अध्याय : 1
मानव भूगोल
कक्षा 12 वीं (मानव
भूगोल के मूल सिद्धांत)
भूगोल का अर्थ
भूगोल
यूनानी भाषा के दो शब्दों Geo + Graphy का हिंदी अर्थ है |
यहाँ “Geo” का अर्थ
है ‘पृथ्वी’ तथा “ Graphy” का अर्थ ‘वर्णन करना’ है |
इस प्रकार भूगोल पृथ्वी के धरातल का वर्णन है | दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं
कि भूगोल पृथ्वी के भौतिक एवं मानवीय तत्वों का अध्ययन करता है |
भूगोल के अध्ययन की विशेषताएँ
भूगोल
के अध्ययन की तीन मुख्य विशेषताएँ हैं |
1. यह
एक समाकलानात्मक अध्ययन है |
2. यह
एक आनुभाविक अध्ययन है |
3. यह
एक व्यवहारिक अध्ययन है |
भूगोल की शाखायें (भौतिक भूगोल और मानव भूगोल में अन्तर )
भूगोल
की दो मुख्य शाखायें हैं | भौतिक भूगोल और मानव भूगोल | इनका संक्षिप्त वर्णन इस
प्रकार है |
भौतिक
भूगोल
भौतिक
भूगोल पृथ्वी के भौतिक तत्वों से संबंधित है | पर्वत, पठार, मैदान, घाटियाँ,
वायुमंडल तथा महासागर आदि भौतिक पर्यावरण के तत्व है जिनका अध्ययन हम भौतिक भूगोल में
करते हैं | है | भौतिक भूगोल के अंतर्गत
हम भू आकृति विज्ञान, जलवायु विज्ञान, समुद्र विज्ञान, जैव विज्ञान तथा मृदा
विज्ञान आदि का अध्ययन करते हैं |
मानव
भूगोल
मानव
भूगोल पृथ्वी तल पर मानव समाजों और धरातल के बीच संबंधों का संश्लेषित अध्ययन है |
जनसंख्या, कृषि, उद्योग, विभिन्न पकार की सेवाएँ जैसे परिवहन, व्यापार तथा संचार के साधन आदि मानव निर्मित सांस्कृतिक
तत्व है जिनका अध्ययन हम मानव भूगोल में करते हैं | इसके अंतर्गत हम जनसंख्या
भूगोल, कृषि भूगोल , औद्योगिक भूगोल , परिवहन भूगोल , व्यापार का भूगोल अधिवास भूगोल, कल्याण का
भूगोल तथा चिकित्सा भूगोल आदि का अध्ययन करते हैं |
भूगोल में द्वैतवाद
द्वैतवाद
का अर्थ है विषय की विचार धाराओं में व्याप्त मतभेद होना और तर्क वितर्क होना |
भूगोल में भी विभिन्न आधारों पर द्वैतवाद की संकल्पनाओं का उदय हुआ है | भूगोल में द्वैतवाद की विचारधारा कों
निम्न उदाहरणों से समझा ज सकता है
1. भूगोल
के विद्वानों में यह मतभेद है कि नियम बनाने वाला अथवा सिद्धान्तीकर (नोमोटेथिक)
होना चाहिए | जबकि दूसरे विद्वान कहते हैं
कि यह विवरणात्मक होना चाहिए , अर्थात भावचित्रात्मक या इडियोग्राफी होना चाहिए |
2. भूगोल
में द्वैतवाद का दूसरा तर्क यह है कि भूगोल का अध्ययन क्रमबद्ध रूप में होना चाहिए
या प्रादेशिक रूप में |
3. भूगोल
में द्वैतवाद का यह भी मुख्य विषय विवाद रहा है कि भौगोलिक परिघटनाओं की व्याख्या
सैद्धांतिक आधार पर हो या ऐतिहासिक उपागम के आधार पर |
पर्यावरण के भौतिक (प्राकृतिक) तत्व
वे तत्व जो प्रकृति द्वारा हमें प्राप्त होते
उन्हें पर्यावरण के भौतिक तत्व कहते है |
इन्हें प्राकृतिक पर्यावरण के तत्व भी कहते है | भौतिक पर्यावरण के तत्वों में भू
आकृति, मृदाएं , जलवायु, जल , प्राकृतिक वनस्पति, विविध प्राणीजात (वन्यजीवन)
शामिल है |
पर्यावरण के मानवीय (सांस्कृतिक) तत्व
हमारे पर्यावरण में पाए जाने वाले वे सभी
पदार्थ जिनको मानव ने निर्मित किया है , उन्हें पर्यावरण के मानवीय तत्व कहते है | जैसे गृह (घर), गांव, नगर, सड़कें,
रेलें , उद्योग, खेल के मैदान, पतन (बंदरगाह) , दैनिक उपयोग में आने वाली विभिन्न
वस्तुएँ (मेज, कुर्सी, पंखे, कपड़े, फ्रिज आदि ) और विभिन्न तत्व जो मानव द्वारा निर्मित है | सभी मानवीय पर्यावरण
के तत्व है | इन तत्वों कों मानव ने अपने
क्रियाकलापों के द्वारा सांस्कृतिक आधार दिया है | इसलिए ये सांस्कृतिक तत्व भी
कहलाते है |
मानव भूगोल का अर्थ
मानव
भूगोल, भूगोल की एक महत्वपूर्ण शाखा है जिसके अंतर्गत भौतिक एवं मानवीय जगत के बीच
संबंधों, मानवीय परिघटनाओं का स्थानिक वितरण तथा उनके घटित होने के कारण एवं विश्व
के विभिन्न भागों में सामाजिक और आर्थिक विभिन्ताओं का अध्ययन करता है |
साधारण
शब्दों में मानव भूगोल कों इस तरह परिभाषित किया जा सकता है | “ मानव भूगोल, भूगोल
की प्रमुख शाखा है जिसके अंतर्गत पृथ्वी पर मानव और प्रकृति के संबंधों, मानव जाति
के वितरण तथा मानवीय क्रियाकलापों का अध्ययन किया जाता है |
मानव भूगोल की परिभाषाएँ
मानव भूगोल के विषय क्षेत्र कों देखते हुए इसे
परिभाषित करना बहुत कठिन है | विभिन्न
विद्वानों ने मानव भूगोल कों अपने तरीके से परिभाषित किया है | इनमें से कुछ
विद्वानों की परिभाषाएँ निम्नलिखित है |
1. रैटजेल
के अनुसार : “ मानव भूगोल मानव समाजों और धरातल के बीच
संबंधों का संश्लेषित अध्ययन है |”
रैटजेल ने अपनी इस परिभाषा में संबंधों के
संश्लेषण कों मुख्य माना है |
2. एलन
चर्चिल सैम्पल के अनुसार : “मानव
भूगोल अस्थिर पृथ्वी और क्रियाशील मानव के बीच परिवर्तनशील संबंधों का अध्ययन है
|”
एलन चर्चिल
सैम्पल ने अपनी इस परिभाषा में परिवर्तनशील संबंधों या संबंधों की
गत्यात्मकता (गतिशीलता) कों मुख्य माना है |
3. पॉल
- विडाल - डी - ला – ब्लाश के अनुसार : “हमारी पृथ्वी कों नियंत्रित करने वाले भौतिक
नियमों तथा इस पर रहने वाले जीवों के मध्य संबंधों कों अधिक संश्लेषित ज्ञान से
उत्पन्न संकल्पना ही मानव भूगोल है |”
पॉल - विडाल - डी - ला – ब्लाश ने अपनी इस
परिभाषा में बताया है कि मानव भूगोल पृथ्वी और मनुष्यों के बीच अन्तर्सम्बन्धों की
एक नयी संकल्पना प्रस्तुत करता है |
मानव भूगोल की प्रकृति और विषय क्षेत्र (अध्ययन क्षेत्र)
मानव भूगोल की प्रकृति कों उसके अर्थ तथा
परिभाषाओं द्वारा जाना ज सकता है | मानव भूगोल भौतिक पर्यावरण तथा मानव जनित
सामाजिक, सांस्कृतिक पर्यावरण के अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन उनकी परस्पर अन्योन्य
क्रिया के द्वारा करता है | इससे स्पष्ट होता है कि मानव भूगोल की प्रकृति में
विभिन्न कारकों का अध्ययन किया जाता है | इसके अध्ययन में निम्नलिखित के अध्ययन
कों शामिल किया जाता है |
1. मानव
भूगोल भूगोल भौतिक पर्यावरण तथा मानव के बीच अन्त:क्रिया का अध्ययन करता है |
अर्थात भौतिक पर्यावरण के तत्वों जैसे भू आकृति, मृदाएं , जलवायु, जल , प्राकृतिक
वनस्पति, विविध प्राणीजात आदि पर मानव
अपनी क्रियाओं के द्वारा किस प्रकार प्रभाव डालता है और उनसे किस प्रकार प्रभावित
होता है | इन तथ्यों का अध्ययन करना मानव भूगोल की प्रकृति में शामिल है |
2. यह
भूगोल पृथ्वी पर विभिन्न स्थानों पर रहने वाले लोगों की विभिन्न विशेषताओं जैसे
रंग, रूप, उनके द्वारा किए जाने वाले कार्य, उनकी क्षमता, आजीविका के साधन, तथा
रीति रिवाज आदि का अध्ययन करता है | इसके साथ ही मानव भूगोल इनमें समानता तथा
विविधता का पता लगता है और उनके कारणों की व्याख्या करता है |
3. मानव
भूगोल में मानव द्वारा की जाने वाली आर्थिक क्रियाओं जैसे कृषि, उद्योग परिवहन तथा
संचार के साधन आदि के अध्ययन कों शामिल किया जाता है |
4. मानव
भूगोल के अंतर्गत मानवीय बस्तियों, जनसंख्या की विशेषताओं आदि कों शामिल किया जाता
है |
इस
तरह स्पष्ट है कि मानव भूगोल के अध्ययन क्षेत्र में मानव और प्रकृति के बीच परस्पर
संबंधित क्रियाओं तथा उनसे उत्पन्न विभिन्न सांस्कृतिक लक्षणों (मानवीय लक्षणों)
के वितरण तथा उनकी विशेषताओं कों शामिल किया जाता है |
अध्ययन की विधि के अनुसार भूगोल की शाखाऐं या
क्रमबद्ध भूगोल तथा प्रादेशिक भूगोल में अन्तर
अध्ययन
की विधि के आधार पर भूगोल की दो मुख्य शाखाऐं हैं , क्रमबद्ध भूगोल तथा प्रादेशिक
भूगोल |
क्रमबद्ध
भूगोल
भूगोल
की वह शाखा जिसमें किसी एक विशिष्ट भौगोलिक तत्व का अध्ययन क्रमबद्ध तरीके से किया
जाता है | उसे क्रमबद्ध भूगोल कहते है | इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं |
A. क्रमबद्ध
भूगोल अध्ययन का एकाकी रूप प्रस्तुत करता है |
B. भूगोल
की इस शाखा में राजनैतिक इकाइयों पर आधारित होता है |
C. यह
भूगोल किसी तत्व विशेष के क्षेत्रीय वितरण, उसके कारणों और प्रभावों की समीक्षा
करता है |
प्रादेशिक
भूगोल (क्षेत्रीय भूगोल)
भूगोल
की वह शाखा जिसमें किसी एक प्रदेश के सभी
भौगोलिक तत्वों के संदर्भ में एक इकाई के रूप में अध्ययन किया जाता है | उस शाखा
कों प्रादेशिक भूगोल या क्षेत्रीय भूगोल कहते है | इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
|
क).
प्रादेशिक भूगोल अध्ययन का
समाकलित रूप प्रस्तुत करता है |
ख).
भूगोल की इस शाखा में अध्ययन
भौगोलिक इकाइयों पर आधारित होता है |
ग).
प्रादेशिक भूगोल किसी भी
प्रदेश के सभी भौगोलिक तत्वों का अध्ययन करता है |
पर्यावरणीय निश्चयवाद की विचार धारा का जन्म
जर्मनी में हुआ | इसलिए यह एक जर्मन विचार धारा है | मानव शक्तियों की अपेक्षा प्राकृतिक शक्तियों
की प्रधानता (महत्व) स्वीकार करने वाली विचारधारा कों पर्यावरणीय निश्चयवाद या
निश्चयवाद या पर्यावरणवाद कहते है | इस विचारधारा के अनुसार मानवीय क्रियाओं पर
वातावरण (प्रकृति) का नियंत्रण होता है | अर्थात मानव जीवन और उसके व्यवहार कों
भौतिक वातावरण के तत्व प्रभावित और निर्धारित करते हैं | इस विचारधारा के अनुसार
किसी सामाजिक वर्ग की सभ्यता, इतिहास, संस्कृति , रहन-सहन तथा विकास का स्तर भौतिक
कारक ही नियंत्रित करते है | यह विचारधारा स्पष्ट करती है कि मानव एक क्रियाशील
प्राणी नहीं है |
इस विचारधारा कों यूनानी, तथा रोमन विद्वानों
जैसे हिप्पोक्रेटस, हेरोंटोडस, इमेनुअल काण्ट, हम्बोल्ट तथा रेटजेल आदि ने इस
विचारधारा कों आगे बढ़ाया है | अरबी विद्वानों में अल-इदरसी तथा अमेरिका में एलेन
चर्चिल सेम्पल (एलेन सी॰ सेम्पल) तथा हंटिंगटन ने इसका समर्थन किया है |
संभववाद
इस
विचारधारा कों फ्रांस के प्रसिद्ध भूगोलवेता पॉल विडाल डी ला ब्लाश के द्वारा प्रतिपादित किया गया | इसलिए इस
विचारधारा कों फ्रांसीसी विचारधारा भी कहते है | इस विचारधारा के अनुसार मानव ने
पर्यावरण की शक्तियों कों समझकर उनमें बदलाव शुरू किए और अभाव की अवस्था से
स्वतंत्रता की अवस्था की तरफ बढ़ने लगा | अर्थात मनुष्य ने भौतिक (प्राकृतिक)
तत्वों कों अपने ज्ञान की सहायता से काट - छाँट शुरू की | इसके परिणाम स्वरूप
प्रकृति ने उसे और संभावनाएँ प्रदान की | मानव प्रकृति पर अपनी छाप छोड़ने लगा |
गांव, खेत, नहर, सडकें, रेलें, बंदरगाहों (पतनों) तथा वायुयान आदि मानव की प्रकृति पर जीत
कों स्पष्ट करते है |
ब्लाश के बाद इस विचारधारा कों जीन ब्रुंश, डिमांजिया तथा फ्रैब्रे ने इस
विचार धारा कों विकसित किया है | फ्रैब्रे ने ही सबसे पहले इस विचारधारा के लिए
संभववाद शब्द का प्रयोग किया था |
नवनिश्चयवाद (आधुनिक निश्चयवाद )
इस विचारधारा कों वैज्ञानिक (भूगोलवेता) रुको और
जाओ निश्चयवाद भी कहते है | इस विचारधारा का प्रतिपादन प्रसिद्ध भूगोलवेता ग्रिफिथ
टेलर ने किया था | यह विचारधारा पर्यावरणीय निश्चयवाद तथा संभववाद के बीच के मार्ग
कों अपनाने का अनुसरण करती है | टेलर के अनुसार मनुष्य पर प्रकृति का प्रभाव पड़ता
है | परन्तु मनुष्य भी अपने बुद्धि और कौशल बल पर
प्रौद्योगिकी की सहायता से प्रकृति
कों बदलने की क्षमता रखता है | यह विचारधारा बताती है कि मानव प्रकृति के नियमों
कों मानकर ही अपने विकास कों अग्रसर रख सकता है |
इस
विचारधारा कों हम एक बड़े नगर के
चौराहे पर यातायात के नियंत्रण के लिए
लगाई गई बत्तियों की सहायता से समझ सकते है |
Ø लाल
बत्ती का अर्थ है रुको, अर्थात जब तक प्रकृति रुकने के लिए कहती है टो मानव कों
अपने विकास के लिए प्राकृतिक तत्वों के
साथ छेडछाड बंद कर देनी चाहिए या धीरे कर देनी चाहिए |
Ø पीली
बत्ती (ऐम्बर बत्ती ) का अर्थ है रुककर
तैयार रहने का अंतराल, अर्थात जब प्रकृति ना कहे तब तक रुको और विकास के कम के लिए
तैयार रहो |
Ø हरी
बत्ती का अर्थ है जाओ, अर्थात प्रकृति जब विकास के लिए दरवाजे खोल देती है तब
विकास के कार्य शुरू करे |
इस संकल्पना की मुख्य अवधारणा यह है कि न तो
नितांत आवश्यकता (पर्यावरणीय निश्चयवाद) की स्थिति है और न ही नितांत
स्वतंत्रता (संभववाद ) की दशा है | इस विचारधारा
के अनुसार प्रकृति के नियमों का पालन करके ही हम प्रकृति पर विजय प्राप्त कर सकते
है | अगर मानव प्रकृति की सीमाओं कों तोड़कर अंधाधुंध रफ्तार से अपने विकास कार्यों
कों करता रहता है तो प्रकृति अपना प्रभाव दिखाती है | उदाहरण के लिए विकसित
अर्थव्यवस्थाओं के द्वारा बहुत तेजी से औद्योगिक विकास के परिणाम स्वरूप हरित गृह
प्रभाव (ग्रीन हॉउस प्रभाव) तथा ओजोन परत का अवक्षय आदि विश्व स्तरीय समस्याएँ
उत्पन्न हो गयी है |
मानव का प्रकृतिकरण
प्रौद्योगिकी
का स्तर अत्यंत निम्न होने के कारण मानव समाज की अवस्था आदिम बनी रहती है | इस
अवस्था में आदि मानव समाज प्रकृति पर ही पूर्णरूप से निर्भर रहता है | उसी के
सुनता है , पूजा करता है तथा उसे ही माता मानता है | इस स्थिति कों मानव का
प्रकृतिकरण कहते है | आदिमानव कों इसलिए प्राकृतिक मानव कहते है |
उदाहरण
के लिए बेन्दा मध्य भारत की एक जनजाति है
| जो आदिम तरीके से रहती है | वह पुराने तरीके से ही बिना प्रौद्योगिकी के रहती है
| वह आज भी स्थानान्तरित कृषि करते है | जो फल या कंदमूल जंगल से मिलते है उन्हें ही
खाते है या शिकार करते है | पानी के लिए
नदी के तट पर आते हैं | इन सब वस्तुओं कों
प्राप्त करते हुए वह प्रकृति का धन्यवाद करता है | क्योंकि वह मानता है कि प्रकृति
ने ही उसे यहाँ जन्म दिया है ताकि जंगल तथा इसके पदार्थों का उपयोग करके वह जीवन
यापन कर सके | वह प्रकृति कों सर्वश्रेठ मानता है | जो बताता है कि वह एक
प्राकृतिक मानव है | यह अवस्था पर्यावरणीय निश्चयवाद की विचारधारा समर्थन करती है
|
प्रकृति का मानवीकरण
जब मानव प्रकृति द्वारा दिए गए अवसरों का लाभ
अपने बुद्धि और कौशल से उठाता है तो वह अपने क्रियाकलापों के द्वारा पर्यावरण या
प्रकृति पर अपनी छाप छोड़ता है | इस परिस्थिति कों प्रकृति का मानवीकरण कहते है |
प्रकृति का मानवीकरण प्रौद्योगिकी के विकास के
कारण ही हो पाता है | उदाहरण के लिए मानव ने उच्च पर्वतीय प्रदेशों कों अपने कौशल
से स्वास्थ्य वर्धक स्थल तथा विश्राम स्थल बना लिया है | इसी प्रकार वह टुण्ड्रा प्रदेशों में अपने रहने
लायक वातानुकूलित घर बना रहा है | मानव ने अपने कौशल से सागर के अंदर मार्ग बनाकर
जलयान चला दिए है | गति के नियमों कों समझ कर अंतरिक्ष में उपग्रह आदि भेजने लगा
है | ये सभी प्रकृति के अवसरों का लाभ उठाने के कारण ही संभव हों पाया है | यह
अवस्था संभववाद की विचारधारा का समर्थन करती है |
प्रौद्योगिकी का विकास प्रकृति के
नियमों कों भली-भांति समझकर ही हो सकता है
प्रौद्योगिकी
का विकास सांस्कृतिक विकास का सूचक है | लेकिन प्रौद्योगिकी का विकास तब तक नहीं
हो सकता जब तक कि हम प्रकृति के नियमों कों सही ढंग से समझ ना ले | ये निम्नलिखित
तीन उदाहरणों से स्पष्ट किया ज सकता है |
1. घर्षण
और ऊष्मा की संकल्पनाओं ने अग्नि की खोज में हमारी सहायता की |
2. हम
बीमारियों पर विजय तभी पा सके जब हमने डीएनए (DNA) तथा
अनुवांशिकी के प्राकृतिक नियमों कों समझ लिया |
3. वायु
गति के नियमों की जानकारी प्राप्त होने पर ही हम अधिक गति से चलने वाले वायुयान
विकसित कर सके |
प्रौद्योगिकी
किसी समाज के सांकृतिक विकास का सूचक
या
मनुष्य
व प्रकृति के आपसी संबंधों पर
प्रौद्योगिकीकरण का प्रभाव
प्रौद्योगिकी
का स्तर मनुष्य व प्रकृति के आपसी संबंधों कों प्रभावित करता है तथा सांस्कृतिक विकास का भी सूचक होता है |
क्योंकि मनुष्य अपनी सांस्कृतिक विरासत से प्राप्त तकनीक और प्रौद्योगिकी की
सहायता से अपने भौतिक पर्यावरण से अन्योन्य क्रिया करता है | प्रौद्योगिकी के
द्वारा ही समाज के सांस्कृतिक विकास का पता चलता है |
जैसे आरम्भिक
मानव से स्वयं कों प्रकृति के आदेशों के अनुसार ढाल लिया था | क्योंकि उस समय मानव
का सामाजिक और सांस्कृतिक विकास आरम्भिक अवस्था में था और प्रौद्योगिकी का स्तर ना
के बराबर था | अपने पालन-पोषण के लिए वह प्रकृति पर निर्भर रहता था | वह भौतिक
पर्यावरण या प्रकृति को ही माता प्रकृति कहता था |
जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी विकसित हुई मानव
ने प्रकृति के नियमों कों जाना | नियम जानने के बाद उसने पर्यावरण से प्राप्त
संसाधनों से संभवानाएंखोजनी शुरू कर दी | इस प्रकार वह मानवीय क्रियाओं से
पर्यावरण पर अपनी छाप छोड़ने लगा | प्रौद्योगिकी के द्वारा ही पर्वतों पर सड़कें
बनाना, ऊबड़ –खाबड क्षेत्रों में रेल मार्ग विकसित करना, विषम जलवायु वाले
क्षेत्रों में निवास स्थान बनाना आदि कार्य किए जो उसके सांस्कृतिक विकास की सूचक
हैं | ये बताता है कि प्रौद्योगिकी जैसे-जैसे विकसित हुई वैसे-वैसे सांस्कृतिक
विकास भी बढ़ता चला गया | साथ ही हमे यह भी पा चलता है कि किस प्रकार मानव और
प्रकृति एक दूसरे से अन्योन्य क्रिया करते हुए एक दूसरे कों प्रभावित करते है |
या
मानव
भूगोल का अन्य सामाजिक विज्ञानों से संबंध
मानव भूगोल
एक अंतर्विषयक विषय है क्योंकि यह मानव और प्राकृतिक पर्यावरण के बीच
अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन करता है | पृथ्वी टल पर पाए जाने वाले मानवीय तत्वों
कों समझने के लिए और उनकी व्याख्या करने के लिए मानव भूगोल दूसरे सामाजिक
विज्ञानों के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित करता है | जो निम्नलिखित उदाहरणों से
स्पष्ट है |
i.
आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन करने के लिए
अर्थशास्त्र की सहायता लेता है |
ii.
जनसंख्या संबंधी अध्ययन करने के लिए जनांकिकी
की सहायता लेता है |
iii.
कृषि संबंधी गतिविधियों के लिए कृषि विज्ञान
स्थापित करता है |
iv.
मानव समुदायों के रीति रिवाज, सामाजिक संघटन तथा
लोकनीति आदि के अध्ययन कों यह समाजशास्त्र की सहायता से करता है |
v.
राजनीति भूगोल देशों की सीमाओं व
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों तथा सैन्य शक्ति और गतिविधियाँ आदि के अध्ययन के लिए भूगोल
राजनीति विज्ञान के साथ संबंध स्थापित करता है |
इसी प्रकार अन्य सामाजिक विज्ञानों से भी भूगोल
का घनिष्ठ संबंध होता है | अत: कहा ज सकता है कि विभिन्न विषयों के साथ संबंध स्थापित करके भूगोल मानव तथा प्राकृतिक
पर्यावरण के बीच अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन करता है इसलिए इसकी प्रकृति अंतर्विषयक
है |
मानव भूगोल का
ऐतिहासिक विकास (मानव भूगोल का क्रमिक विकास )
या
मानव भूगोल एक गत्यात्मक (परिवर्तनशील) विषय
या
मानव भूगोल के उपागम
मानव
भूगोल की जड़े बहुत गहरी है | मानव के उदय के साथ पर्यावरण के साथ मानव की अनुकूलन
तथा समायोजन की प्रक्रिया के द्वारा विकास की विभिन्न अवस्थाओं की निरंतरता का
अध्ययन करना ही मानव भूगोल का उद्देश्य है | यद्यपि समय के साथ साथ इस विज्ञान में
विभिन्न उपागम आए और उन उपागमों में परिवर्तन होता रहा है | यही भूगोल की परिवर्तनशीलता
(गत्यात्मकता) की प्रकृति कों दर्शाती है
|
भूगोल के विभिन्न समाजों के बीच
अन्योन्य क्रिया नगण्य थी और एक दूसरे के बारे में ज्ञान सीमित था | केवल यात्री
या अन्वेषण कर्ता अपनी यात्राओं के की सहायता से सूचना प्राप्त करते थे और समाज
में उसका वर्णन करते थे | जब नौका संचालन संबंधी कुशलताऐं विकसित नहीं थी | तब तक
किसी प्रकार के उपागम का विकास भूगोल में नहीं हुआ था | लेकिन उसके बाद 15वीं शताब्दी के अंत से लेकर वर्तमान काल तक अनेक उपागमों का विकास हुआ |
भूगोल में समय के साथ विकसित इन उपागमों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है |
अन्वेषण
और विवरण उपागम
इस उपागम की शुरुआत 15 वीं शताब्दी के अंत में हुई | जब आरम्भिक उपनिवेश युग था | इस उपागम की
निम्नलिखित विशेषताएँ है |
i.
इस उपागम ने साम्राज्यी और
व्यापारिक रुचियों कों रखने कों लिए नए
क्षेत्र में खोजों व अन्वेषणों के लिए प्रोत्साहित किया |
ii.
इस उपागम में क्षेत्र का विश्वज्ञानकोषीय विवरण भूगोलवेताओं
द्वारा वर्णन महत्वपूर्ण पक्ष था |
प्रादेशिक
विश्लेषण उपागम
इस उपागम का समय उपनिवेश युग के रूप में जाना
जाता है | इस उपागम निम्नलिखित विशेषताएँ है |
i.
इस उपागम में प्रदेश के सभी
पक्षों के विस्तृत वर्णन किए गए | जैसे एक ही देश के भौतिक तथ्यों जैसे भू-आकृति,
जलवायु, मृदा, वनस्पति व मानवीय कारकों जैसे संस्कृति, आर्थिक कार्य, नगरीय एवं ग्रामीण
जनसंख्या की विशेषताएँ आदि का वर्णन इस उपागम की मुख्य विशेषता है |
ii.
यह उपागम यह मत देता है कि
सभी प्रदेश पूर्ण अर्थात पृथ्वी के भाग है | अत: इन भागों की पूरी समझ पृथ्वी कों
पूर्ण रूप से समझने से सहायता करेगी |
क्षेत्रीय
विभेदन का उपागम
यह उपागम दो विश्व युद्धों के बीच की अवधि के
समय रहा | इस उपागम का समय 1930 के दशक कों माना जाता है | इस उपागम की निम्नलिखित
विशेषताएँ है |
i.
इस उपागम का प्रयोग यह समझने
के लिए किया जाता है कि एक प्रदेश अन्य प्रदेश से किस प्रकार भिन्न है |
ii.
इस उपागम में किसी प्रदेश की
विलक्षणता की पहचान करने पर बल दिया जाता है |
स्थानिक
संगठन उपागम
इस
उपागम का समय 1950 के दशक के अंत से लेकर 1960 के दशक के अंत तक का माना जाता है | इस उपागम के दौरान मात्रात्मक
क्रान्ति का महत्वपूर्ण योगदान रहा | इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं |
i.
इस उपागम की मुख्य विशेषता
यह है कि इसमें कम्प्युटर के प्रयोग तथा सांख्यिकी विधियों का प्रयोग अधिक किया
गया |
ii.
इस उपागम के समय मानचित्र
बनाने तथा मानवीय परिघटनाओं के विश्लेषण में प्राय: भौतिकी के नियमों का अनुप्रयोग
किया जाता था |
iii.
इस उपागम का मुख्य उद्देश्य
विभिन्न मानवीय क्रियाओं के मानचित्र योग्य प्रतिरूपों की पहचान करण था |
मानवतावादी
विचारधारा
इस विचारधारा की उत्पत्ति मात्रात्मक क्रान्ति
के कारण उत्पन्न असंतुष्टि और अमानवीय रूप में भूगोल के अध्ययन के कारण हुई | यह
विचारधारा 1970 के दशक में शुरू हुई | इस विचारधारा
कों कल्याणपरक विचारधारा भी कहते है | इस विचारधारा का संबंध मुख्यत: लोगों के
सामाजिक कल्याण के विभिन्न पक्षों से था | इसके अंतर्गत आवास, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मानव कल्याण के पक्ष शामिल थे |
आमूलवादी
विचारधारा
इस विचारधारा की उत्पत्ति मात्रात्मक क्रान्ति
के कारण उत्पन्न असंतुष्टि और अमानवीय रूप में भूगोल के अध्ययन के कारण हुई | यह
विचारधारा 1970 के दशक में शुरू हुई | इस विचारधारा
कों रेडिकल विचारधारा भी कहते है | इस
विचारधारा ने निर्धनता के कारण, बंधन और सामाजिक असमानता की व्याख्या के लिए कार्ल
मार्क्स के सिद्धांत का उपयोग किया | इस विचारधारा के अनुसार समकालीन समस्याओं का
मुख्य कारण पूंजीवाद का विकास है |
व्यवहारवादी
विचारधारा
इस विचारधारा की उत्पत्ति मात्रात्मक क्रान्ति
के कारण उत्पन्न असंतुष्टि और अमानवीय रूप में भूगोल के अध्ययन के कारण हुई | यह
विचारधारा 1970 के दशक में शुरू हुई | इस विचारधारा ने
प्रत्यक्ष अनुभवों कों महत्वपूर्ण माना है | इसके अलावा इस विचारधारा ने मानव
जातीयता, प्रजाति तथा धर्म आदि पर आधारित सामाजिक वर्गों के अध्ययन के लिए समय और
स्थान कों अधिक महत्वपूर्ण माना है |
उत्तर
आधुनिकवाद की विचारधारा
भूगोल में उत्तर आधुनिकवाद की विचारधारा का
उदय 1990
के दशक में हुआ | इस विचारधारा के समय में कुछ प्रश्न उठने लगे थे |
ये प्रश्न भूगोल के बृहत सामान्यीकरण , मानवीय दशाओं की व्याख्या करने वाले
सिद्धांतों और उन सिद्धांतों के प्रयोग से संबंधित थे | इस विचारधारा के समय
विद्वानों ने प्रत्येक स्थानीय संदर्भ की समझ के महत्व पर जोर दिया |
मानव भूगोल की शाखाएँ (मानव भूगोल के क्षेत्र और उप क्षेत्र )
मानव
भूगोल भूगोल की वह शाखा है जिसमें मानव जीवन के सभी तत्वों तथा उनकी विभिन्नताओं
का अध्ययन किया जाता है | मानव भूगोल में इन सभी तत्वों और मानव का प्रकृति के साथ
अंतर्संबंधो का भी अध्ययन किया जाता है | जिसके कारण विभिन्न क्रियाएँ घटित होती
हैं | ये क्रियाएँ विभिन्न विषयों के
अध्ययन में अपना प्रमुख स्थान रखती हैं | परिणाम स्वरूप मानव भूगोल का संबंध अन्य
विषयों से होता है | अपनी अंतर्विषयक प्रकृति के कारण मानव भूगोल एनी सामाजिक
विज्ञानों जैसे जनांकिकी, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, इतिहास तथा राजनीति विज्ञान
आदि के साथ मिलकर अपना अध्ययन क्षेत्र बढ़ा रहा है | इसके फलस्वरूप मानव भगोल के
क्षेत्र तथा उपक्षेत्र में भी निरंतर वृद्धि हो रही है | मानव भूगोल के कुछ
महत्वपूर्ण क्षेत्रों तथा उपक्षेत्रों का वर्णन इस प्रकार है |
सामाजिक
भूगोल
मानव
भूगोल की इस शाखा के अंतर्गत मनुष्य के सांस्कृतिक पहलुओं जैसे मानव आवास,
रहन-सहन, भाषा, धर्म, पहनावा तथा कलायें आदि का अध्ययन किया जाता है | मानव भूगोल
की इस शाखा (क्षेत्र) के निम्नलिखित उप शाखाएँ है |
क).
व्यवहारवादी भूगोल
सामाजिक भूगोल की इस उपशाखा का संबंध
मनोविज्ञान से है | इस शाखा में लोगों अक स्थान व समय के अनुसार व्यवहार का अध्ययन
किया जाता है |
ख).
सांस्कृतिक भूगोल
सामाजिक भूगोल की इस उपशाखा का संबंध मानव
विज्ञान से है | इसमें लोगों की संस्कृति, रीति रिवाजों आदि का अध्ययन किया जाता
है |
ग).
सामाजिक कल्याण का भूगोल
सामाजिक भूगोल की इस उपशाखा का संबंध कल्याण
के अर्थशास्त्र से है |
घ).
लिंग भूगोल
सामाजिक भूगोल की इस उपशाखा का संबंध
समाजशास्त्र, मानव विज्ञान तथा महिला अध्ययन से है |
ङ).
ऐतिहासिक भूगोल
सामाजिक भूगोल की इस उपशाखा का संबंध इतिहास
से है |यह शाखा ऐतिहासिक घटनाओं का अध्ययन भौगोलिक परिपेक्ष्य में करती है |
च).
अवकाश का भूगोल
सामाजिक भूगोल की इस उपशाखा का संबंध
समाजशास्त्र से है |
छ).
चिकित्सा भूगोल
सामाजिक
भूगोल की इस उपशाखा का संबंध महामारी विज्ञान से है | विभिन्न महामारियों के कारण,वे
कहाँ से उत्पन्न हुई और किन क्षेत्रों कों
प्रभावित किया इन सब का अध्ययन इस उपशाखा में किया जाता है |
नगरीय
भूगोल
मानव
भूगोल की इस शाखा में हम नगरों की आवास संबंधी विशेषताएँ , नगर नियोजन, नगरीय
जनसंख्या की विशेषताएँ , विभिन्न प्रकार की नगरीय समस्याएँ जैसे परिवहन की समस्या,
जल निकास की समस्या, स्वास्थ्य संबंधी समस्या, जल आपूर्ति की समस्या, प्रदूषण
संबंधी समस्याएँ आदि का अध्ययन करते हैं |
जनसंख्या
भूगोल
भूगोल
की इस शाखा का संबंध जनांकिकी से है | यह शाखा किसी स्थान की जनसंख्या संबंधी सभी
विशेषताओं का अध्ययन करती है | इसके अंतर्गत जनसंख्या वितरण, जनसंख्या घनत्व,
जनसंख्या वृद्धि, प्रवास, लिंग अनुपात, आयु लिंग संरचना, व्यवसायिक संरचना धार्मिक
संघटन तथा भाषाई संघटन आदि का अध्ययन किया जाता है |
आवास
या बस्ती भूगोल
मानव
भूगोल की यह शाखा नगरीय और ग्रामीण बस्तियों की उत्पत्ति के कारणों , उनकी संरचना,
स्थिति, बस्तियों की आंतरिक संरचना व बाह्य आकृतियों , घरों के प्रकार आदि के बारे
में अध्ययन करती हैं |
राजनीति
भूगोल
भूगोल
की यह शाखा राजनीति विज्ञान से संबंधित है | यह राज्यों का भूगोल भी कहलाता है |
इस शाखा के अंतर्गत राज्य की सीमाओं , राज्य का विस्तार, स्थानीय शासन की
विशेषताएँ तथा प्रक्रियाएँ , सैनिक शक्ति
सैन्य गतिविधियों तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंधों आदि का अध्ययन किया जाता है |
इस
शाखा (क्षेत्र) की दो उप शाखाएँ (उपक्षेत्र ) है | सैन्य भूगोल तथा निर्वाचन का
भूगोल |
आर्थिक
भूगोल
मानव
भूगोल की यह शाखा अर्थशास्त्र से संबंधित है | इस शाखा के अंतर्गत मानव द्वारा की
जाने वाली आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है | मानव भूगोल के इस क्षेत्र के
कई उपक्षेत्र (उपशाखाएँ ) है | जैसे
संसाधन भूगोल, कृषि भूगोल, औद्योगिक भूगोल आदि | इनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार
है |
क. संसाधन
भूगोल
आर्थिक भूगोल की इस उपशाखा के अंतर्गत
संसाधनों की उत्पत्ति, प्रकार, स्वामित्व तथा संसाधनों के वितरण, उत्पादन और
संसाधन संरक्षण आदि का अध्ययन किया जाता है |
ख. कृषि
भूगोल
आर्थिक भूगोल की इस उपशाखा के अंतर्गत कृषि
संबंधी सभी तत्वों जैसे कृषि के प्रकार, कृषि भूमि, सिंचाई, कृषि उत्पादन और वितरण तथा पशुपालन आदि का अध्ययन किया जाता
है |
ग. औद्योगिक
भूगोल
आर्थिक भूगोल की इस उपशाखा के अंतर्गत
उद्योगों की अवस्थिति, उद्योगों की अवस्थिति कों प्रभावित करने वाले कारक ,
विभिन्न उयोगों के उत्पादन तथा वितरण तथा विश्व के मुख्य औद्योगिक क्षेत्रों आदि
का अध्ययन किया जाता है |
घ. विपणन
का भूगोल
आर्थिक भूगोल की यह शाखा व्यवसायिक
अर्थशास्त्र और वाणिज्य से संबंधित है |
ङ. पर्यटन
भूगोल
आर्थिक भूगोल की यह शाखा पर्यटन और यात्रा
प्रबंधन से संबंधित है |
च. अंतर्राष्ट्रीय
व्यापार का भूगोल
आर्थिक
भूगोल की यह शाखा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के नियमों के साथ - साथ वस्तुओं और सेवाओं के आयात तथा
निर्यात से संबंधित है |
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