https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-8100526939421437 SCHOOL OF GEOGRAPHY : 10TH CLASS lesson 1 geography question answers (land degradation, resource planning in india earth summit and agenda-21 etc)

Monday, April 25, 2022

10TH CLASS lesson 1 geography question answers (land degradation, resource planning in india earth summit and agenda-21 etc)

भूमि निम्नीकरण किसे कहते है? भारत में भूमि निम्नीकरण के कारण कौन कौन से कारण है ? वर्णन कीजिए |

उत्तर : भूमि निम्नीकरण से अभिप्राय भूमि के गुणों में कमी होना है | विभिन्न प्रकार के मानवीय क्रियाकलापों के कारण भूमि का तेजी से निम्नीकरण हो रहा है | इन्हीं कार्यों से कुछ प्राकृतिक कारक जो भूमि निम्नीकरण करते है वे भी अधिक ताकतवर हो गए हैं और भूमि निम्नीकरण कर रहे हैं |

भारत में लगभग 13करोड़ हेक्टेयर भूमि निम्नीकृत है |  कुल निम्नीकृत भूमिमें का लगभग 28 प्रतिशत वनों के अंतर्गत आती है | 56 प्रतिशत निम्नीकृत भूमि जल अपरदित है | शेष लगभग 16 प्रतिशत भूमि लवणीय और क्षारीय है | मानवीय क्रियाकलापों जैसे वनोन्मूलन (वनों की कटाई ), अति पशुचारण तथा खनन आदि ने भी भूमि निम्नीकरण में मुख्य भूमिका निभाई है | भारत में भूमि निम्नीकरण के कारण निम्नलिखित है |

1.       खनन के कारण

खनन के बाद खदानों  वाले स्थानों कों गहरी खाइयों और मलबों के साथ खुला छोड दिया जाता है | जिससे भूमि निम्नीकरण होता है | भारत के झारखण्ड, छतीसगढ़, मध्यप्रदेश तथा उड़ीसा जैसे राज्यों में भूमि निम्नीकरण मुख्य कारण है |

2.       वनोन्मूलन के कारण

खनन क्रिया तथा अन्य कारणों से वनों की कटाई तेजी से होती है | जिससे भूमि अपरदन अधिक होता है और भूमि निम्नीकरण होता है | झारखण्ड, छतीसगढ़, मध्यप्रदेश तथा उड़ीसा में इस तरह भूमि निम्नीकरण होता है |

3.       अति चराई के कारण 

अति पशुचारण के कारण भूमि की ऊपरी परत कमजोर हो जाती है और  मृदा अपरदन होने से भूमि का निम्नीकरण होता है | गुजरात, राजस्थान ,मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में अति पशुचारण के भूमि निम्निकरण का मुख्य कारण है |

4.       अधिक सिंचाई के कारण

अति सिंचाई से उत्पन्न जलाक्रांता (भूमि में जल की मात्रा अधिक हो जाना ) भी भूमि निम्नीकरण के लिए उतरदायी है | क्योंकि इससे मृदा में क्षारीयता (अम्लीयता) और लवणता बढ़ जाती है | पंजाब , हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अधिक सिंचाई भूमि निम्नीकरण के लिए उतरदायी है |

5.       उद्योगों में खनिज प्रक्रिया

उद्योगों में खनिज प्रक्रिया जैसे सीमेंट उद्योग में चूना पत्थर कों पीसना तथा मृदा बर्तन उद्योग में चूने (खडिया मृदा ) और सेलखड़ी के प्रयोग से बहुत अधिक मात्रा में वायुमंडल में धुल विसर्जित होती है | जब इसकी परत भूमि पर जम जाती है तो मृदा की जल सोखने की प्रक्रिया रुक  हो जाती है |  अत: उद्योगों में खनिज प्रक्रिया भी भूमि निम्नीकरण के लिए उत्तरदायी है |

6.       औद्योगिक जल निकासी से भूमि निम्नीकरण

पिछले कुछ वर्षों से देश के विभिन्न भागों में औद्योगिकी जल की निकासी हो रही है |  इस औद्योगिक जल निकास के साथ उद्योगों से बहार आने वाला अपशिष्ट पदार्थ जल प्रदूषण के साथ साथ भूमि प्रदूषण भी करता है | जिससे भूमि निम्नीकरण हो रहा है |

प्रश्न : भूमि निम्नीकरण कों रोकने के कौन कौन से उपाय है वर्णन कीजिए ?

भूमि निम्नीकरण की समस्या कों सुलझाने के निम्नलिखित उपाय किए जा सकते है |

  क).            वनरोपण करके

पर्वतीय ढालों, मरुस्थलीय क्षेत्रों और बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों  में वृक्षारोपण करके  मृदा के अपरदन में कमी करके कुछ हद तक भूमि निम्नीकरण कों किया जा सकता है |  

 ख).            पेड़ों की रक्षक मेखला बनाकर

शुष्क क्षेत्रों में पेड़ों की रक्षक मेखला बनाकर मृदा अपरदन में कमी करके भूमि के निम्नीकरण कों कम किया जा सकता है |

   ग).            रेतीले टीलों में काँटेदार झाडियाँ लगाकर

रेतीले टीलों में काँटेदार झाडियाँ लगाकर इन्हें स्थिर बनाने की प्रक्रिया के द्वारा भी भूमि कटाव नियंत्रित करके और मरुस्थली करण कों रोककर भी भूमि निम्नीकरण कम किया जा सकता है |

   घ).            चरागाहों के उचित प्रबंधन के द्वारा

पशु चरते समय कृषि भूमि को ढीला करते  जिससे मृदा अपरदन की क्रिया कों बढ़ावा मिलता है | अत: पशुचारण कों नियंत्रित करके और चरागाहों के उचित प्रबंधन द्वारा भी भूमि निम्नीकरण कम किया जा सकता है |

   ङ).            बंजर भूमि का उचित प्रबंधन

बंजर भूमि कों सुधार कर कृषि योग्य बनाने या गैर कृषि कार्यों में प्रयोग किया जा सकता है जिससे उपजाऊ भूमि का निम्नीकरण कम किया जा सकता है |

  च).            खनन क्रियाओं पर नियंत्रण तथा प्रबंधन

खनन क्रियाओं को नियंत्रित करके और खनन के बाद खादानों कों सही तरीके से भरने से भूमि निम्नीकरण कों का किया जा सका है |

   छ).            औद्योगिक  अपशिष्ट जल का उचित प्रबंधन

औद्योगिक जल कों परिष्करण के बाद ही विसर्जित किया जाए | जिससे जल प्रदूषण के साथ साथ भूमि प्रदूषण में भी कमी आएगी |

प्रश्न : संसाधन विकास किसे कहते है ?

उत्तर : संसाधनों का समझ के साथ उचित प्रयोग करना ही संसाधन विकास कहलाता है |

प्रश्न : संसाधनों के विकास संबंधी समस्याओं के क्या कारण है ?

उत्तर : हमें पता है कि संसाधन मनुष्य जीवन के लिए अति आवश्यक है | ये हमारे जीवन की गुणवत्ता को भी बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है | ये भी विश्वास किया जाता था कि संसाधन प्रकृति की देन है  और कभी खत्म नहीं होंगें | इसी कारण इनका अंधाधुंध प्रयोग करना शुरू कर दिया |  जिससे संसाधनों की कमी होने की समस्या दिखाई देने लगी | जो समस्याएँ पैदा हुई उनके निम्नलिखित कारण है |

1.       कुछ व्यक्तियों के लालच के कारण संसाधनों का तेजी से दोहन हुआ और ये तेजी से घटते चले गए |

2.       संसाधन कुछ ही लोगों के हाथों में आ गए  है, जिससे संसाधनों के हिसाब से हमारा समाज दो भागों में  बँट गया है | एक संसाधन संपन्न (अमीर) समाज तथा दूसरा संसाधन विहीन (गरीब) समाज |

3.       संसाधनों के अंधाधुंध शोषण से वैश्विक पारिस्थितिकी संकट पैदा हो गए है | जैसे भू मंडलीय तापन (ग्लोबल वार्मिंग), ओजोन परत अवक्षय (ओजोन परत का घटना ), पर्यावरण प्रदूषण तथा भूमि निम्नीकरण आदि |

प्रश्न : संसाधनों के उपयोग की योजना बनना क्यों अति आवश्यक है ?

उत्तर : हम जानते है की संसाधन मनुष्य जीवन के लिए अति आवश्यक है | ये सीमित भी है | यदि कुछ व्यक्तियों के द्वारा संसाधनों का दोहन इसी गति से होता रहा तो आने वाली पीढ़ियों का जीवन खतरे में पड़ जाएगा | क्योंकि हम उनके हिस्से के संसाधन भी प्रयोग कर रहे है और बर्बाद कर रहे है |

मानव जीवन की गुणवत्ता और विश्व में शांति बनाए रखने के लिए संसाधनों का समाज में न्याय संगत बँटवारा जरूरी हो जाता है | इसी तरह  हर प्रकार के जीवों की सुरक्षा और उनके जीवन का अस्तित्व बनाए रखने के लिए संसाधनों के सही उपयोग की योजना बनानी आवश्यक हो जाती है | सतत पोषणीय विकास की धारणा के अनुसार कार्य करके हम संसाधनों का योजनाबद्ध तरीके से प्रयोग कर सकते है | 

प्रश्न : सतत पोषणीय विकास किसे कहते है?

उत्तर : सतत पोषणीय आर्थिक विकास का अर्थ है कि विकास पर्यावरण कों बिना नुक्सान पहुँचाए हो | वर्तमान विकास भी होता रहे तथा  भविष्य में आने वाली पीढियों  की भी अवहेलना ना हो  अर्थात उनके लिए भी पर्याप्त संसाधन बने रहे |

प्रश्न : पृथ्वी सम्मलेन 1992 (रियो –डी-जेनेरो सम्मलेन ) पर नोट लिखो |

उत्तर : जून 1992 में ब्राजील के शहर रियो - डी - जेनेरो में विश्व के 100 से अधिक देशों के राष्ट्र अध्यक्षों का एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन हुआ |  जो संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण विकास सम्मलेन के तत्वाधान में किया गया था | यह सम्मेलन विश्व स्तर पर पर्यावरण संरक्षण तथा सामाजिक – आर्थिक विकास के कार्यों  के बीच में आने वाली समस्यायों के हल निकालने के लिए किया गया था | इसे प्रथम पृथ्वी सम्मलेन  कहा जाता है | 

इस सम्मलेन में शामिल हुए नेताओं ने भूमंडलीय जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता पर तैयार एक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए |

इस सम्मलेन में नेताओं ने भू मंडलीय वन सिद्धांतों पर सहमति जताई |

इस  सम्मलेन में  21वीं शताब्दी में सतत पोषणीय विकास कों बढ़ावा देने के लिए एजेंडा –21 पर स्वीकृति प्रदान की |

प्रश्न : एजेंडा – 21 पर संक्षिप्त नोट लिखो ?

उत्तर : जून 1992 में ब्राजील के शहर रियो - डी - जेनेरो में विश्व के 100 से अधिक देशों के राष्ट्र अध्यक्षों द्वारा एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन हुआ था | जिसमें एक एक घोषणा पत्र संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण विकास सम्मलेन के तत्वाधान में स्वीकृत किया गया था | जिसका उद्देश्य भूमंडलीय सतत पोषणीय विकास हासिल करना है |  जिसे एजेंडा –21 कहा गया |

एजेंडा –21 एक घोषणा पत्र की कार्य सूची है | जिसका उद्देश्य समान हितों, पारस्परिक आवश्यकताओं एवं सम्मलित  जिम्मेदारियों के अनुसार विश्व सहयोग के द्वारा पर्यावरणीय क्षति कों रोकना, गरीबी और रोगों कों मिटाना है |

एजेंडा –21 का मुख्य उद्देश्य यह भी है कि प्रत्येक स्थानीय निकाय अपना खुद का एजेंडा –21 तैयार करे | जिससे सतत पोषणीय विकास कों हासिल किया जा सके |

प्रश्न : भारत में संसाधन नियोजन की आवश्यकता क्यों है ?

उत्तर : संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए नियोजन एक सर्वमान्य रणनीति है | भारत में संसाधनों की उपलब्धता में बहुत अधिक विविधता है | यहाँ के कुछ प्रदेशों में संसाधनों की प्रचुरता है तो कुछ प्रदेश ऐसे भी है जहाँ संसाधनों की कमी है | अर्थात भारत में संसाधनों का वितरण असमान है |  उदाहरण के लिए झारखण्ड, मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ आदि राज्यों में कोयले तथा अन्य खनिजों के प्रचुर भंडार है | अरूणाचल प्रदेश में जल संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है | लेकिन इन सभी राज्यों में मूल विकास (आधारभूत विकास) की कमी है | राजस्थान में पवन तथा सौर ऊर्जा संसाधनों  बहुत अधिक है | लेकिन जल संसाधन की कमी है | लद्दाख सांस्कृतिक विरासत का धनी प्रदेश है | लेकिन यह देश से बिल्कुल अलग एक शीत मरुस्थलीय क्षेत्र है जहाँ पर जल, आधारभूत संरचना तथा अन्य महत्वपूर्ण खनिजों की भी कमी है | इसलिए हम कह सकते है की भारत में संसाधनों का वितरण असमान है | इसलिए संतुलित विकास के लिए राष्ट्रीय, प्रांतीय, प्रादेशिक (क्षेत्रीय) और स्थानीय स्तर पर संतुलित संसाधन नियोजन की आवश्यकता है |

प्रश्न : भारत में संसाधन नियोजन की प्रकिया के सोपान कौन कौन से है ?

उत्तर : संसाधन नियोजन एक जटिल प्रक्रिया है | भारत में संसाधन नियोजन के कुछ सोपान (steps) निम्नलिखित है |

   क).            देश के विभिन्न प्रदेशों में संसाधनों की पहचान कर उनकी तालिका बनाना | इस कार्य में क्षेत्रीय सर्वेक्षण, मानचित्र बनाना, संसाधनों का गुणात्मक और मात्रात्मक अनुमान लगाना तथा उनका मापन करना शामिल है |

  ख).            संसाधन विकास योजनाएँ लागू करने के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकी, कौशल तथा संस्थागत नियोजन ढाँचा तैयार करना |

    ग).            संसाधन विकास योजनाओं और राष्ट्रीय विकास योजनाओं में समन्वय स्थापित करना |

प्रश्न : किसी क्षेत्र के विकास के लिए संसाधनों के साथ साथ प्रौद्योगिकी भी आवश्यक स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर : किसी क्षेत्र के विकास के लिए संसाधनों की उपलब्धता एक अनिवार्य शर्त है | लेकिन प्रौद्योगिकी और संस्थाओं में समय के अनुसार परिवर्तन विकास के लिए जरूरी है क्योंकि अगर प्रौद्योगिकी और संस्थाओं में समय के अनुसार परिवर्तन नहीं होते तो विकास संभव नहीं है | भारत में ही हम देखते है कि बहुत से ऐसे क्षेत्र है जो संसाधनों से समृद्ध है लेकिन आर्थिक विकास में बहुत पीछे रह गए है क्योंकि वहाँ समय के अनुरूप प्रौद्योगिकी का प्रयोग नहीं हो रहा है |  जैसे ओडिसा, बिहार, छतीसगढ आदि | इसके विपरीत जहाँ पर अच्छी और विकसित प्रौद्योगिकी है वे क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों की कमी के बावजूद आर्थिक रूप से विकसित है | जैसे हरियाणा, पंजाब आदि | इसलिए  किसी क्षेत्र के विकास के लिए संसाधनों के साथ साथ प्रौद्योगिकी भी आवश्यक है |

प्रश्न : प्रौद्योगिकी और संस्थाओं में समय के अनुसार परिवर्तन उपनिवेशी शासन के दौरान भारत में संसाधनों का दोहन किस प्रकार हुआ है ?

अथवा

भारत में  उपनिवेशी शासन के दौरान विकास के साथ - साथ भारत में संसाधनों का दोहन किस प्रकार हुआ है ?

उत्तर : उपनिवेशन इतिहास हमें बताता है की उपनिवेशों के संसाधन सम्पन्न प्रदेश, विदेशी आक्रमणकारियों के लिए मुख्य आकर्षण रहे है | क्योंकि इन आक्रमणकारी (उपनिवेशकारी ) देशों के पास अच्छी प्रौद्योगिकी थी जिसके दम पर उन्होंने इन प्रदेशों के संसाधनों का जमकर शोषण किया और उन पर अपना अधिकार स्थापित किया |

इससे स्पष्ट होता है कि संसाधन किसी प्रदेश के विकास में तभी योगदान दे सकते है | जब वहाँ उपयुक्त प्रौद्योगिकी विकास तथा संस्थागत परिवर्तन किए जाए | उपनिवेशन के इतिहास के विभिन्न चरणों में भारत ने इसका अनुभव किया है | अत: भारत में समान्य तथा संसाधन विकास लोगों के पास उपलब्ध संसाधनों पर ही मुख्य रूप से आधारित नहीं था | बल्कि इसमें प्रौद्योगिकी, मानव संसाधन की गुणवत्ता और ऐतिहासिक अनुभव का भी योगदान रहा है | 

प्रश्न : संरक्षण की आवश्यकता क्यों है ?

उत्तर : संसाधनों के विवेकहीन उपभोग और अति उपयोग के कारण कई प्रकार की पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न हो गई है | बढती हुई जनसँख्या और औद्योगिक विकास के कारण संसाधनों का दोहन तेजी से हो रहा है | इसी तरह से संसाधनों का ह्रास होता रहा तो आने वाली पीढ़ी के लिए संसाधन नहीं रहेंगें | साथ ही संसाधनों के विवेकहीन उपभोग और अति उपयोग के कारण कई प्रकार की सामाजिक –आर्थिक और पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न हो गई है | इन समस्याओं से बचाव के लिए और आने वाली पीढ़ी के के लिए संसाधनों का संरक्षण बहुत आवश्यक है |

प्रश्न : गाँधी जी के अनुसार संसाधनों के संरक्षण की अवधारणा स्पष्ट कीजिए ?

अथवा

संसाधनों के संरक्षण पर गाँधी जी चिंता क्या थी ?

उत्तर : गाँधी जी ने संसाधनों के संरक्षण पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा की – “हमारे पास हर व्यक्ति की आवश्यकत की पूर्ति के लिए बहुत कुछ है | लेकिन किसी के लालच की संतुष्टि के लिए नहीं अर्थात हमारे पास पेट भरने के लिए बहुत कुछ है पेटी भरने के लिए नहीं |”

उनके अनुसार विश्व स्तर पर संसाधनों की कमी के लिए लालची और स्वार्थी व्यक्ति तथा आधुनिक प्रौद्योगिकी की शोषणात्मक प्रवृति जिम्मेवार है |  वे एक या कुछ व्यक्तियों द्वारा अधिक उत्पादन के विरुद्ध थे |   जबकि एक स्थान पर बड़े जनसमुदाय द्वारा उत्पादन के पक्षधर थे |

प्रश्न : अतर्राष्ट्रीय स्तर पर संसाधन संरक्षण  के लिए उठाए गए कदम कौन कौन से है ?

उत्तर : क्लब ऑफ रोम :-  क्लब ऑफ रोम (Club of Rome) ने 1968 में सबसे पहले अतर्राष्ट्रीय स्तर पर संसाधन संरक्षण की वकालत शुरू की |

स्माल इज ब्यूटीफुल :-  1974 में शुमेसर ने अपनी पुस्तक “स्माल इज ब्यूटीफुल” में संसाधन संरक्षण के गाँधी जी के दर्शन की एक बार फिर से पुनरावृति की |

ब्रुटलैंड आयोग 1987 तथा  ब्रुटलैंड आयोग रिपोर्ट :- 1987 में ब्रुटलैंड आयोग ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें वैश्विक स्तर पर संसाधनों के संरक्षण पर मूलाधार योगदान दिया | इस रिपोर्ट ने सतत पोषणीय विकास (Sustainable Development) की संकल्पना प्रस्तुत की और संसाधन संरक्षण की वकालत की | बाद में यह रिपोर्ट  “हमारा साँझा भविष्य” (Our Common Future) के शीर्षक से प्रकाशित हुई |

पृथ्वी सम्मेलन (1992) :- अतर्राष्ट्रीय स्तर पर संसाधन संरक्षण के लिए योगदान 1992 में ब्राजील के शहर रियो - डी - जेनेरो में हुए पृथ्वी सम्मेलन के द्वारा भी दिया गया |

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