https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-8100526939421437 SCHOOL OF GEOGRAPHY : Planning : Meaning and Types, Hill Area Development Programme and Drought Prone Area Development Programme

Wednesday, February 23, 2022

Planning : Meaning and Types, Hill Area Development Programme and Drought Prone Area Development Programme

 

नियोजन: नियोजन एक ऐसी प्रकिया है जिसके अंतर्गत  सोच विचार की प्रकिया, कार्यक्रम की रूप रेखा तैयार करना तथा उद्देश्यों कों प्राप्त करने हेतु गतिविधियों का क्रियान्वयन शामिल किया जाता है |

नियोजन की प्रकिया में  शामिल तत्व :

नियोजन की प्रकिया में निम्नलिखित कों  शामिल किया जाता है |

1)      सोच विचार की प्रकिया,

2)      कार्यक्रम की रूप रेखा तैयार करना

3)      उद्देश्यों कों प्राप्त करने हेतु गतिविधियों का क्रियान्वयन

 नियोजन के उपागम: सामान्यतः नियोजन के दो उपागमन होते है |

1.       खण्डीय (Sectoral) नियोजन

2.       प्रादेशिक उपागम नियोजन

इनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है |

             1.       खण्डीय (Sectoral) नियोजन

खण्डीय (Sectoral) नियोजन का अर्थ है अर्थव्यवस्था के विभिन्न खण्डों (क्षेत्रों ) जैसे कृषि, सिंचाई, विनिर्माण, ऊर्जा,  निर्माण, परिवहन, संचार, सामाजिक अवसंरचना और सेवाओं के विकास के लिए कार्यक्रम बनाना तथा उनको लागू करना |

 2.       प्रादेशिक  नियोजन

किसी भी देश में सभी क्षेत्रों में एक समान आर्थिक विकास नहीं हुआ है | परिणाम स्वरूप कुछ क्षेत्र बहुत अधिक विकसित हो गए है और कुछ पिछड़े हुए है | जो बताता है कि विकास समान रूप से नहीं हुआ है | जब पिछड़े क्षेत्रों कों विकसित करने के लिए स्थानिक परिपेक्ष्य कों ध्यान में रखकर नियोजन किया जाता है | तो इस प्रकार के नियोजन कों प्रादेशिक नियोजन कहते है | इस प्रकार के नियोजन से प्रादेशिक असंतुलन भी कम होता है |

लक्ष्य क्षेत्र तथा लक्ष्य समूह नियोजन के उपागमों  कों प्रस्तुत करने के कारण

या

लक्ष्य क्षेत्र तथा लक्ष्य समूह नियोजन की आवश्यकता

हम जानते हैं कि एक क्षेत्र का आर्थिक विकास उसके संसाधनों पर निर्भर करता है | लेकिन कभी- कभी संसाधनों से भरपूर क्षेत्र भी पिछड़े रह जाते है | क्योंकि संसाधनों के साथ-साथ तकनीक और निवेश की भी आर्थिक विकास के लिए बहुत अधिक आवश्यकता होती है |

            भारत में भी लगभग डेढ़ दशक के नियोजन अनुभवों से नियोजकों ने यह महसूस किया कि आर्थिक विकास में क्षेत्रीय असंतुलन प्रबलित होता जा रहा है | क्षेत्रीय और सामाजिक आधार पर आई विषमताओं की प्रबलताओं कों काबू में रखने के लिए भारत के योजना आयोग ने विशेष उपागमों के द्वारा नियोजन करने की सोची | इसलिए नियोजन के लिए  लक्ष्य क्षेत्र तथा लक्ष्य समूह उपागमों कों प्रस्तुत किया गया |

लक्ष्य क्षेत्र विकास  कार्यक्रम (Target Area Development Programme)

 क्षेत्रीय आधार पर आई विषमताओं की प्रबलताओं कों काबू में रखने के लिए भारत के योजना आयोग ने कुछ क्षेत्रों कों चिन्हित करके उन्हें लक्ष्य क्षेत्र मानकर उनके विकास हेतु विभिन्न कार्यक्रम शुरू किए गए |

जैसे- कमान नियंत्रित क्षेत्र विकास कार्यक्रम, सूखाग्रस्त क्षेत्र विकास कार्यक्रम तथा पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम

 लक्ष्य समूह विकास  कार्यक्रम (Target Group Development Programme)

सामाजिक आधार पर आई विषमताओं की प्रबलताओं कों काबू में रखने के लिए भारत के योजना आयोग ने कुछ सामाजिक समूहों कों चिन्हित करके उन्हें लक्ष्य समूह  मानकर उनके विकास हेतु विभिन्न कार्यक्रम शुरू किए गए |

जैसे - लघु कृषक विकास संस्था (SFDA), सीमांत किसान विकास संस्था (MFDA) आदि |

 पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम (Hill Area Development Programme )

पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम कों पाँचवी पंचवर्षीय योजना (1974 -79) में प्रारम्भ किया गया था | इस कार्यक्रम के अंतर्गत उत्तर प्रदेश से सभी पर्वतीय जिले जो वर्तमान में उत्तराखंड में शामिल है, असम की मिकरी पहाड़ी, और उत्तरी कछार पहाडियाँ, पश्चिम बंगाल का दार्जिलिंग जिला और तमिलनाडु के नीलगिरी आदि कों मिलाकर कुल 15 जिले शामिल किए गए है |

            सन् 1981 पिछड़े क्षेत्रों पर बनी राष्ट्रीय समिति ने उन सभी पर्वतीय क्षेत्रों कों पिछड़े पर्वतीय क्षेत्रों में शामिल करने की सिफ़ारिश की थी जिनकी ऊँचाई 600 मीटर से अधिक है और जिनमें जनजातीय उप-योजना शामिल नहीं है |

पहाड़ी क्षेत्रों में विकास के लिए सुझाव

पिछड़े क्षेत्रों पर बनी राष्ट्रीय समिति ने निम्नलिखित बातों कों ध्यान में रख कर पहाड़ी क्षेत्रों में विकास के लिए सुझाव दिए थे |

1.       सभी लोग लाभान्वित हो, केवल प्रभावशाली व्यक्ति ही नहीं |

2.       स्थानीय संसाधनों और प्रतिभाओं का विकास करना |

3.       जीविका निर्वाह अर्थव्यवस्था कों निवेश मुखी अर्थव्यवस्था बनाना |

4.       अंत: प्रादेशिक व्यापार में पिछड़े क्षेत्रों का शोषण ना हो |

5.       पिछड़े क्षेत्रों की बाजार व्यवस्था में सुधार करके श्रमिकों कों लाभ पहुँचना |

6.       पारिस्थितिकीय संतुलन बनाए रखना |

पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम के उद्देश्य

 पहाड़ी क्षेत्र के विकास कों विस्तृत योजनाएँ इनके स्थलाकृतिक, पारिस्थितिकीय, सामाजिक तथा आर्थिक दशाओं कों ध्यान में रखकर बनाई गई | इन योजनाओं का मुख्य उद्देश्य स्थानीय संसाधनों का दोहन करना था | इसलिए संसाधनों के विकास तथा दोहन के लिए योजनाएँ बनाई गई | ये कार्यर्क्रम पहाड़ी क्षेत्रों में बागवानी का विकास, रोपण कृषि, पशुपालन. मुर्गी पालन, वानिकी, लघु तथा ग्रामीण उद्योगों का विकास करने के लिए स्थानीय संसाधनों कों उपयोग में लाने के उद्देश्य से बनाए गए |  

 सूखा संभावी क्षेत्र विकास कार्यक्रम

इस कार्यक्रम की शुरुआत चौथी पंचवर्षीय योजना में हुई | इस कार्यक्रम का उद्देश्य सूखा संभावी क्षेत्रों में लोगों कों रोजगार उपलब्ध करवाना और सूखे के प्रभाव कों कम करने के लिए उत्पादन के साधनों कों विकसित कारण था |

पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में इसके कार्यक्षेत्र कों और विकसित किया गया | प्रारम्भ में इस कार्यक्रम के अंतर्गत ऐसे सिविल निर्माण कार्यों पर बल दिया गया जिनमें अधिक श्रमिकों की आवश्यकता होती है | परन्तु बाद में इन कार्यक्रम के अंर्तगत सूखा प्रभावी क्षेत्रों में समन्वित विकास पर बल दिया गया | जिसके लिए सिंचाई परियोजनाओं, भूमि विकास कार्यक्रमों, वनीकरण, चरागाह विकास और आधारभूत ग्रामीण अवसंरचना जैसे विद्युत, सड़कों बाजार, ऋण सुविधाओं और सेवाओं पर जोर दिया गया | इस कार्यक्रम में राज्य के सामान्य प्रयत्नों के अतिरिक्त केन्द्र सरकार के द्वारा भी सहायता उपलब्ध कराई गई थी |

पिछड़े क्षेत्रों के विकास की समिति ने इस कार्यक्रम की समीक्षा की जिसमें यह पाया गया कि यह कार्यक्रम मुख्यतः कृषि तथा इससे संबंधित सेक्टरों (क्षेत्रों ) के विकास तक ही सीमित है और पर्यावरण संतुलन पुनःस्थापना पर इस कार्यक्रम में विशेष बल दिया गया है |

यह भी महसूस किया गया कि जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण भूमि पर जनसंख्या का भार लगातार बढ़ रहा है | जिससे कृषक अधिक कृषि उत्पादन प्राप्त करने के लिए सीमांत भूमि का उपयोग करने के लिए बाध्य हो रहे हैं | इससे पारिस्थितिकीय संतुलन बिगड रहा है |

फलस्वरूप सूखा संभावी क्षेत्रों में वैकल्पिक रोजगार के अवसर पैदा करना अति आवश्यक हो गया है | ऐसे क्षेत्रों का विकास करने की रणनीतियों में सूक्ष्म – स्तर पर समन्वित जल –संभर विकास कार्यक्रम अपनाना शामिल है |

अत: सूखा संभावी क्षेत्रों के विकास की रणनीति में जल, मिट्टी, पौधों , मानव तथा पशु जनसंख्या के बीच पारिस्थितिकीय संतुलन, पुनःस्थापन पर मुख्य रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए |

भारत में सूखा संभावी क्षेत्र

सन् 1967 में योजना आयोग ने देश में 67 जिलों (पूर्ण या आंशिक) की पहचान सूखा संभावी जिलों के रूप में की थी | सन् 1972 में सिंचाई आयोग ने 30 प्रतिशत सिंचित क्षेत्र का मापदण्ड लेकर सूखा संभावी क्षेत्रों का परिसीमन किया |

भारत में सूखा संभावी क्षेत्र मुख्यतः राजस्थान, गुजरात, पश्चिमी मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र के मराठावाडा क्षेत्र, आंध्रप्रदेश के रायलसीमा तथा तेलगांना पठार, कर्नाटक पठार और तमिलनाडु की उच्च भूमि तथा आंतरिक भाग के शुष्क तथा अर्धशुष्क भागों में फैलें हुए हैं | पंजाब, हरियाणा और उत्तरी राजस्थान के सूखा प्रभावित क्षेत्र सिंचाई के प्रसार के कारण सूखे से बच जाते है |