्तक : भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत

अध्याय 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास (The Origin and Evolution of the Earth)

 

पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बन्धित आरम्भिक सिद्धांत या परिकल्पनाएँ

पृथ्वी की उत्पत्ति के संबंध में विभिन्न दार्शनिकों व वैज्ञानिकों ने अनेक परिकल्पनाएँ प्रस्तुत की | पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बन्धित प्रारम्भिक परिकल्पनाओं कों मुख्य रूप से दो भागों में बाँटा जाता है |

1.       अद्वैतवादी परिकल्पनाएँ

2.       द्वैतवादी परिकल्पनाएँ

इन आधारों पर प्रमुख परिकल्पनाओं का संक्षिप्त वर्णन निम्लिखित है |

अद्वैतवादी परिकल्पनाएँ

  क).            इमैनुअल कांट की गैसीय राशि (वायव्य राशि)परिकल्पना

इमैनुएअल कांट जर्मनी के प्रसिद्ध दार्शनिक थे | उन्होंने सन 1755 में पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बन्धित गैसीय परिकल्पना प्रस्तुत की थी | उनके अनुसार प्रारम्भ में आद्य पदार्थ गैसीय, ठंडा तथा समान से कणों के  रूप में बिखरा हुआ था | कांट के अनुसार यह गैसीय पदार्थ संगठित  होने लगा | कांट के अनुसार इसी संगठित गैसीय पदार्थ से पृथ्वी तथा सौर मंडल के अन्य ग्रहों की उत्पत्ति हुई है |

 ख).            लाप्लास की निहारिका परिकल्पना

लाप्लास फ्रांस के एक महान गणितज्ञ थे | उन्होंने इमैनुएअल कांट की परिकल्पना कों संशोधित करके प्रस्तुत किया | इस परिकल्पना के अनुसार आद्य पदार्थ बहुत ही गर्म था और मंद गति से बादल के रूप में घूर्णन कर रहा था इसी से ही ग्रहों का निर्माण हुआ | इस गर्म और मंद गति से घूमते हुए बादल कों लाप्लास ने निहारिका कहा था | इसलिए इस परिकल्पना कों निहारिका परिकल्पना के रूप जाना जाता है |

द्वैतवादी परिकल्पनाएँ

  क).            चेम्बरलिन तथा मोल्टन की ग्रहाणु परिकल्पना

1900 ई॰ में चेम्बरलिन तथा मोल्टन ने ग्रहाणु परिकल्पना प्रस्तुत की |इस परिकल्पना के अनुसार ब्रहमांड में एक अन्य भ्रमणशील तारा सूर्य के निकट से गुजरा |इस भ्रमणशील तारे के गुरुत्वाकर्षण के कारण सूर्य के तल से सिगार के आकार के रूप में कुछ पदार्थ बाहर निकल कर अलग हो गया | जब भ्रमणशीलतारा सूर्य से दूर चला गया तो सूर्य सतह से बहार निकला हुआ यह पदार्थ सूर्य के चारों ओर घूमने लगा और यही धीरे-धीरे संघनित होकर ग्रहों के रूप में परिवर्तित हो गया | इस परिकल्पना का समर्थन जेम्स जींस और सर हैराल्ड जैफरी ने भी किया है |

 ख).            जेम्स जींस और सर हैराल्ड जैफरी  की ज्वारीय परिकल्पना 

पहले तो इन विद्वानों ने चेम्बरलिन तथा मोल्टन की ग्राहाणु परिकल्पना का समर्थन किया लेकिन बाद में एक तर्क देते हुए कहा की सूर्य के साथ एक भ्रमणशील तारे की बात हम मानते है | इस परिकल्पना के अनुसार सूर्य एक गैस का पिंड तथा एक अन्य भ्रमणशील तारा किसी कारण सूर्य के पास आया और अपनी गुरुत्वाकर्षण बाल के द्वारा सूर्य के निकट आया और सूर्य के गैसीय पदार्थ कों अपनी ओर आकृषित करने लगा | यह पदार्थ फिलामेंट के रूप में बहार निकला और सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने लगा |यही फिलामेंट या पदार्थ सौरमंडल के ग्रहों का कारण बना | सभी ग्रहों कि तरह पृथ्वी की उत्पत्ति हुई |

कुछ समय बाद इस सिद्धांत के अंतर्गत सूर्य के साथ-साथी तारे की बात कही थी दो तारे होने के कारण ही  लोग इसे दैतारक सिद्धांत (Binary theory) कहते है |

   ग).            ऑटो शिमिड और कार्ल वाइजास्कर की निहारिका परिकल्पना

1950 ई॰ में रूस के ऑटो शिमिड (Otto Shimid) और जर्मनी के कार्ल वाइजास्कर (Carl Weizaskar) ने अपने –अपने तरीके से निहारिका परिकल्पना में सुधार किए | ऑटो शिमिड ने अपनी धूल और गैसीय परिकल्पना में ब्रह्माण्ड में बहुत अधिक धूल और गैस होने की बात कही जबकि कार्ल वाइजास्कर (Carl Weizaskar) ने सूर्य की उत्पत्ति कॉस्मिक धूल (अंतरिक्ष की धूल) से मानी है |

धूल और गैस के कणों में घर्षण तथा टकराव (collision) के कारण एक चपटी तश्तरी के रूप में बादल का निर्माण हुआ और अभिवृद्धि (Accretion) प्रक्रम द्वारा ही ग्रहों का निर्माण हुआ | इसी परिकल्पना के द्वारा ग्रहों या पृथ्वी की उत्पत्ति संबंधी समस्याएँ सुलझने लगी | जैसे सूर्य और ग्रहों के बिच कोणीय संवेग, विभिन्न ग्रहों की संरचना में अन्तर के कारण, ग्रहों की गति में अन्तर सूर्य और ग्रहों की वर्मान दूरी आदि सभी समस्याओं का हल निकाल सकते है |

ब्रह्मांड की से उत्पत्ति सम्बन्धित आधुनिक सिद्धांत (बिग बैंग सिद्धांत)

ब्रह्मांड की से उत्पत्ति सम्बन्धित आधुनिक सिद्धांतों में से सर्वमान्य सिद्धांत बिग बैंग सिद्धांत(Big Bang Theory) है | इस सिद्धांत कों विस्तारित ब्रह्मांड परिकल्पना (Expanding Universe Hypothesis) भी कहते है | ब्रह्माण्ड के विस्तार का अर्थ है आकाशगंगाओं के बीच की दूरी बढ़ना | इस परिकल्पना कों 1920 ई॰ में एडविन हब्बल (Edwin Hubble) ने दिया था |उन्होंने प्रमाण दिए थे की ब्रह्माण्ड का विस्तार हो रहा है | उनके अनुसार आकाशगंगाओं के बीच की दूरी बढ़ रही है |

ब्रह्माण्ड के विस्तारित होने की प्रक्रिया कों हम एक गुब्बारे की सहायता से समझ सकते है | यदि एक गुब्बारे पर कुछ निशान कर दिए जाए और फिर उसमें हवा भरी जाए | जैसे जैसे गुब्बारा फुलता जायेगा तो गुब्बारे पर लगाए गए निशान एक दूसरे से दूर होते जायेंगे | ठीक इसी तरह हमारा ब्रह्माण्ड में आकाशगंगाओं के बीच की दूरी बढ़ रही है | जो बताता है की ब्रह्माण्ड भी लगातार बढ़ रहा है |

बिग बैंग सिद्धांत के अनुसार ब्रह्मांड का विस्तार निम्नलिखित तीन अवस्थाओं में हुआ है |

1.       आरम्भ में वे सभी पदार्थ, जिनसे ब्रह्माण्ड बना है वे बहुत ही छोटे गोलक (एकाकी परमाणु) के रूप में एक ही स्थान पर स्थित थे | जिसका आयतन अत्यधिक सूक्ष्म एवं तापमान तथा घनत्व अनंत था |

2.       दूसरी अवस्था के अंतर्गत इस एकाकी परमाणु में भीषण विस्फोट हुआ जिसे हम बिग बैंग (महा विस्फोट) कहते है | वैज्ञानिकों का विश्वास है कि बिग बैंग की यह घटना आज से 13.7 अरब वर्षों पहले हुई थी | इस विस्फोट की प्रक्रिया से एकाकी परमाणु में वृहत विस्तार हुआ | इस विस्तार के कारण कुछ उर्जा पदार्थ में बदल गयी | विस्फोट के बाद एक सेकेंड बहुत छोटे हिस्से के अंतर्गत ही उस एकाकी परमाणु का वृहत विस्तार हुआ | इसके बाद इस विस्तार की गति धीमी पड़ गयी | वैज्ञानिकों के अनुसार बिग बैंग (महा विस्फोट) होने के तीन मिनट के अंतर्गत ही पहले परमाणु का निर्माण हुआ | ये विस्फोट इतना विशाल था कि आज भी ब्रह्माण्ड का विस्तार जारी है |

3.       बिग बैंग (महा विस्फोट) से तीन लाख वर्षों के दौरान तापमान 45000 केल्विन कम हो गया | जिससे और अधिक परमाणवीय पदार्थ का निर्माण हुआ | इस अवस्था में ब्रह्मांड पारदर्शी हो गया |

ब्रह्मांड के विस्तार संबंधी अनेक प्रमाणों के मिलने मिलने पर वैज्ञानिक समुदाय अब ब्रह्मांड की से उत्पत्ति सम्बन्धित आधुनिक सिद्धांतों में से सर्वमान्य सिद्धांत बिग बैंग सिद्धांत(Big Bang Theory) या विस्तारित ब्रह्मांड परिकल्पना (Expanding Universe Hypothesis) के पक्ष में है |

ब्रह्माण्ड से सम्बन्धित स्थिर अवस्था संकल्पना

            ब्रह्मांड की उत्पत्ति से सम्बन्धित बिग बैंग सिद्धांत से होयल  (Hoyle) नामक  वैज्ञानिक सहमत नहीं थे इसलिए उन्होंने ब्रह्मांड से सम्बन्धित स्थिर अवस्था संकल्पना(Steady State Concept) प्रस्तुत की | इस परिकल्पना के अनुसार ब्रह्मांड किसी भी समय में एक ही जैसा रहा है |

आकाशगंगा

एक आकाशगंगा असंख्य तारों का समूह होता है | आकाशगंगाओं का विस्तार बहुत अधिक होता है| आकाशगंगाओं की दूरी हजार प्रकाशवर्षों  में मापी जाती है | एक अकेली आकाशगंगा का व्यास 80 हजार से 1 लाख 50 हजार प्रकाशवर्ष होता है | 

आकाशगंगा का निर्माण

आकाशगंगा के निर्माण की शुरूआत हाइड्रोजन गैस से बने विशाल बादल के संचयन से हुई | प्राम्भिक ब्रह्मांड में ऊर्जा और पदार्थ का वितरण समान नहीं था | इसी कारण पदार्थों का घनत्व भी भिन्न–भिन्न हो गया | घनत्व में आरम्भिक भिन्नता के कारण गुरुत्वाकर्षण बल में भिन्नता आई | इसके परिणाम स्वरूप अधिक गुरुत्वाकर्षण वाले पदार्थों के आस पास एकत्रण होता गया | इस एकत्रण के कारण ही आकाशगंगाओं का निर्माण हुआ |

प्रकाशवर्ष

एक वर्ष में प्रकाश जितनी दूरी तय करता है उस दूरी कों प्रकाश वर्ष कहते है | प्रकाश वर्ष दूरी का मात्रक है |

प्रकाश की गति लगभग 3 लाख किलोमीटर प्रति सैकेंड है | इस हिसाब से गणना करे तो हम देखते है की प्रकाश एक वर्ष में 9.461 x1012  किलोमीटर के बराबर होती है |  पृथ्वी तथा सूर्य के बीच की दूरी 14 करोड 95लाख 98 हजार किलोमीटर (14 करोड 96 लाख किलोमीटर) | प्रकाश इस दूरी कों केवल 8.311 मिनट में तय कर लेता है|

तारों का निर्माण

अधिकतर वैज्ञानिक ये मानते है कि प्राम्भिक ब्रह्मांड में ऊर्जा और पदार्थ का वितरण समान नहीं था |इसी कारण पदार्थों का घनत्व भी भिन्न–भिन्न हो गया | घनत्व में आरम्भिक भिन्नता के कारण गुरुत्वाकर्षण बल में भिन्नता आई | इसके परिणाम स्वरूप अधिक गुरुत्वाकर्षण वाले पदार्थों के आस पास  एकत्रण होता गया | इस एकत्रण के कारण ही आकाशगंगाओं का निर्माण हुआ | एक आकाशगंगा असंख्य तारों का समूह होता है | आकाशगंगा के निर्माण की शुरूआत हाइड्रोजन गैस से बने विशाल बादल के संचयन से हुई | हाइड्रोजन गैस के इस बादल कों निहारिका (नेबुला)  कहते है |  हाइड्रोजन गैस के लगातार संचयन से निहारिका बढती चली गयी और बढती हुई निहारिका में गैस के अलग –अलग झुण्ड बन गए | ये झुण्ड बढते-बढते घने गैसीय पिंड बने, ये गैस के पिंड सिकुड़ते चले गए और इनका घनत्व इतना अधिक हो गया कि इनमें संयलन प्रक्रिया होने लगी | जिनसे तारों का निर्माण प्रारम्भ हुआ | वैज्ञानिक मानते है की तारों का निर्माण लगभग 5 से 6 अरब वर्षों पहले होना शुरू हुआ था |

ग्रहों का निर्माण

ग्रहों का निर्माण भी उन्हीं निहारिकाओं से हुआ जिनसे तारों का निर्माण हुआ है | ग्रहों का निर्माण की वैज्ञानिकों ने तीन अवस्थाएँ मानी है| जो निम्नलिखित है |

1.       प्रथम अवस्था में निहारिका के अंदर तारे गैस के गुच्छित झुण्ड के रूप में होते है | इन गुच्छित झुण्डों में गुरुत्वाकर्षण होने के कारण निहारिका में क्रोड का निर्माण हुआ | इस क्रोड के चारों ओर गैस और धूल कणों की घूमती हुई तश्तरी विकसित हुई |

2.       दूसरी अवस्था में गैसीय बादल का संघनन आरम्भ हुआ और क्रोड कों चारों ओर से ढकने वाले पदार्थ छोटे गोले के रूप में विकसित हुए | पदार्थों के अणुओं में होने वाली संसंजन प्रक्रिया हुई |जिसमें अणुओं में पारस्परिक आकर्षण होने लगता है  | इस प्रक्रिया के परिणाम स्वरूप ये छोटे गोले ग्रहाणुओं के रूप में विकसित हुए | छोटे पिंडों की अधिक संख्या ही ग्रहाणु कहलाते है | ग्रहाणुओं में संघट्टन (collision)  की प्रक्रिया के द्वारा ग्रहाणु बड़े-बड़े पिंड बन गए और गुरुत्वाकर्षण के कारण आपस में जुड गए |

3.       तृतीय तथा अंतिम अवस्था में ग्रहाणुओं  के सहवर्धित होने पर कुछ बड़े पिंडों का निर्माण हुआ जिन्हें ग्रह कहते है |

चंद्रमा (पृथ्वी का प्राकृतिक उपग्रह) की उत्पत्ति संबंधी विचार

पृथ्वी का एक ही प्राकृतिक उपग्रह है जिसे हम चंद्रमा के नाम से जानते है | पृथ्वी की उत्पत्ति की तरह ही चंद्रमा की उत्पत्ति संबंधी कई विचार प्रस्तुत किए गए है |

  सर जार्ज डार्विन ने सन्1838 में चंद्रमा की उत्पत्ति से सम्बन्धित मत प्रस्तुत किया कि प्रारम्भ में पृथ्वी और चंद्रमा एक ही पिंड के रूप में तेजी से घूम रहे थे | यह पूरा पिंड डंबल (ऐसी वस्तु जो किनारों से मोटी तथा बीच से पतली होती है ) की आकृति में बदल गया और अंत में टूट गया |  उन्होंने यह भी बताया कि चंद्रमा का मिर्माण उसी पदार्थ से हुआ है जो प्रशांत महासागर की जगह से निकला है | अर्थात चंद्रमा के बनने से जो गर्त बना आज वह प्रशांत महासागर के रूप में मौजूद है |

वैज्ञानिकों में इसकी उत्पत्ति के संबंध में दिए गए विचारों में मतभेद है | अर्थात आधुनिक समय के वैज्ञानिक किसी भी विचारधारा कों नहीं मानते |

            आधुनिक वैज्ञानिकों का मत है की चंद्रमा की उत्पत्ति एक बड़े टकराव (Giant impact)  से हुई जिसे द बिग स्प्लैट (The Big Splat) कहा जाता है | वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है कि पृथ्वी के बनने के कुछ समय बाद ही मंगल ग्रह के 1 से 3 गुना आकार का पिंड पृथ्वी से टकराया | इस टकराव से अलग हुआ पृथ्वी का यह पदार्थ पृथ्वी की कक्षा में ही घूमने लगा | यही वर्तमान समय में चंद्रमा है | एक अनुमान के अनुसार चंद्रमा की उत्पत्ति आज से लगभग4.44 अरब वर्षों पहले हुई | 

सौरमंडल

 सौर मंडल के सदस्य

सूर्य एक तारा है इसके परिवार में स्वयं सूर्य, उसके आठ ग्रह , इन ग्रहों के 63 उपग्रह तथा लाखों छोटे पिंड जिन्हें क्षुद्र ग्रह कहते शामिल है |  इस सौर परिवार कों ही सौर मंडल कहते है |

सौर मंडल का निर्माण

सौर मंडल का निर्माण निहारिका से माना जाता है | निहारिका के ध्वस्त होने और क्रोड बनने की शुरुआत लगभग 5 से  5.6 अरब वर्षों पहले हुई जिससे एक तारे का निर्माण हुआ जिसे हम सूर्य कहते है | इसके बाद आज से लगभग 4.6 से  4.56 अरब वर्षों पहले ग्रहों का निर्माण हुआ | ये माना जाता है की सभी ग्रहों का निर्माण लगभग 4.6 अरब वर्षों पहले एक ही समय में हुआ है | जो छोटे पिंड स्वतंत्र रह गए वे क्षुद्र ग्रहों के रूप में जाने जाते है |

सूर्य से दूरी, आकार तथा संगठन करने वाले पदार्थ के आधार पर ग्रहों के प्रकार   

या

आतंरिक (भीतरी) ग्रह और बाह्य ग्रह में अन्तर   

या   

पार्थिव और जोवियन ग्रह में अन्तर

 सूर्य से दूरी, आकार तथा संगठन करने वाले पदार्थ के आधार पर ग्रहों के प्रकार हम ग्रहों कों विभाजित कर सकते है |

इन आधारों पर ग्रह दो हिस्सों में बाँटे गए है | आतंरिक (भीतरी) ग्रह तथा बाह्य ग्रह

  क).            आतंरिक (भीतरी) ग्रह

सूर्य और क्षुद्र ग्रहों की पट्टी के बीच  स्थित चार ग्रह आंतरिक या भीतरी ग्रह कहलाते है | ये बुध, शुक्र, पृथ्वी तथा मंगल है | इन ग्रहों कों पार्थिव ग्रह भी कहते है | क्योंकि ये ग्रह पृथ्वी की ही  तरह की शैलों और धातुओं से बने है | इन ग्रहों का घनत्व अधिक है | ये आकार में छोटे है |

 ख).            बाह्य ग्रह

क्षुद्र ग्रहों की पट्टी के बाद सूर्य से दूर स्थित चार ग्रह बाह्य ग्रह कहलाते है | ये बृहस्पति, शनि, यूरेनस (अरुण) तथा नेप्च्यून (वरुण) है | इन ग्रहों कों जोवियन ग्रह भी कहते है | जोवियन का अर्थ है बृहस्पति की तरह | अत: ये ग्रह बृहस्पति की तरह ही विशाल आकार वाले है | क्योंकि ये ग्रह हाइड्रोजन तथा हीलियम जैसी गैसों के बने हुए है इसलिए इनका घनत्व कम है | इनमें से अधिकतर ग्रह पार्थिव ग्रहों से विशाल है | 

भीतरी ग्रह पार्थिव होने के कारण  या  पार्थिव ग्रह चट्टानी होने के कारण

भीतरी ग्रह पार्थिव या चट्टानी है जिसके निम्न लिखित कारण है |

A.     भीतरी ग्रह सूर्य के निकट स्थित है | अधिक तापमान के कारण  गैसें इन ग्रहों पर घनीभूत और संगठित नहीं हो सकी | 

B.     सौर वायु सूर्य के अधिक निकट ज्यादा शक्तिशाली थी | जिससे यह सौर वायु  इन ग्रहों  से अधिक मात्रा में कारण इन ग्रहों का घनत्व अधिक है |

C.     ये आकार में छोटे है | अत: इन ग्रहों की गुरुत्वाकर्षण शक्ति कम होने के कारण गैसें इन ग्रहों पर रुक ना सकी |

प्लूटों एक बौना ग्रह

पहले सौरमंडल के नौ ग्रह थे | क्योंकि प्लूटो भी इनमें शामिल था | लेकिन 29 जुलाई 2005कों एक नए ग्रह की खोज की गई जिसे 2003UIB313 नाम दिया गया | यह आकार में प्लूटो के समान था | इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय खगोलिकी संगठन ने एक नई परिभाषा 24 अगस्त 2006 कों दी | इस नई परिभाषा के कारण प्लूटो और 2003UIB313  कों बौने ग्रह की संज्ञा दी गयी | इसके बाद से सौर मंडल में आठ ही ग्रह है |  जो बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस (अरुण) तथा नेप्च्यून (वरुण) है |

 पृथ्वी का उद्भव तथा विकास 

पृथ्वी का निर्माण उसी निहारिका से हुआ जिनसे सूर्य तथा अन्य ग्रहों का निर्माण हुआ है |  प्रारम्भिक काल में पृथ्वी का स्वरूप किस तरह का था और पिछले लगभग 460 करोड वर्षों (4.6 अरब वर्षों) के दौरान उसके स्वरूप में परिवर्तन कों हम पृथ्वी के विकास के रूप में देखते है |

                                   पृथ्वी के विकास संबंधी अवस्थाओं कों समझने के लिए हमें प्रारम्भिक काल में पृथ्वी का स्वरूप से लेकर स्थल मंडल का विकास , वायुमंडल व जल मंडल का विकास और पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति कों समझना होगा | जो निम्न प्रकार से है |

प्रारम्भिक काल में पृथ्वी का स्वरूप

                                   प्रारम्भ में पृथ्वी एक चट्टानी, गर्म और वीरान ग्रह के रूप में थी | इसका वायुमंडल हाइड्रोजन और हीलियम गैसों से बना था | जिसके कारण वायुमंडल बहुत विरल था | यह आज के वायुमंडल से बहुत भिन्न था |

पृथ्वी पर स्थल मंडल का विकास (पृथ्वी की परतदार संरचना का विकास)

                                   उल्काओं के अध्ययन से पता चलता है कि ग्रहाणु व दूसरे  खगोलीय पिंड घने तथा हल्के दोनों ही प्रकार के पदार्थों के मिश्रण से बने है और बहुत से ग्रहाणुओं के इकट्ठा होने पर उनका निर्माण हुआ है इसी प्रकार    पृथ्वी का निर्माण भी हुआ है |

                                   पृथ्वी की उत्पत्ति के दौरान या उत्पत्ति के तुरंत बाद पृथ्वी पिंड के रूप में बनी थी | वह पिंड गुरुत्वाकर्षण बल के कारण इकट्ठा हो रहा था | इस इकट्ठा होने की प्रक्रिया से विबिन्न प्रकार के पदार्थ प्रभावित हुए | जिससे अत्यधिक ऊष्मा उत्पन्न हुई | ऊष्मा निकलने की प्रक्रिया के कारण तापमान बढने लगा | तापमान बढने के कारण विभिन्न पदार्थ पिघलने लगे | पदार्थों के पिघलने से पृथ्वीआंशिक रूप से द्रव अवस्था में आ गई |

                                   द्रव अवस्था में हुई पृथ्वी के अंदर तापमान की अधिकता से हल्के (कम घनत्व वाले पदार्थ) और भारी (अधिक घनत्व वाले पदार्थ) के पदार्थ अलग-अलग होने लगे और भारी पदार्थ जैसे लोहा पृथ्वी के केन्द्र में चले गए और हल्के पदार्थ ऊपर की ओर या पृथ्वी की सतह पर आ गए | जैसे जैसे पृथ्वी ठंडी होने लगी ये अलग हुए पदार्थ भी ठंडे होने लगे और ठोस रूप में परिवर्तित हो गए |  सबसे ऊपर भू-पृष्ठ या पृथ्वी की ऊपरी सतह का निर्माण हुआ |

                                   चंद्रमा की उत्पत्ति के दौरान भीषण संघट्ट (बड़ा टकराव) होने के कारण पृथ्वी का तापमान फिर से बढ़ने लगा और बहुत अधिक ऊर्जा उत्पन्न हुई | यह पृथ्वी का परतों के रूप में विभेदन का दूसरा चरण था | इस चरण में हुए विभेदन से पृथ्वी के पदार्थ अनेक परतों में अलग हो गए |  वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी के धरातल से  क्रोड तक कई परतें पाई जाती है |

1)      पर्पटी या क्रस्ट (Crust)

2)      प्रवार या मेंटल (Mental),

3)      बाह्य क्रोड (Outer Core)

4)      आंतरिक क्रोड( Inner Core)  

पृथ्वी के ऊपरी भाग से आंतरिक भाग तक जाने पर पदार्थों का घनत्व, तापमान और दबाव  बढता जाता है |

विभेदन प्रक्रिया

अधिक तापमान के कारण पृथ्वी का द्रव अवस्था में होने पर हल्के (कम घनत्व वाले) और भारी (अधिक घनत्व वाले) के पदार्थों के अलग-अलग होने की प्रक्रिया कों विभेदन (Differentiation)  प्रक्रिया कहते है |

वायुमंडल और जल मंडल का विकास

पृथ्वी के वायुमंडल और जल मंडल के विकास  कों निम्न प्रकार से समझ सकते है |

पृथ्वी के वायुमंडल का विकास

पृथ्वी के वर्तमान वायुमंडल के  विकास की तीन अवस्थाएँ मानी जाती है |

1.       पहली अवस्था में आदिकालिक वायुमंडलीय गैसों का ह्रास

                                   प्राम्भिक वायुमंडल में हाइड्रोजन तथा हीलियम गैसों की अधिकता थी | सौर पवन के कारण यह वायुमंडल पृथ्वी से दूर हो गया | ये आदिकालिक वायुमंडल पृथ्वी के साथ-साथ दूसरे पार्थिव ग्रहों से भी इसी कारण दूर हुआ | आदिकालिक वायुमंडल इस तरह सौर पवन के कारण दूर धकेलना या समाप्त हो गया | वायुमंडल के विकास की यह पहली अवस्था थी |

2.       द्वितीय अवस्था में पृथ्वी के भीतर से  गैसें, भाप तथा जलवाष्प निकलना और वायुमंडल का  विकास

                                   द्वितीय अवस्था में पृथ्वी के ठंडा होने और विभेदन प्रक्रिया के दौरान पृथ्वी के अंदरूनी भाग से बहुत सी गैसें, भाप तथा जलवाष्प निकली जिसने वायुमंडल के विकास में सहयोग किया | वह प्रक्रिया जिससे पृथ्वी के भीतरी भाग से गैसें धरती पर आई उसे गैस उत्सर्जन (Degassing) कहते है | इसी गैस उत्सर्जन की प्रक्रिया से वर्तमान वायुमंडल का निर्माण शुरू हुआ|  आरम्भ में जलवाष्प, नाइट्रोजन, कार्बन डाई ऑक्साइड, मीथेन और अमोनिया जैसी गैसें अधिक मात्रा में थी और स्वतंत्र रूप में ऑक्सीजन बहुत कम थी |

3.       तीसरी एवं अंतिम अवस्था में जैवमंडल में होने वाली प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा वायुमंडल में संशोधन

                                   इस अवस्था में जैवमंडल में जीवों के द्वारा प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया होने लगी |  प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया से ऑक्सीजन की बढोतरी होने लगी | पहले क्योंकि महासागरों में ही जीवन था इसलिए ऑक्सीजन की बढोतरी महासागरों की देन है | धीरे- धीरे महासागर ऑक्सीजन से संतृप्त हो गए और ऑक्सीजन वायुमंडल में फैलने लगी | यह अनुमान लगाया जाता है की वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा 200 करोड़ वर्ष पूर्व आज के समय हे ज हिसाब से पूर्ण हो गयी थी अर्थात वायुमंडल में लगभग 21 प्रतिशत हो गयी थी |

पृथ्वी के जलमंडल का विकास

                                   पृथ्वी में ज्वालामुखी विस्फोट के कारण जलवाष्प और गैसें बहार निकलने लगी जिससे वायुमंडल में जलवाष्प और गैसें बढ़ने लगी | पृथ्वी के ठंडा होने के साथ-साथ वायुमंडल भी ठंडा होने लगा और इससे जलवाष्प का संघनन शुरू हो गया | वर्षा के होने पर वायुमंडल में उपस्थित कार्बन डाई ऑक्साइड पानी में घुल गयी | जिससे वायुमंडल के तापमान में गिरावट आई |  तापमान में गिरावट आने से संघनन प्रक्रिया में अधिकता हुई जिससे अत्यधिक वर्षा हुई | पृथ्वी के धरातल पर बने गर्तों (गड्डों) में वर्षा का जल  इकट्ठा होने लगा | इन गड्डों के भरने से महासागर बने | माना जाता है कि महासागर पृथ्वी की उत्पत्ति से लगभग 50 करोड़ सालों के दौरान बने | इससे पता चलता है कि महासागर आज से लगभग 400 करोड़ साल पहले बने है |

                                   महासागरों में ही लगभग 380 करोड़ वर्षों पहले जीवन की शुरुआत हुई | प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया लगभग 250 से 300 करोड़ वर्षों पहले विकसित हुई | जिससे महासागर में ऑक्सीजन की बढोतरी होने लगी | यही ऑक्सीजन धीरे धीरे वायुमंडल में फ़ैल गयी और वायुमंडल में पूर्ण रूप से व्याप्त हो गयी |

पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति

पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति पृथ्वी के निर्माण के अंतिम चरण में हुई | इसका कारण यह है कि पृथ्वी का आदिकालिक वायुमंडल जीवन के विकास के लिए अनुकूल नहीं था | वायुमंडल और जल मंडल के विकास के बाद ही पृथ्वी पर जीवन संभव हुआ है |

                                   आधुनिक वैज्ञानिक मानते है कि जीवन की उत्पत्ति एक रासायनिक प्रतिक्रिया के फलस्वरूप हुई |  इस रासायनिक प्रतिक्रिया में सबसे पहले   जटिल जैव (कार्बनिक) अणु बने |उसके बाद इन अणुओं का समूहन हुआ | यह समूहन ऐसा था जो अपने आप का दोहराता था अर्थात बार बार होता था | इस समूहन की विशेषता यह थी कि यह निर्जीव तत्व कों जीवित पदार्थों में परिवर्तित कर सका | पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के प्रमाण पृथ्वी पर पायी जाने वाले अलग-अलग समय की चट्टानों में पाए जाने वाले जीवाश्मों के रूप में मिलते है | माना जाता है कि महासागरों में आज से लगभग 380 करोड़ वर्षों पहले जीवन की शुरुआत हुई | 300 करोड़ साल पुरानी भूगर्भिक शैलों में पाई जाने वाली सूक्ष्मदर्शी संरचना  आज की शैवाल (Blue Green Algae) से मिलती जुलती है | जिससे अनुमान लगाया जाता है कि पृथ्वी पर सबसे पहला  जीव शैवाल ही थे | यह एक कोशिकीय जीव था | समय के साथ-साथ एक कोशिकीय शैवाल से आज के मनुष्य का विकास विभिन्न कालों में हुआ |

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

अभ्यास के प्रश्न उत्तर

प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सी संख्या पृथ्वी की आयु कों प्रदर्शित करती है ?

1)      46 लाख वर्ष

2)      4600 करोड वर्ष

3)      13.7 अरब वर्ष

4)      13.7 खरब वर्ष

उत्तर: 4600 करोड वर्ष (4.6 अरब वर्ष)

प्रश्न: निम्न में से कौन सी अवधि सबसे लंबी है ?

1)      इओन(Eons)

2)      महाकल्प(Era)

3)      कल्प(Period)

4)      युग(Epoch)

उत्तर: इओन(Eons)

प्रश्न: निम्न में से कौन-सा तत्व वर्तमान वायुमंडल के निर्माण व संशोधन में सहायक नहीं है ?

1)      सौर पवन

2)      गैस उत्सर्जन

3)      विभेदन

4)      प्रकाश संश्लेषण

उत्तर: प्रकाश संश्लेषण

प्रश्न: निम्नलिखित में से भीतरी ग्रह कौन-से है ?

1)      पृथ्वी और सूर्य के बीच पाए जाने वाले ग्रह

2)      सूर्य और क्षुद्र ग्रहों की पट्टी के बीच पाए जाने वाले ग्रह

3)      वे ग्रह जो गैसीय हैं |

4)      बिना उपग्रह वाले ग्रह

उत्तर: सूर्य और क्षुद्र ग्रहों की पट्टी के बीच पाए जाने वाले ग्रह

प्रश्न: पृथ्वी पर जीवन निम्नलिखित में से लगभग कितने वर्षों पहले आरम्भ हुआ ?

1)      1अरब 37 करोड वर्ष पहले

2)      460 करोड वर्ष पहले

3)      38 लाख वर्ष पहले  

4)      3 अरब 80 करोड वर्ष पहले

उत्तर: 460 करोड वर्ष पहले

प्रश्न: पार्थिव ग्रह चट्टानी क्यों है ?  

उत्तर: भीतरी या पार्थिव ग्रह चट्टानी है जिसके निम्न लिखित कारण है |

A.     भीतरी ग्रह सूर्य के निकट स्थित है | अधिक तापमान के कारण  गैसें इन ग्रहों पर घनीभूत और संगठित नहीं हो सकी | 

B.     सौर वायु सूर्य के अधिक निकट ज्यादा शक्तिशाली थी | जिससे यह सौर वायु  इन ग्रहों  से अधिक मात्रा में कारण इन ग्रहों का घनत्व अधिक है |

C.     ये आकार में छोटे है | अत: इन ग्रहों की गुरुत्वाकर्षण शक्ति कम होने के कारण गैसें इन ग्रहों पर रुक ना सकी |

प्रश्न: पृथ्वी की उत्पत्ति संबंधी दिए गए तर्कों  के आधार पर निम्न वैज्ञानिकों में मूलभूत अन्तर बताएँ|

(क)कांट व लाप्लेस  (ख)चेम्बरलिन व मोल्टन

अथवा

पृथ्वी की उत्पत्ति संबंधी कांट व लाप्लेस  की निहारिका परिकल्पना और चेम्बरलिन व मोल्टन की ग्रहाणु परिकल्पना में मूलभूत अन्तर बताएँ

उत्तर: पृथ्वी की उत्पत्ति संबंधी कांट व लाप्लेस  की निहारिका परिकल्पना और चेम्बरलिन व मोल्टन की ग्रहाणु परिकल्पना में निन्मलिखित अन्तर है |

इमैनुअल कांट व लाप्लास की परिकल्पना

इमैनुएअल कांट व लाप्लास ने पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बन्धित गैसीय (नीहारिका)परिकल्पना प्रस्तुत की थी | उनके अनुसार प्रारम्भ में आद्य पदार्थ गैसीय, ठंडा तथा समान से कणों के  रूप में बिखरा हुआ था | कांट के अनुसार यह गैसीय पदार्थ संगठित  होने लगा | इनके अनुसार इसी संगठित गैसीय पदार्थ से पृथ्वी तथा सौर मंडल के अन्य ग्रहों की उत्पत्ति हुई है |

चेम्बरलिन तथा मोल्टन की ग्रहाणु परिकल्पना

चेम्बरलिन तथा मोल्टन ने ग्रहाणु परिकल्पना प्रस्तुत की थी | इस परिकल्पना के अनुसार ब्रहमांड में एक अन्य भ्रमणशील तारा सूर्य के निकट से गुजरा | इस भ्रमणशील तारे के गुरुत्वाकर्षण के कारण सूर्य के तल से सिगार के आकार के रूप में कुछ पदार्थ बाहर निकल कर अलग हो गया | जब भ्रमणशीलतारा सूर्य से दूर चला गया तो सूर्य सतह से बहार निकला हुआ यह पदार्थ सूर्य के चारों ओर घूमने लगा और यही धीरे-धीरे संघनित होकर ग्रहों के रूप में परिवर्तित हो गया | इस परिकल्पना का समर्थन जेम्स जींस और सर हैराल्ड जैफरी ने भी किया है |

प्रश्न: विभेदन  प्रक्रिया से आप क्या समझते है?

उत्तर: अधिक तापमान के कारण पृथ्वी का द्रव अवस्था में होने पर हल्के (कम घनत्व वाले) और भारी (अधिक घनत्व वाले) के पदार्थों के अलग-अलग होने की प्रक्रिया कों विभेदन (Differentiation)  प्रक्रिया कहते है |

प्रश्न: प्रारम्भिक काल में पृथ्वी के धरातल का स्वरूप क्या था ?

उत्तर: प्रारम्भिक काल में पृथ्वी एक चट्टानी, गर्म और वीरान ग्रह के रूप में थी | इसका वायुमंडल हाइड्रोजन और हीलियम गैसों से बना था | जिसके कारण वायुमंडल बहुत विरल था | यह आज के वायुमंडल से बहुत भिन्न था |

प्रश्न: पृथ्वी के वायुमंडल कों निर्मित करने वाली प्रारम्भिक गैसें कौन-सी थी ?

उत्तर: पृथ्वी के वायुमंडल कों निर्मित करने वाली प्रारम्भिक गैसें हाइड्रोजन और हीलियम थी | ये गैसें सौर पवन के कारण पृथ्वी के वायुमंडल से निकल गई थी |

प्रश्न: बिग बैंग सिद्धांत का विस्तार से वर्णन कीजिये ?

उत्तर: ब्रह्मांड की से उत्पत्ति सम्बन्धित आधुनिक सिद्धांतों में से सर्वमान्य सिद्धांत बिग बैंग सिद्धांत(Big Bang Theory) है | इस सिद्धांत कों विस्तारित ब्रह्मांड परिकल्पना (Expanding Universe Hypothesis) भी कहते है | ब्रह्माण्ड के विस्तार का अर्थ है आकाशगंगाओं के बीच की दूरी बढ़ना | इस परिकल्पना कों 1920 ई॰ में एडविन हब्बल (Edwin Hubble) ने दिया था |उन्होंने प्रमाण दिए थे की ब्रह्माण्ड का विस्तार हो रहा है | उनके अनुसार आकाशगंगाओं के बीच की दूरी बढ़ रही है |

ब्रह्माण्ड के विस्तारित होने की प्रक्रिया कों हम एक गुब्बारे की सहायता से समझ सकते है | यदि एक गुब्बारे पर कुछ निशान कर दिए जाए और फिर उसमें हवा भरी जाए | जैसे जैसे गुब्बारा फुलता जायेगा तो गुब्बारे पर लगाए गए निशान एक दूसरे से दूर होते जायेंगे | ठीक इसी तरह हमारा ब्रह्माण्ड में आकाशगंगाओं के बीच की दूरी बढ़ रही है | जो बताता है की ब्रह्माण्ड भी लगातार बढ़ रहा है |

बिग बैंग सिद्धांत के अनुसार ब्रह्मांड का विस्तार निम्नलिखित तीन अवस्थाओं में हुआ है |

1.       आरम्भ में वे सभी पदार्थ, जिनसे ब्रह्माण्ड बना है वे बहुत ही छोटे गोलक (एकाकी परमाणु) के रूप में एक ही स्थान पर स्थित थे | जिसका आयतन अत्यधिक सूक्ष्म एवं तापमान तथा घनत्व अनंत था |

2.       दूसरी अवस्था के अंतर्गत इस एकाकी परमाणु में भीषण विस्फोट हुआ जिसे हम बिग बैंग (महा विस्फोट) कहते है | वैज्ञानिकों का विश्वास है कि बिग बैंग की यह घटना आज से 13.7 अरब वर्षों पहले हुई थी | इस विस्फोट की प्रक्रिया से एकाकी परमाणु में वृहत विस्तार हुआ | इस विस्तार के कारण कुछ उर्जा पदार्थ में बदल गयी | विस्फोट के बाद एक सेकेंड बहुत छोटे हिस्से के अंतर्गत ही उस एकाकी परमाणु का वृहत विस्तार हुआ | इसके बाद इस विस्तार की गति धीमी पड़ गयी | वैज्ञानिकों के अनुसार बिग बैंग (महा विस्फोट) होने के तीन मिनट के अंतर्गत ही पहले परमाणु का निर्माण हुआ | ये विस्फोट इतना विशाल था कि आज भी ब्रह्माण्ड का विस्तार जारी है |

3.       बिग बैंग (महा विस्फोट) से तीन लाख वर्षों के दौरान तापमान 45000 केल्विन कम हो गया | जिससे और अधिक परमाणवीय पदार्थ का निर्माण हुआ | इस अवस्था में ब्रह्मांड पारदर्शी हो गया |

ब्रह्मांड के विस्तार संबंधी अनेक प्रमाणों के मिलने मिलने पर वैज्ञानिक समुदाय अब ब्रह्मांड की से उत्पत्ति सम्बन्धित आधुनिक सिद्धांतों में से सर्वमान्य सिद्धांत बिग बैंग सिद्धांत(Big Bang Theory) या विस्तारित ब्रह्मांड परिकल्पना (Expanding Universe Hypothesis) के पक्ष में है |

प्रश्न: पृथ्वी के विकास संबंधी अवस्थाओं कों बताते हुए हर अवस्था/ चरण कों संक्षेप में वर्णित कीजिये ?

पृथ्वी का निर्माण उसी निहारिका से हुआ जिनसे सूर्य तथा अन्य ग्रहों का निर्माण हुआ है |  प्रारम्भिक काल में पृथ्वी का स्वरूप किस तरह का था और पिछले लगभग 460 करोड वर्षों (4.6 अरब वर्षों) के दौरान उसके स्वरूप में परिवर्तन कों हम पृथ्वी के विकास के रूप में देखते है |

                                   पृथ्वी के विकास संबंधी अवस्थाओं कों समझने के लिए हमें प्रारम्भिक काल में पृथ्वी का स्वरूप से लेकर स्थल मंडल का विकास , वायुमंडल व जल मंडल का विकास और पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति कों समझना होगा | जो निम्न प्रकार से है |

प्रारम्भिक काल में पृथ्वी का स्वरूप

                                   प्रारम्भ में पृथ्वी एक चट्टानी, गर्म और वीरान ग्रह के रूप में थी | इसका वायुमंडल हाइड्रोजन और हीलियम गैसों से बना था | जिसके कारण वायुमंडल बहुत विरल था | यह आज के वायुमंडल से बहुत भिन्न था |

पृथ्वी पर स्थल मंडल का विकास (पृथ्वी की परतदार संरचना का विकास)

                                   उल्काओं के अध्ययन से पता चलता है कि ग्रहाणु व दूसरे  खगोलीय पिंड घने तथा हल्के दोनों ही प्रकार के पदार्थों के मिश्रण से बने है और बहुत से ग्रहाणुओं के इकट्ठा होने पर उनका निर्माण हुआ है इसी प्रकार    पृथ्वी का निर्माण भी हुआ है |

                                   पृथ्वी की उत्पत्ति के दौरान या उत्पत्ति के तुरंत बाद पृथ्वी पिंड के रूप में बनी थी | वह पिंड गुरुत्वाकर्षण बल के कारण इकट्ठा हो रहा था | इस इकट्ठा होने की प्रक्रिया से विबिन्न प्रकार के पदार्थ प्रभावित हुए | जिससे अत्यधिक ऊष्मा उत्पन्न हुई | ऊष्मा निकलने की प्रक्रिया के कारण तापमान बढने लगा | तापमान बढने के कारण विभिन्न पदार्थ पिघलने लगे | पदार्थों के पिघलने से पृथ्वीआंशिक रूप से द्रव अवस्था में आ गई |

                                   द्रव अवस्था में हुई पृथ्वी के अंदर तापमान की अधिकता से हल्के (कम घनत्व वाले पदार्थ) और भारी (अधिक घनत्व वाले पदार्थ) के पदार्थ अलग-अलग होने लगे और भारी पदार्थ जैसे लोहा पृथ्वी के केन्द्र में चले गए और हल्के पदार्थ ऊपर की ओर या पृथ्वी की सतह पर आ गए | जैसे जैसे पृथ्वी ठंडी होने लगी ये अलग हुए पदार्थ भी ठंडे होने लगे और ठोस रूप में परिवर्तित हो गए |  सबसे ऊपर भू-पृष्ठ या पृथ्वी की ऊपरी सतह का निर्माण हुआ |

                                   चंद्रमा की उत्पत्ति के दौरान भीषण संघट्ट (बड़ा टकराव) होने के कारण पृथ्वी का तापमान फिर से बढ़ने लगा और बहुत अधिक ऊर्जा उत्पन्न हुई | यह पृथ्वी का परतों के रूप में विभेदन का दूसरा चरण था | इस चरण में हुए विभेदन से पृथ्वी के पदार्थ अनेक परतों में अलग हो गए |  वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी के धरातल से  क्रोड तक कई परतें पाई जाती है |

1.       पर्पटी या क्रस्ट (Crust)

2.       प्रावार या मेंटल (Mental),

3.       बाह्य क्रोड (Outer Core)

4.       आंतरिक क्रोड( Inner Core)  

 

पृथ्वी के ऊपरी भाग से आंतरिक भाग तक जाने पर पदार्थों का घनत्व, तापमान और दबाव  बढता जाता है |

विभेदन प्रक्रिया

अधिक तापमान के कारण पृथ्वी का द्रव अवस्था में होने पर हल्के (कम घनत्व वाले) और भारी (अधिक घनत्व वाले) के पदार्थों के अलग-अलग होने की प्रक्रिया कों विभेदन (Differentiation)  प्रक्रिया कहते है |

वायुमंडल और जल मंडल का विकास

पृथ्वी के वायुमंडल और जल मंडल के विकास  कों निम्न प्रकार से समझ सकते है |

पृथ्वी के वायुमंडल का विकास

पृथ्वी के वर्तमान वायुमंडल के  विकास की तीन अवस्थाएँ मानी जाती है |

4.       पहली अवस्था में आदिकालिक वायुमंडलीय गैसों का ह्रास

                                   प्राम्भिक वायुमंडल में हाइड्रोजन तथा हीलियम गैसों की अधिकता थी | सौर पवन के कारण यह वायुमंडल पृथ्वी से दूर हो गया | ये आदिकालिक वायुमंडल पृथ्वी के साथ-साथ दूसरे पार्थिव ग्रहों से भी इसी कारण दूर हुआ | आदिकालिक वायुमंडल इस तरह सौर पवन के कारण दूर धकेलना या समाप्त हो गया | वायुमंडल के विकास की यह पहली अवस्था थी |

5.       द्वितीय अवस्था में पृथ्वी के भीतर से  गैसें, भाप तथा जलवाष्प निकलना और वायुमंडल का  विकास

                                   द्वितीय अवस्था में पृथ्वी के ठंडा होने और विभेदन प्रक्रिया के दौरान पृथ्वी के अंदरूनी भाग से बहुत सी गैसें, भाप तथा जलवाष्प निकली जिसने वायुमंडल के विकास में सहयोग किया | वह प्रक्रिया जिससे पृथ्वी के भीतरी भाग से गैसें धरती पर आई उसे गैस उत्सर्जन (Degassing) कहते है | इसी गैस उत्सर्जन की प्रक्रिया से वर्तमान वायुमंडल का निर्माण शुरू हुआ|  आरम्भ में जलवाष्प, नाइट्रोजन, कार्बन डाई ऑक्साइड, मीथेन और अमोनिया जैसी गैसें अधिक मात्रा में थी और स्वतंत्र रूप में ऑक्सीजन बहुत कम थी |

6.       तीसरी एवं अंतिम अवस्था में जैवमंडल में होने वाली प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा वायुमंडल में संशोधन

                                   इस अवस्था में जैवमंडल में जीवों के द्वारा प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया होने लगी |  प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया से ऑक्सीजन की बढोतरी होने लगी | पहले क्योंकि महासागरों में ही जीवन था इसलिए ऑक्सीजन की बढोतरी महासागरों की देन है | धीरे- धीरे महासागर ऑक्सीजन से संतृप्त हो गए और ऑक्सीजन वायुमंडल में फैलने लगी | यह अनुमान लगाया जाता है की वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा 200 करोड़ वर्ष पूर्व आज के समय हे ज हिसाब से पूर्ण हो गयी थी अर्थात वायुमंडल में लगभग 21 प्रतिशत हो गयी थी |

पृथ्वी के जलमंडल का विकास

                                   पृथ्वी में ज्वालामुखी विस्फोट के कारण जलवाष्प और गैसें बहार निकलने लगी जिससे वायुमंडल में जलवाष्प और गैसें बढ़ने लगी | पृथ्वी के ठंडा होने के साथ-साथ वायुमंडल भी ठंडा होने लगा और इससे जलवाष्प का संघनन शुरू हो गया | वर्षा के होने पर वायुमंडल में उपस्थित कार्बन डाई ऑक्साइड पानी में घुल गयी | जिससे वायुमंडल के तापमान में गिरावट आई |  तापमान में गिरावट आने से संघनन प्रक्रिया में अधिकता हुई जिससे अत्यधिक वर्षा हुई | पृथ्वी के धरातल पर बने गर्तों (गड्डों) में वर्षा का जल  इकट्ठा होने लगा | इन गड्डों के भरने से महासागर बने | माना जाता है कि महासागर पृथ्वी की उत्पत्ति से लगभग 50 करोड़ सालों के दौरान बने | इससे पता चलता है कि महासागर आज से लगभग 400 करोड़ साल पहले बने है |

                                   महासागरों में ही लगभग 380 करोड़ वर्षों पहले जीवन की शुरुआत हुई | प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया लगभग 250 से 300 करोड़ वर्षों पहले विकसित हुई | जिससे महासागर में ऑक्सीजन की बढोतरी होने लगी | यही ऑक्सीजन धीरे धीरे वायुमंडल में फ़ैल गयी और वायुमंडल में पूर्ण रूप से व्याप्त हो गयी |

पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति

पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति पृथ्वी के निर्माण के अंतिम चरण में हुई | इसका कारण यह है कि पृथ्वी का आदिकालिक वायुमंडल जीवन के विकास के लिए अनुकूल नहीं था | वायुमंडल और जल मंडल के विकास के बाद ही पृथ्वी पर जीवन संभव हुआ है |

                                   आधुनिक वैज्ञानिक मानते है कि जीवन की उत्पत्ति एक रासायनिक प्रतिक्रिया के फलस्वरूप हुई |  इस रासायनिक प्रतिक्रिया में सबसे पहले   जटिल जैव (कार्बनिक) अणु बने |उसके बाद इन अणुओं का समूहन हुआ | यह समूहन ऐसा था जो अपने आप का दोहराता था अर्थात बार बार होता था | इस समूहन की विशेषता यह थी कि यह निर्जीव तत्व कों जीवित पदार्थों में परिवर्तित कर सका | पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के प्रमाण पृथ्वी पर पायी जाने वाले अलग-अलग समय की चट्टानों में पाए जाने वाले जीवाश्मों के रूप में मिलते है | माना जाता है कि महासागरों में आज से लगभग 380 करोड़ वर्षों पहले जीवन की शुरुआत हुई | 300 करोड़ साल पुरानी भूगर्भिक शैलों में पाई जाने वाली सूक्ष्मदर्शी संरचना  आज की शैवाल (Blue Green Algae) से मिलती जुलती है | जिससे अनुमान लगाया जाता है कि पृथ्वी पर सबसे पहला  जीव शैवाल ही थे | यह एक कोशिकीय जीव था | समय के साथ-साथ एक कोशिकीय शैवाल से आज के मनुष्य का विकास विभिन्न कालों में हुआ |