Lesson 5
Minerals and
Energy Resources
India People and
Economy
खनिज का अर्थ
एक खनिज निश्चित रासायनिक एवं भौतिक गुणधर्मों
(विशिष्टताओं) के साथ कार्बनिक या अकार्बनिक उत्पत्ति का एक प्राकृतिक पदार्थ है |
खनिजों की सामान्य विशेताएँ
सभी प्रकार के खनिजों में निम्नलिखित तीन सामान्य
विशेषताएँ होती हैं |
1) खनिज
विभिन्न क्षेत्रों में असमान रूप से वितरित होते हैं |
2) खनिजों
की मात्रा और गुणवत्ता के बीच प्रतिलोमी (विलोम) संबंध पाया जाता है अर्थात अधिक
गुणवत्ता वाले खनिज कम मात्रा में मिलते है और कम गुणवत्ता वाले खनिज अधिक मात्रा
में पाए जाते है |
3) सभी
खनिज समय के साथ-साथ समाप्त होते जाते है अर्थात समाप्य है | भूगार्भिक दृष्टि से
इन्हें बनने में लंबा समय लगता है | आवश्यकता के समय इनका पुनर्भरण नहीं किया जा
सकता | अत : इन्हें संरक्षित किया जाना चाहिए | इनका दुरूपयोग नहीं करना
चाहिए क्योंकि इन्हें दुबारा उत्पन्न करने
में समय लगता है इन्हें तुरंत उत्पन्न नहीं किया जा सकता |
खनिजों का आर्थिक महत्व
खनिज किसी भी देश के आर्थिक विकास में
महत्वपूर्ण योगदान देते हैं | जो निम्नप्रकार से स्पष्ट है |
1) खनिज
उद्योगों कों आधार प्रदान करते है |
2) अनेक
प्रकार के उद्योग कच्चे माल के लिए खनिजों पर आधारित है |
3) कोयला,
पट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैसे जैसे खनिज ऊर्जा प्रदान करते है |
खनिजों के प्रकार
रासायनिक एवं भौतिक गुणधर्मों के आधार पर
खनिजों कों दो मुख्य श्रेणियों में बाँटा जा सकता है |
1. धात्विक
खनिज
2. अधात्विक
खनिज
इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नप्रकार से है |
धात्विक खनिज
वे खनिज जिसमें धातुओं का अंश पाया जाता है |
उन्हें धात्विक खनिज कहते है | खनिजों की उत्पत्ति अकार्बनिक तत्वों से हुई है | जैसे
लौहा, मैगनीज, टंगस्टन, ताँबा,सीसा, सोना, चाँदी, तथा निकिल आदि |
धात्विक खनिजों में निम्नलिखित विशेषताएँ होती
है |
1) ये
खनिज सख्त और चमकीले होते हैं |
2) ये
प्राय: आग्नेय चट्टानों में पाए जाते है |
3) ये
लचीले होते है | इन्हें पीटकर कोई भी रूप दिया जा सकता है | इन्हें खींच कर लम्बा
किया जा सकता है |
4) ये
चोट मारने पर टूट कर बिखरते नहीं है |
धात्विक खनिजों के प्रकार
धात्विक खनिजों कों पुनः दो प्रकारों लौहयुक्त
धात्विक खनिज तथा अलौहयुक्त धात्विक खनिज में बाँटा जाता है |
अ. लौहयुक्त
धात्विक खनिज
वे खनिज जिनमें लौह
धातु का अंश पाया जाता है उन्हें लौहयुक्त धात्विक खनिज कहते हैं | जैसे लौहा,
मैगनीज, टंगस्टन तथा निकिल आदि | ये मैटमैले,स्लेटी तथा घूसर रंग के होते है |
आ. अलौहयुक्त
धात्विक खनिज
वे खनिज जिनमें लौह
धातु का अंश नहीं पाया जाता है उन्हें अलौहयुक्त धात्विक खनिज कहते हैं | जैसे
ताँबा,सीसा, सोना, चाँदी, टिन,
बॉक्साईट तथा मैंगनीशियम आदि | ये
अनेक रंगों में मिलते है |
अधात्विक खनिज
वे खनिज जिसमें धातुओं का अंश नहीं पाया जाता
है | उन्हें अधात्विक खनिज कहते है | इन खनिजों की उत्पत्ति कार्बनिक तथा
अकार्बनिक दोनों ही प्रकार के तत्वों से हुई है | जैसे कोयला, पेट्रोलियम,
प्राकृतिक गैस, अभ्रक (माइका), स्लेट, चूना पत्थर, ग्रेफाईट, डोलोमाईट, जिप्सम तथा
फ़ॉस्फेट आदि |
अधात्विक खनिजों में निम्नलिखित विशेषताएँ
होती है |
1) ये
खनिज कम चमकदार होते हैं |
2) ये
प्राय: परतदार चट्टानों में पाए जाते है |
3) ये
कम लचीले होते है | इन्हें पीटकर कोई भी रूप नहीं दिया जा सकता है | इन्हें खींच
कर लम्बा भी नहीं किया जा सकता है |
4) ये
चोट मारने पर टूट कर बिखर जाते है |
अधात्विक खनिजों के प्रकार
अधात्विक खनिजों कों पुनः दो प्रकारों कार्बनिक
अधात्विक खनिज तथा अकार्बनिक अधात्विक खनिज में बाँटा जाता है |
अ. कार्बनिक
अधात्विक खनिज
वे खनिज जिनकी
उत्पत्ति कार्बनिक तत्वों से हुई है | इनमें जीवाश्म होते है | इन्हें ईंधन खनिज
भी कहते हैं | जैसे कोयला, पेट्रोलियम तथा
प्राकृतिक गैस आदि |
आ. अकार्बनिक
अधात्विक खनिज
वे खनिज जिनकी
उत्पत्ति अकार्बनिक तत्वों से हुई है | इनमें जीवाश्म नहीं होते | जैसे अभ्रक (माइका), स्लेट, चूना पत्थर,
ग्रेफाईट, डोलोमाईट, जिप्सम तथा फ़ॉस्फेट आदि |
भारत में खनिजों का वितरण (Distribution of Minerals in India)
भारत में खनिजों के वितरण से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
है जो निम्नलिखित हैं |
1. भारत
में अधिकाँश धात्विक खनिज प्रायद्वीपीय पठारी क्षेत्र की प्राचीन क्रिस्टलीय शैलों
में पाए जाते हैं |
2. कोयले
का लगभग 97 प्रतिशत भाग दामोदर, सोन, महानदी और गोदावरी नदियों की घाटियों में पाया
जाता है |
3. पेट्रोलियम
के आरक्षित भंडार असम, गुजरात तथा मुंबई हाई अर्थात अरब सागर के अतटीय क्षेत्र में
पाए जाते है | नए आरक्षित क्षेत्र कृष्णा-गोदावरी तथा कावेरी बेसिनों में पाए गए
हैं |
4. अधिकाँश
प्रमुख खनिज मंगलौर से कानपुर कों जोड़ने वाली कल्पित रेखा के पूर्व में पाए जाते
हैं |
भारत में खनिज पट्टियाँ
भारत में खनिज मुख्यतः तीन विस्तृत पट्टियों
में सांद्रित है | उत्तरी – पूर्वी पठारी प्रदेश, दक्षिण-पश्चिम पठारी प्रदेश तथा
उत्तर-पश्चिमी प्रदेश | इनके अलावा कुछ भंडार यत्र-तत्र एकाकी खंडों में भी पाए जाते है | भारत में
खनिजों की पट्टियों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है |
क).
उत्तरी – पूर्वी पठारी
प्रदेश
इस पट्टी के अंतर्गत छोटानागपुर (झारखंड),
ओडिशा के पठार, पश्चिम बंगाल तथा छतीसगढ़ के कुछ भाग आते हैं | प्रमुख लौह और इस्पात उद्योग
इस क्षेत्र में अवस्थित है | इस क्षेत्र में लौह अयस्क, कोयला, मैंगनीज,
बॉक्साइट तथा अभ्रक के भंडार अधिक मिलते है |
ख).
दक्षिण-पश्चिम पठारी प्रदेश
यह पट्टी कर्नाटक, गोवा कर्नाटक के साथ लगती
तमिलनाडु की उच्च भूमि और केरल पर विस्तृत है | यह पट्टी लौह धातुओं तथा बॉक्साइट से समृद्ध है | इस पेटी में उच्च कोटि
का लौह-अयस्क,मैंगनीज तथा चूना-पत्थर मिलता है | लिगनाइट कोयले कों छोड़कर इस पेटी
में कोयले का अभाव है | केरल में मोनाजाइट
रेत में थोरियम तथा बॉक्साइट क्ले के निक्षेप हैं | गोवा में लौह अयस्क के निक्षेप
पाए जाते है | इस पट्टी में उत्तरी पूर्वी पट्टी की तरह खनिजों के निक्षेप विविधता
पूर्ण नहीं है |
ग).
उत्तर-पश्चिमी प्रदेश
यह पट्टी राजस्थान तथा गुजरात के कुछ भाग पर
विस्तृत है | इस पेटी के खनिज धारवाड़ क्रम की चट्टानों से संबंधित है | ताँबा तथा
जिंक यहाँ के प्रमुख खनिज हैं | राजस्थान का क्षेत्र बलुआ पत्थर, ग्रेनाइट,
संगमरमर तथा जिप्सम जैसे भवन निर्माण वाले पत्थरों से समृद्ध है | इनके अलावा यहाँ
मुल्तानी मिट्टी के विस्तृत निक्षेप पाए जाते है | डोलामाइट तथा चूना पत्थर सीमेंट
के लिए कच्चा माल उपलब्ध करवाते हैं | गुजरात अपने पट्रोलियम निक्षेपों के लिए
प्रसिद्ध है | इनके अलावा राजस्थान तथा गुजरात दोनों ही राज्यों में नमक के समृद्ध
स्त्रोत है |
घ).
अन्य क्षेत्र
इन तीन पट्टियों के अलावा एक अन्य खनिज पट्टी
भी है | यह पेटी हिमालय पट्टी कहलाती है | यहाँ ताँबा, सीसा, जस्ता, कोबाल्ट तथा
रंगरत्न पाया जाता है | ये खनिज हिमालय के पूर्वी और पश्चिमी दोनों भागों में पाए
जाते है | असम घाटी में खनिज तेलों (पट्रोलियम) के निक्षेप है |
इनके अतिरिक्त मुंबई के अपतटीय क्षेत्रों में
भी खनिज तेलों के निक्षेप पाए जाते हैं |
लौह अयस्क
लौह अयस्क प्रमुख लौह युक्त धात्विक खनिज है |
यह उद्योगों के विकास के लिए एक सुदृढ़ आधार प्रदान करता है | लौहे कों आज की
सभ्यता की रीढ़ भी कहा जाता है | किसी भी प्रदेश के आर्थिक विकास और जीवन स्तर का
अनुमान इस बात से भी लगाया जाता है कि वहाँ कितनी मात्रा में लौहे का प्रयोग किया
जाता है |
भारत में लौह अयस्क के भंडार
भारत में लौह अयस्क के प्रचुर संसाधन है | यहाँ
एशिया के विशालतम लौह अयस्क के भंडार आरक्षित है | हमारे देश में लौह अयस्क के दो
प्रमुख प्रकार हेमेटाइट तथा मैग्नेटाइट पाए जाते है | ये अयस्क सर्वोतम गुणवत्ता के है इसलिए विश्व
के विभिन्न देशों में भारी माँग है |
लौह
अयस्क की खदानें देश के उत्तर-पूर्वी पठारी प्रदेश में कोयला क्षेत्रों के निकट
स्थित है जो इसके लिए लाभदायक है |
हमारे देश में 2004-05
में लौह अयस्क के आरक्षित भंडार लगभग 200 करोड़
टन थे | लौह अयस्क के कुल आरक्षित भंडारों
का लगभग 95 प्रतिशत भाग ओडिशा, झारखंड, छतीसगढ़, कर्नाटक,
गोवा, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु राज्यों में स्थित हैं |
भारत में लौह का उत्पादन तथा वितरण
भारत में सन् 1950-51
में 42 लाख टन लौह-अयस्क का उत्पादन हुआ था जो
बढ़कर सन् 2010-11 में 2080 लाख टन हो गया | अत : लौहे
के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है | भारत के विभिन्न राज्यों में लौह अयस्क
के वितरण कों निम्न प्रकार से समझा जा
सकता है |
कर्नाटक
कर्नाटक भारत के कुल लौह अयस्क उत्पादन का
लगभग 25 प्रतिशत (एक चौथाई ) लौह अयस्क पैदा करके प्रथम स्थान पर है | यहाँ लौह
अयस्क के निक्षेप वल्लारी जिले के बेलारी, संदूरतथा हासपेट क्षेत्र में लौह अयस्क
की खानें है | चिकमंगलूर जिले बाबा बूदन पहाडियों, कालाहांडी तथा केमानगुडी प्रमुख
खानें है | इनके अलावा कुद्रेमुख तथा शिवमोगा, चित्रदुर्ग और तुमकुरु जिलों के कुछ
हिस्सों में पाए जाते हैं |
छतीसगढ़
यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा लौह अयस्क उत्पादक
राज्य है | यह राज्य भारत के कुल लौह अयस्क उत्पादन का लगभग 20 प्रतिशत लौह अयस्क पैदा करता है |
इस राज्य में लौह अयस्क की पट्टी दुर्ग, दांतेवाड़ा और बैलाडीला तक विस्तृत है | दांतेवाड़ा
जिले का बैलाडीला तथा दुर्ग जिले के डल्ली और राजहरा में देश की महत्वपूर्ण लौह
अयस्क की खदानें हैं | इनके अलावा रायगढ़, बिलासपुर तथा सरगुजा अन्य उत्पादक जिले
है | यहाँ का अधिकाँश लौहा अयस्क विशाखापट्टनम पत्तन के द्वारा जापान कों निर्यात
कर दिया जाता है |
ओडिशा
यहाँ भारत का 19 प्रतिशत से अधिक लौह अयस्क
पैदा किया जाता है | इस राज्य में लौह अयस्क सुंदरगढ़, मयूरभंज, झार स्थित पहाड़ी
श्रंखलाओं में पाया जाता है | यहाँ की महत्वपूर्ण खदानें गुरुमहिसानी, सुलाएपत,
बदामपहाड़ (मयूरभंज), किरुबुरु (केन्दुझर) तथा बोनाई (सुंदरगढ़) है |
गोवा
पिछले कुछ दशकों से गोवा तेजी से महत्वपूर्ण
उत्पादक के रूप में उभरा है | यह राज्य भारत के कुल लौह अयस्क उत्पादन का लगभग 16 प्रतिशत लौह अयस्क पैदा करके चौथे
स्थान पर है |यहाँ का लौहा अयस्क घटिया किस्म का है जिसमें 40 से 60 प्रतिशत तक ही शुद्ध लौहा प्राप्त होता है | यहाँ के लौह अयस्क कों
मारमागाओ (मारमागोवा) पत्तन से निर्यात कर दिया जाता है |
झारखंड
इस राज्य में भारत का 15 प्रतिशत लौह अयस्क का
उत्पादन करता है | झारखंड में भी ओडिशा की तरह पहाड़ी श्रंखलाओं में कुछ सबसे
पुरानी लौह अयस्क की खदानें है | इस राज्य में लौह अयस्क की अधिकतर खादानें लौह
एवं इस्पात संयंत्र के आस पास ही है | नोआमंडी और गुआ जैसी महत्वपूर्ण खदानें इस
राज्य के पूर्वी और पश्चिमी जिलों में स्थित है | सिंहभूम, पलामू धनबाद, हजारीबाग,
संथाल परगना तथा राँची मुख्य उत्पादक जिले है |
महाराष्ट्र
इस राज्य की प्रमुख खदानें चंद्रपुर, भंडारा
और रत्नागिरी जिलों में पाइ जाती है |
तेलंगाना
इस राज्य की मुख्य खदानें करीमनगर , वारांगल
जिले में स्थित है |
आन्ध्रप्रदेश
यहाँ के कुरुनूल, कुडप्पा तथा अनंतपुर जिलों
में लौह अयस्क के भंडार है |
तमिलनाडु
इस राज्य के सेलम तथा नीलगिरी जिले लौह अयस्क
के मुख्य क्षेत्र है |
हरियाणा
इस राज्य के महेंद्रगढ़ जिले के नारनौल क्षेत्र
में लौह अयस्क के भंडार हैं |
मैंगनीज
मैंगनीज लौह-इस्पात उद्योग में लौह-अयस्क के
प्रगलन के लिए महत्वपूर्ण कच्चा माल है | एक टन लौहे-इस्पात का निर्माण करने के
लिए लगभग 10 किलोग्राम मैंगनीज का उपयोग किया जाता है
| इसका उपयोग जंग रोधक इस्पात तथा लौह और मैंगनीज से युक्त मिश्र धातु बनाने में
किया जाता है | इसके अलावा मैंगनीज का प्रयोग ब्लीचिंग पाउडर, कीटनाशक दवाइयों,
पेंट तथा बैटरी आदि के निर्माण में किया जाता है |
भारत में मैंगनीज अयस्क के भण्डार
भारतीय भू गर्भ सर्वेक्षण विभाग के अनुसार
भारत में 43 करोड़ टन मैंगनीज के सुरक्षित भण्डार हैं | जिसमें से लगभग एक चौथाई
मैंगनीज के भण्डार उच्च किस्म का है | भण्डार की दृष्टि से जिम्बावे के बाद भारत
का दूसरा स्थान है | विश्व के कुल मैंगनीज भण्डार का 5 प्रतिशत भारत में है |
भारत में मैंगनीज का उत्पादन तथा वितरण
मैंगनीज के उत्पादन की दृष्टि से भारत का
ब्राजील, गोबेन, दक्षिणी अफ्रीका तथा ऑस्ट्रेलिया के बाद पाँचवा स्थान है | 1950-51 में मैंगनीज का उत्पादन 13.98 लाख टन था जो 2004-05 में बढ़कर 23.79 लाख टन हो गया |
भारत में मैंगनीज के निक्षेप लगभग सभी प्रकार
की भूगर्भिक संरचनाओं में पाया जाता है | फिर भी धारवाड़ क्रम की शैलों में ये
मुख्य रूप से पाया जाता है |
भारत के विभिन्न राज्यों में
मैंगनीज के उत्पादन कों निम्न प्रकार से समझा जा सकता है |
1. ओडिशा
उड़ीसा सबसे बड़ा उत्पादक है और भारत के 37 प्रतिशत से अधिक मैंगनीज अयस्क का उत्पादन करता है । यह सुंदरगढ़ जिले में गोंडाइट की खादानों और कालाहांडी और कोरापुट जिलों में कोडुराइट और खोंडोलाइट की खादानों से प्राप्त किया जाता है । कुछ मैंगनीज का खनन बोलांगीर और संबलपुर जिलों में लैटेरिटिक निक्षेपों से भी किया जाता है ।
2. कर्नाटक :
यहाँ के धारवाड, वेल्लारी, बेलगाम, उत्तरी कनारा, चिकमंगलूर, शिमोगा, चित्रदुर्ग, तथा तुमकुर जिलों में मैंगनीज का उत्पादन में अग्रणी है |
3. महाराष्ट्र
यह भारत के मैंगनीज अयस्क का लगभग 24 प्रतिशत उत्पादन करता है । मुख्य पट्टी नागपुर और भंडारा जिलों में है । रत्नागिरी जिले में उच्च श्रेणी का अयस्क पाया जाता है | ये खादाने लौहा-इस्पात संयंत्रों से दूर होने के कारण अधिक लाभकारी नहीं है |
4. मध्यप्रदेश
इस राज्य में मैंगनीज की पट्टी बालाघाट, छिंदवाड़ा, निमाड़, मांडला तथा झाब्आ जिलों में विस्तृत है |
5. इनके
अलावा आन्ध्रप्रदेश, गोवा तथा झारखण्ड
मैंगनीज के गौण उत्पादक है |
बॉक्साइट
बॉक्साइट एक अलौह खनिज है | जिसका प्रयोग
एल्यूमीनियम के निर्माण में किया जाता है | जिसका प्रयोग बिजली की तारें बनाने,
परिवहन के साधनों में, वायुयान तथा कृत्रिम उपग्रहों के निर्माण में, मशीन
निर्माण, भवन निर्माण, पैकिंग कार्य बर्तन तथा फर्नीचर आदि के निर्माण में किया
जाता है |
भारत
में बॉक्साइट मुख्यत: टरश्यरी निक्षेपों में पाया जाता है और लेटराइट चट्टानों से संबंधित है | भारत
में बॉक्साइट विस्तृत रूप से प्रायद्वीपीय
भारत के पठारी क्षेत्रों अथवा पर्वत श्रेणियों के साथ- साथ देश के तटीय भागों में
पाया जाता है |
भारत के विभिन्न राज्यों में बॉक्साइट के
उत्पादन कों निम्न प्रकार से समझा जा सकता है |
1
उड़ीसा : यह राज्य देश का
लगभग 50 प्रतिशत उत्पादन करके देश सबसे बड़ा उत्पादक है | कालाहांडी तथा संभलपुर
जिले अग्रणी उत्पादक जिले है | दो अन्य जिलों बोलनगीर तथा कोरापुट में उत्पादन कों
बढ़ा रहे है |
2
झारखण्ड : इस राज्य में
लोहारडागा जिले की पैटलैंड्स में बॉक्साइट समृद्ध निक्षेप है |
3
गुजरात : इस राज्य में
भावनगर तथा जामनगर में इसके प्रमुख निक्षेप है |
4
छतीसगढ़ : छतीसगढ़ में बॉक्साइट के निक्षेप अमरकंटक के पठार में
पाए जाते है |
5
मध्यप्रदेश : इस राज्य में
कटनी, जबलपुर, तथा बालाघाट में बॉक्साइट के महत्वपूर्ण निक्षेप है |
6
महाराष्ट्र : यहाँ कोलबा,
थाणे, रत्नागिरी, सतारा, पुणे तथा कोहलपुर महत्वपूर्ण उत्पादक जिले हैं |
7
इनके अलावा कर्नाटक,
तमिलनाडु तथा गोवा बॉक्साइट के गौण उत्पादक है |
ताँबा
ताँबा
एक अलौह खनिज है | ताँबा विद्युत का उत्तम सुचालक है | अत : बिजली की मोटरें,
ट्रांसफार्मर तथा जेनरेटर्स आदि बनाने तथा विद्युत उद्योग के लिए ताँबा एक अपरिहार्य धातु है | यह मिश्रातु
योग्य, आघातवर्ध्य तथा तन्य धातु है | आभूषणों या सुदृढता प्रदान करने के स्वर्ण
के साथ भी मिलाया जाता है |
भारत
में ताँबा का उत्पादन तथा वितरण
भारत
में ताँबे का अभाव है | देश में ताँबे का
कुल भण्डार 139 करोड़ टन है | भारत में ताँबे के खनन तथा प्रगलन का कार्य
हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड (HCL) के द्वारा किया जाता
है | भारत में ताँबे के वितरण कों हम
निम्न प्रकार से समझ सकते हैं |
1) झारखण्ड
: इस राज्य का सिंहभूम जिला अग्रणी उत्पादक है | इसके अलावा संथाल, परगना,
हजारीबाग,पलामू तथा गया जिलों में भी कुछ मात्रा में ताँबे के भण्डार हैं |
2) राजस्थान
: राजस्थान में ताँबा मुख्य रूप से झुंझनु जिले की खेतडी सिंघाना पेटी में पाया
जाता है | इसके अलावा अलवर भीलवाडा तथा उदयपुर जिलों में भी ताँबा पाया जाता है |
3) मध्यप्रदेश
:यहाँ पर ताँबा बालाघाट जिले की खदानों में पाया जाता है |
4) छतीसगढ़:
यहाँ के दुर्ग जिले में ताँबे का उत्पादन किया जाता है |
5) आन्ध्रप्रदेश
: इस राज्य के गंटूर जिले के अग्निगुंडाल में ताँबे का उत्पादन किया जाता है |
6) कर्नाटक:
यहाँ के चित्रदुर्ग तथा हासन जिले में ताँबे का उत्पादन किया जाता है |
7) तमिलनाडु
: यहाँ का दक्षिण आरकाट जिला ताँबा उत्पादक क्षेत्र है |
अभ्रक
अभ्रक एक अधात्विक खनिज है | विद्युतरोधी
(कुचालक) होने के कारण इसका उपयोग मुख्यतः विद्युत तथा इलेक्ट्रोनिक्स उद्योग,बेतार
के तार, वायुयान तथा कंप्यूटर में किया जाता है | आँखों के चश्में, चिमनियों तथा
उच्च तापमान पर काम आने वाली भट्ठियों में
भी इसका प्रयोग किया जाता है | इसके अलावा अभ्रक का उपयोग सौंदर्य प्रसाधन
में तथा औषधियों के निर्माण में भी किया जाता है | इसकी लचक, पारदर्शिता, चमक तथा
कुचालाकता के कारण इसका बहुत महत्व है |
यह सफ़ेद, काले तथा हल्के गुलाबी रंग
की होती है | यह आग्नेय तथा परवर्तित चट्टानों में चादरों के रूप में पाया जाता है
| इसे पतली चादरों में विघटित किया जाता है | जो काफी सख्त तथा सुनम्य होती है
|
भारत
में अभ्रक का उत्पादन तथा वितरण
1) झारखण्ड : भारत का लगभग 60 प्रतिशत अभ्रक इस राज्य से प्राप्त किया जाता है
| यह उच्च कोटि का रूबी अभ्रक है | इया राज्य में अभ्रक की एक लंबी पेटी है | जो
निचले हजारी बाग जिले की 150 किलोमीटर लंबी तथा 22 किलोमीटर
चौड़ी पट्टी में पाया जाता है | इस पेटी कों विश्व का अभ्रक भण्डार भी कहते है |
2) राजस्थान
: इस राज्य में अभ्रक की पेटी 320 किलोमीटर लंबी तथा 100 किलोमीटर चौड़ी पट्टी में पाया जाता है |
जो जयपुर से भीलवाडा और उदयपुर तक विस्तृत है |
3) आन्ध्रप्रदेश
: इस राज्य में नेल्लौर जिले में सर्वोतम अभ्रक पाया जाता है |
4) तमिलनाडु
: यहाँ के कोयम्बटूर, तिरुचिरापल्ली, मदुरई तथा कन्याकुमारी में जिलों में अभ्रक पाया जाता है |
5) कर्नाटक
: इस राज्य के मैसूर तथा हासन जिलों में कुछ मात्रा में अभ्रक मिलता है |
6) अन्य
क्षेत्र : महाराष्ट्र के रत्नागिरी तथा पश्चिमी बंगाल के बाँकुरा जिले में भी अभ्रक के निक्षेप पाए जाते है
|
कोयला
कोयले
का महत्व
आधुनिक
युग में कोयला शक्ति का प्रमुख साधन है | कोयले कों औद्योगिक क्रान्ति का आधार
माना जाता है | कई उद्योगों के लिए कोयला एक प्रमुख कच्चा पदार्थ है | कोयले से
बने कुछ पदार्थों जैसे बैनजोल, कोलतार, मैथनोल, आदि का प्रयोग कई रासायनिक
उद्योगों में किया जाता है | रंग-रोगन, नकली रबड़, प्लास्टिक रिबन, लैम्प आदि
वस्तुएँ कोयले से ही तैयार की जाती है | इस उपयोगिता के कारण कोयले कों ‘काला
सोना’ भी कहा जाता है |
भारत
में कोयला क्षेत्र
भारत
में कोयला प्राप्ति के दो प्रमुख क्षेत्र है | (1) गोंडवाना
कोयला क्षेत्र (2) टर्शियरी
कोयला क्षेत्र
इनका
संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है |
गोंडवाना
कोयला क्षेत्र
इस
काल की चट्टानों में भारत का उच्चकोटि का
लगभग 98 % कोयला मिलता है | इसके प्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित है |
झारखण्ड
यह
राज्य भारत का लगभग 50 % कोयला उत्पन्न करता है |
यहाँ दामोदर घाटी में झरिया, बोकारो,
कर्णपुरा, गिरिडीह तथा डाल्टनगंज प्रमुख खादानें है | झरिया कोयला क्षेत्र भारत की सबसे बड़ी कोयला
खादान है | यहाँ उत्तम किस्म का कोक कोयला मिलता है | जो इस्पात उद्योगों में
प्रयोग किया जाता है |
छत्तीसगढ़
यह
दूसरा महत्वपूर्ण कोयला उत्पादक राज्य है | यहाँ की कई नदी घाटियों में कोयले की
खादानें हैं | यहाँ के सिंगरौली तथा कोरबा क्षेत्र प्रमुख कोयला उत्पादक क्षेत्र
है | यहाँ का कोयला भिलाई इस्पात संयत्र में उपयोग में लाया जाता है |
पश्चिम
बंगाल
यह
तीसरा प्रमुख कोयला उत्पादक राज्य है | यहाँ 1267 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई
रानीगंज की प्राचीन तथा सबसे गहरी कोयले की खादान है |
अन्य
क्षेत्र
आन्ध्रप्रदेश
में गोदावरी नदी घाटी में सिंगरौली कोठगुण्डम तथा तंदूर की नामक खानें है |
महाराष्ट्र
में वर्धा नदी घाटी में चंद्रपुर तथा बल्लापुर प्रमुख कोयला उत्पादक क्षेत्र है |
उड़ीसामें
महानदी की घाटी में तलचेर (तलचर) तथा
रामपुर हिमगिरी प्रमुख कोयला उत्पादक क्षेत्र है |
प्रश्न
: निम्नलिखित में से किस राज्य में प्रमुख तेल क्षेत्र स्थित है ?
क).
असम |
ख).
राजस्थान |
ग).
बिहार |
घ).
तमिलनाडू |
उत्तर
: असम
प्रश्न
: निम्नलिखित में से किस स्थान पर पहला परमाणु ऊर्जा संयत्र स्थापित किया गया था
है ?
क).
कलपक्कम |
ख).
राणाप्रताप सागर |
ग).
नरोरा |
घ).
तारापुर |
उत्तर
: तारापुर
प्रश्न
: निम्नलिखित में से कौन-सा खनिज ‘भूरा हीरा’ के नाम से जाना जाता है ?
क).
लौह |
ख).
मैंगनीज |
ग).
लिगनाइट |
घ).
अभ्रक |
उत्तर
: लिगनाइट
प्रश्न
: निम्नलिखित में से कौन-सा ऊर्जा का अनवीकरणीय स्त्रोत है ?
क).
जल |
ख).
ताप |
ग).
सौर |
घ).
पवन |
उत्तर
: ताप
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