Tuesday, December 24, 2024

LESSON 4 AGRICULTURE 10TH GEOGRAPHY

 

अध्याय -4  (कृषि )

पाठ्य पुस्तक- भूगोल

कक्षा - 10वीं

प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन-सा उस कृषि प्रणाली कों दर्शाता है जिसमें एक ही फसल एक लम्बे-चौड़े क्षेत्र में उगाई जाती है ?

क.     स्थानांतरित कृषि

ख.     बागवानी

ग.      रोपण कृषि

घ.      गहन कृषि

उत्तर: रोपण कृषि

प्रश्न:इनमें से कौन-सी  रबी फसल है ?

क.     चावल  

ख.     मोटे अनाज

ग.      चना  

घ.      कपास

उत्तर: चना 

प्रश्न:इनमें से कौन-सी  एक  फलीदार फसल है ?

क.     दालें  

ख.     मोटे अनाज

ग.      ज्वार तिल

घ.      तिल

उत्तर : दालें

प्रश्न: सरकार निम्नलिखित में से कौन-सी घोषणा  फसलों कों सहायता देने के लिए करती है ?

क.     अधिकतम सहायता मूल्य   

ख.     मध्यम सहायता मूल्य   

ग.      न्यूनतम सहायता मूल्य   

घ.      प्रभावी सहायता मूल्य   

उत्तर : न्यूनतम सहायता मूल्य

प्रश्न: एक पेय फसल का नाम बताएँ तथा उसको उगाने के लिए अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियों का विवरण दें |

उत्तर : चाय एक प्रमुख पेय फसल है |

चाय की फसल कों उगाने के लिए  निम्नलिखित अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियों की आवश्यकता होती है |

1)      चाय के पौधे के लिए उष्ण और उपोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है | इसके पौधे के लिए वर्ष भर उष्ण (गर्म) तथा पाला रहित जलवायु होनी चाहिए |

2)      इसकी फसल के लिए अच्छे जल निकास वाली गहरी उपजाऊ मृदा की आवश्यकता होती है | जो ह्यूमस और जीवाश्म युक्त हो |

3)      चाय की फसल के लिए ढलवाँ भूमि होनी चाहिए जिससे की पानी चाय की झाडियों  की जड़ों में ना रुक सके |

4)      चाय के लिए वर्ष भर समान रूप से वर्षा की हल्की बौछारें पडती रहनी चाहिए |

5)      इस फसल में अधिकतर कार्य हाथों से होता है इसलिए सस्ते तथा कुशल श्रमिक उपलब्ध होने चाहिए |

प्रश्न: भारत की एक खाद्य फसल का नाम बताएँ और यह जहाँ पैदा की जाती है उन क्षेत्रों का विवरण दें |

उत्तर : चावल भारत की एक प्रमुख खाद्य फसल है | हमारा देश चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है |

भारत में चावल  उत्तर और उत्तरी पूर्वी मैदानों , तटीय क्षेत्रों और डेल्टाई प्रदेशों में उगाया जाता है |

नहरों के जाल और नलकूपों की सघनता के कारण पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तरप्रदेश और राजस्थान के कुछ कम वर्षा वाले क्षेत्रों में चावल की फसल उगाना संभव हो पाया है |

 प्रश्न: सरकार द्वारा किसानों के हित में किए गए संस्थागत सुधार कार्यक्रमों की सूची बनाएँ |

उत्तर : स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में केन्द्रीय तथा राज्य सरकारों ने किसानों के हितों के लिए समय –समय पर कृषि में अनेक संस्थागत सुधार किए  है | जिनकी सूची निम्नलिखित है |

1)      कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए सरकार ने जमींदारी प्रथा कों समाप्त कर दिया गया है |

2)      छोटी-छोटी जोतों की चकबंदी करके उन्हें एक जगह मिला दिया गया है | जिससे किसानों कों आर्थिक लाभ हुआ है |

3)      फसल बिमा योजना के द्वारा फसल की बर्बादी की भरपाई का प्रावधान किया गया |

4)      सस्ती ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराने के लिए  ग्रामीण बैंकों और सहकारी ऋण  समितियों की स्थापना की गई |

5)      किसानों के लिए टेलीविजन तथा रेडियो पर विशेष कार्यक्रम  दिखाए जाते है | जो खेती की नवीनतम तकनीकों से किसानों का परिचय करवाते है |

6)      रेडियो तथा टेलीविजन पर विशेष मौसम बुलेटिनों का प्रसारण किया जाता है | जिसमें मौसम की जानकारी डी जाती है और विशेष मौसम में फसलों के बोये जाने की जानकरी डी जाती है |

7)      किसानों कों बिचोलियों और दलालों से  बचाने के लिए  कुछ महत्वपूर्ण फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) निर्धारित करके के हितों की सुरक्षा की गयी है |

8)      किसानों के लाभ के लिए भारत सरकार ने “किसान क्रेडिट कार्ड “ तथा व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना (PAIS) लागू की है |

प्रश्न : दिन –प्रतिदिन कृषि के अंतर्गत भूमि कम हो रही है |क्या आप इसके परिणामों की कल्पना कर सकते हैं ?

उत्तर : कृषि भूमि के बँटवारे और कृषि भूमि का उपयोग अन्य गैर –कृषि कार्यों में होने के परिणाम स्वरूप दिन प्रतिदिन कृषि के अंतर्गत भूमि कम होती ज रही है | इसके कम होने से कई गंभीर परिणाम हो सकते हैं | इनमें से कुछ निम्नलिखित है |

1)      इससे भारत की खाद्य सुरक्षा प्रभावित होगी | इससे निरंतर बढ़ रही जनसँख्या की भोजन की आवश्यकता कों पूरा करने की समस्या आएगी | हमें विदेशों से भारी मात्रा में  खाद्य सामाग्री का आयात करना पड़ेगा |

2)      कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है | भारत के लगभग 70 प्रतिशत लोग कृषि से रोजगार प्राप्त करते है | कृषि भूमि कम होने से लोगों के रोजगार पर प्रभाव पडेगा |

3)      कृषि हमारे देश की राष्ट्रीय आय के प्रमुख स्त्रोतों में से एक है | कृषि भूमि कम होने से राष्ट्रीय आय पर भी प्रभाव पड़ेगा |

4)      कृषि भूमि की कमी से कृषि आधारित उद्योगों कों कच्चा माल नहीं मिल पाएगा | जिससे ये उद्योग पिछड जायेंगें | जैसे कपड़ा उद्योग, चीनी उद्योग, पटसन उद्योग अदि |

5)      कृषि उत्पादन कम होने से हमारे देश की कृषि वस्तुओं की विदेशों में निर्यात करने की शक्ति कम हो जायेगी | जिससे विदेशी व्यापर पर बुरा प्रभाव पडेगा |

प्रश्न :कृषि उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा किए गए उपाय सुझाइए |

अथवा

प्रश्न : भारत में हरित क्रान्ति और श्वेत क्रान्ति कों बढ़ाने वाले विभिन्न प्रौद्योगिकीय और संस्थागत सुधारों का वर्णन कीजिए |

उत्तर:  कृषि उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने  विभिन्न प्रौद्योगिकीय और संस्थागत उपाय किए हैं | परिणाम स्वरूप कृषि उत्पादन में तेजी से वृद्धि हुई | फसल उत्पादन में इस वृद्धि कों “हरित क्रान्ति” कहते है | इसी तरह पशु नस्ल सुधार और पौष्टिक चारा फसलों के उत्पादन से दुग्ध (दूध) उत्पादन में कई गुना बढोतरी हुई है | दुग्ध उत्पादन में इस बढोतरी कों “श्वेत क्रान्ति” या “ऑपरेशन फ्लड” कहते है | इन दोनों क्रान्तियों के  लाने में सरकार ने जो भी प्रौद्योगिकीय और संस्थागत उपाय  किए है उनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है |

प्रौद्योगिकीय  उपाय (प्रौद्योगिकीय सुधार)

1)      ग्रामीण क्षेत्रों में पक्की सडकें बनने और परिवहन के तीव्र साधनों के आने से किसानों कों बहुत अधिक लाभ हुआ है |  किसान अपनी फसल मंडियों में बेचने लगा है | इससे कृषि उत्पादन कों बढाने में मदद मिली है |

2)      सिंचाई की नई विधियों का प्रचलन  है | इनमें ड्रिप सिंचाई विधि तथा छिडकाव विधि प्रमुख है | इससे जल संरक्षण में भी मदद मिलती है |

3)      उत्तम किस्म के बीजों का विकास किया गया है | ये बीज अधिक उत्पादन देते है और इनसे फसल जल्दी तैयार होती है | इससे किसानों कों लाभ हुआ है |

4)      भूमि की उर्वरता बढ़ाने के लिए उर्वरकों उपलब्ध कराई गयी  है | साथ ही जैविक खाद का प्रयोग भी किया जाने लगा है | इससे कृषि उत्पादन बढा है |

5)      कृषि कार्यों के लिए आधुनिक मशीनें उपलब्ध कराई गयी है | जिससे कृषि कार्य तेजी से होने लगा है | इससे किसानों के समय की बचत हुई है |

संस्थागत उपाय (संस्थागत सुधार)

1)      कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए सरकार ने जमींदारी प्रथा कों समाप्त कर दिया गया है |

2)      छोटी-छोटी जोतों की चकबंदी करके उन्हें एक जगह मिला दिया गया है | जिससे किसानों कों आर्थिक लाभ हुआ है |

3)      सूखा, बाढ़, चक्रवात , आग तथाबिमारी के लिए फसल बीमा योजना के द्वारा फसल की बर्बादी की भरपाई का प्रावधान किया गया |

4)      किसानों को सस्ती ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराने के लिए  ग्रामीण बैंकों और सहकारी समितियों  और बैंकों की स्थापना की गई |

5)      किसानों के लिए टेलीविजन तथा रेडियो पर विशेष कार्यक्रम  दिखाए जाते है | जो खेती की नवीनतम तकनीकों से किसानों का परिचय करवाते है |

6)      रेडियो तथा टेलीविजन पर विशेष मौसम बुलेटिनों का प्रसारण किया जाता है | जिसमें मौसम की जानकारी दी जाती है और विशेष मौसम में फसलों के बोये जाने की जानकरी के कार्यक्रम प्रसारित किए जाते है |

7)      किसानों कों बिचोलियों और दलालों से  बचाने के लिए  कुछ महत्वपूर्ण फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) निर्धारित करके के हितों की सुरक्षा की गयी है |

8)      किसानों के लाभ के लिए भारत सरकार ने “किसान क्रेडिट कार्ड (KCC)” तथा व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना (PAIS)” लागू की है |

9)      सरकार ने कृषि के आधुनिकीकरण के लिए और कृषि क्षेत्र में नए अनुसंधान करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की स्थापना की है |

10)   राष्ट्रीय बीज निगम, केन्द्रीय भंडार निगम, भारतीय खाद्य निगम (FCI) तथा  कृषि विश्वविद्यालय आदि संस्थाओं की स्थापना कृषि के विकास के लिए की गई है |

प्रश्न : भारतीय कृषि पर वैश्वीकरण के प्रभावों पर टिप्पणी लिखें |

उत्तर : वैश्वीकरण का अर्थ है एक देश की अर्थव्यवस्था कों विश्व के दूसरे देशों की अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ना | वैश्वीकरण की इस अर्थव्यवस्था ने भारतीय कृषि के स्वरूप कों ही बदल दिया है | भारतीय कृषि पर वैश्वीकरण के प्रभाव निम्नलिखित है |

1)      भारत की निर्वाह कृषि ने व्यापारिक कृषि का रूप धारण कर लिया है | अब किसान उसी फसल का उत्पादन जिसमें उसे अधिकतम लाभ प्राप्त हो |

2)      उन्नत किस्म के बीजों के प्रयोग से कृषि उत्पादों की मात्रा और गुणवता में वृद्धि हुई है | किसान कों अपने उत्पादन का पहले से कहीं अधिक मूल्य प्राप्त होने लगा है |

3)      कृषि उत्पादन बढाने के लिए आधुनिक कृषि यंत्रों तथा नई तकनीकों का प्रयोग होने लगा है | नई तकनीकों द्वारा हमारे देश में मिट्टी और जलवायु की अनुकूल दशाओं का पूरा-पूरा लाभ उठाया जा रहा है | इसके परिणामस्वरूप आज किसान अपने खेत में एक वर्ष में दो या दो से अधिक फसलें उगाने लगा है |

4)      किसानों में कृषि उत्पादन की मात्रा और गुणवता बढाने के लिए आपसी प्रतिस्पर्धा भी बढ़ रही है |

5)      वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप फसलों का विविधीकरण हुआ है | किसान अलग –अलग तरह की फसलें उगाने लगे है |

प्रश्न : चावल की खेती के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ कौन-सी है ? भारत में चावल कहाँ-कहाँ पैदा किया जाता है ?

उत्तर : चावल भारत की एक प्रमुख खाद्य फसल है | हमारा देश चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है | यह एक खरीफ ऋतु की फसल है | इसकी खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियाँ निम्नलिखित है |

1         तापमान : चावल उष्ण कटिबंध का पौधा है | यह गर्म और आद्र जलवायु में अधिक फलता- फूलता है |इसके लिए  250 C से अधिक तापमान की आवश्यकता होती है |

2         वर्षा : चावल की कृषि के लिए  अधिक पानी की आवश्यकता होती है | इसके पौधे की जड़े पानी में डूबी रहनी चाहिए | अत: चावल की खेती के लिए 100 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा आवश्यकता होती है | इससे कम वर्षा वाले  उपयुक्त सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होने पर चावल की खेती की ज सकती है |

3         भूमि : इसकी खेती के लिए समतल भूमि अधिक उपयुक्त रहती है |

4         मृदा : चावल की खेती के लिए उपजाऊ मृदा की आवश्यकता होती है | जलोढ़ मृदा तथा डेल्टाई मृदा इसके लिए बहुत अच्छी मानी जाती है |

5         श्रम  : चावल की खेती के लिए अधिकतर कार्य हाथों से किया जाता है | इसलिए इसकी खेती के लिए कुशल तथा सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता होती है |  इस कारण इसकी कृषि उन भागों में होती है जहाँ जनसँख्या अधिक होती हो और सस्ते श्रमिक आसानी से मिल जाएँ |

प्रमुख उत्पादक क्षेत्र

भारत में चावल  उत्तर और उत्तरी पूर्वी मैदानों , तटीय क्षेत्रों और डेल्टाई प्रदेशों में उगाया जाता है | नहरों के जाल और नलकूपों की सघनता के कारण पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तरप्रदेश और राजस्थान के कुछ कम वर्षा वाले क्षेत्रों में चावल की फसल उगाना संभव हो पाया है |

प्रश्न : गेहूँ की खेती के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ कौन-सी है ? भारत में गेंहूँ कहाँ-कहाँ पैदा किया जाता है ?

गेंहूँ एक रबी फसल है | यह भारत की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण खाद्यान फसल है | इसके उत्पादन में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है | इसकी खेती के लिए अनुकूल परिस्थितियों तथा भारत में इसके उत्पादन और वितरण का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है |

गेहूँ की खेती के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ

1         तापमान : गेंहूँ के बोते समय शीतल और आर्द्र (नमी युक्त) जलवायु तथा पकते समय उष्ण तथा शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है | अत: इसे बोते समय 100 से 150 सेंटीग्रेड तापमान और काटते समय  250 सेंटीग्रेड  के आसपास तापमान होना चाहिए |

2         वर्षा : इसकी खेती के लिए 50 सेंटीमीटर से 75 सेंटीमीटर तक वर्षा की पर्याप्त होती है | इससे कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई की सहायता से इसकी खेती की जा सकती है | उत्तर –पश्चिम भारत में शीत ऋतु में होने वाली वर्षा इसके लिए बहुत उपयोगी होती है |

3         भूमि :  गेंहूँ की खेती के लिए भूमि समतल होनी चाहिए | इससे मशीनों के प्रयोग और सिंचाई में सुविधा रहती है |

4         मिट्टी : इसकी खेती के लिए मिट्टी उपजाऊ होनी चाहिए | दोमट मिट्टी इसकी फसल के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है |

5         श्रम तथा पूँजी : अधिकतर कार्य मशीनों से होने के कारण इसमें श्रम की आवश्यकता कम होती है तथा पूँजी की अधिक आवश्यकता पडती है |

उत्पादन तथा वितरण :

गेंहूँ के उत्पादन में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है | भारत में गेंहूँ के उत्पादन करने वाले स्थानों कों दो क्षेत्रों में बाँटा जाता है | ये उत्तर पश्चिम में गंगा- सतलुज का मैदान तथा दक्कन का काली मिट्टी का क्षेत्र  है |

भारत में गेंहूँ उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्य पंजाब हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा राजस्थान है | इनके अतिरिक्त मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र में भी कुछ क्षेत्रों में इसकी खेती की जाती है |

प्रश्न : कपास  की खेती के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ कौन-सी है ? भारत में कपास कहाँ-कहाँ पैदा किया जाता है ?

कपास सूती कपडा उद्योग का महत्वपूर्ण कच्चा माल है | कपास के पौधे का मूल स्थान भारत ही माना जाता है | यह नकदी फसल है | इसके उत्पादन में भारत का विश्व में तीसरा स्थान है | यह एक खरीफ ऋतु की फसल हैं | इसकी फसल कों तैयार होने में  6 से 8  महीने लग जाते  हैं |  इसकी खेती के लिए अनुकूल परिस्थितियों तथा भारत में इसके उत्पादन और वितरण का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है |

कपास की खेती के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ

1         तापमान : कपास की खेती के लिए  उच्च तापमान की आवश्यकता होती है |  

2         सूर्य का प्रकाश : कपास के तैयार होने के लिए खुली धुप निकली रहनी चाहिए | खुली धुप मिलने से कपास में चमक बनी रहती है |  अत; इसके लिए वर्ष में 210 दिन पाला रहित होने चाहिए |

3         वर्षा : इसकी खेती के लिए 50 सेंटीमीटर तक वर्षा की पर्याप्त होती है | सिंचाई की सहायता से इसकी खेती की जा सकती है |

4         मिट्टी : इसकी खेती के लिए काली मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है | जो दक्कन के पठार में उपलब्ध है |

5         श्रम तथा पूँजी: कपास के पौधे से कपास चुनने केलिए अधिक तथा कुशल श्रम की आवश्यकता होती है |

उत्पादन तथा वितरण :

कपास के उत्पादन में भारत का विश्व में तीसरा स्थान है | दक्कन का पठार भारत में कपास का उत्पादन करने वाला प्रमुख क्षेत्र है |

भारत में कपास उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्य गुजरात, महाराष्ट्र मध्य प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, पंजाब हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश हैं |

प्रश्न : गन्ने की खेती के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ कौन-सी है ? भारत में गन्ने की खेती कहाँ-कहाँ की जाती है ?

उत्तर : गन्ना एक उष्ण तथा उपोष्ण कटिबंधीय फसल है | गन्ने का मूल स्थान भारत ही माना जाता है | गन्ना चीनी उद्योग का महत्वपूर्ण कच्चा माल है |  इसके अलावा गन्ने के रस का प्रयोग खांडसारी,गुड, शीरा तथा शक्कर बनाने में भी किया जाता है | यह एक खरीफ ऋतु की फसल हैं |  इसकी खेती के लिए अनुकूल परिस्थितियों तथा भारत में इसके उत्पादन और वितरण का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है |

गन्ने की खेती के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ

1         तापमान : गन्ने की खेती के लिए उच्च तापमान की आवश्यकता होती है |  इसके लिए 210 सेल्सियस  से  270 सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है | पाला इसके लिए हानिकारक होता है | कटाई के लिए स्वच्छ आकाश होना जरुरी है |

2         वर्षा : इसकी खेती के लिए 75 सेंटीमीटर  से 100 सेंटीमीटर तक वर्षा की पर्याप्त होती है | इसके अतिरिक्त सिंचाई की पर्याप्त सुविधा होनी चाहिए | अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों तथा उचित सिंचाई की व्यवस्था वाले क्षेत्रों में इसकी पैदावार अधिक होती है |

3         भूमि  : इसके लिए  अच्छे जल निकास वाली समतल भूमि होनी चाहिए |

4         मिट्टी :  गन्ने की खेती के लिए उपजाऊ भूमि का आवश्यकता होती है | जिस मिट्टी में चूने तथा फॉस्फोरस की मात्रा अधिक होती है | उसमें गन्ने की पैदावार अधिक होती है |

5         श्रम तथा पूँजी: गन्ने की बुआई से लेकर कटाई तक अधिकतर काम हाथों से होता है | अत: इसके लिए अधिक शारीरिक श्रम की आवश्यकता होती है|

उत्पादन तथा वितरण :

गन्ने के उत्पादन में ब्राजील के बाद भारत का विश्व में दूसरा स्थान है |  भारत के सभी क्षेत्रों में गन्ने की खेती की जाती है |

भारत में गन्ना  उत्पादन करने वाला प्रमुख राज्य उत्तर प्रदेश है जहाँ देश के कुल उत्पादन का लगभग आधा भाग पैदा होता है | इसके अलावा महाराष्ट्र, पंजाब, आंध्र प्रदेश,  बिहार, कर्नाटक, हरियाणा तथा तमिलनाडु प्रमुख राज्य हैं |

प्रश्न : मक्का की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन करें | भारत में इसके उत्पादन तथा वितरण का वर्णन कीजिए |

अथवा

प्रश्न : मक्का की खेती के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ कौन-सी है ? भारत में मक्का कहाँ-कहाँ पैदा किया जाता है ?

मक्का एक ऐसी फसल है जिसका उपयोग हम खाद्यान्न के साथ-साथ चारे के रूप में करते हैं |

इस फसल को उगाने के लिए निम्नलिखित भौगोलिक परिस्थितियाँ होनी चाहिए |

1         एक खरीफ ऋतु की फसल है | बिहार जैसे कुछ राज्यों में यह फसल रबी की ऋतु में भी उगाई जाती है |

2         मक्का की खेती के लिए 21O C से 27O C तापमान की आवश्यकता होती है |

3         यह पुरानी जलोढ़ मृदा में अच्छी प्रकार से उगाई जाती है |

भारत में उत्पादन

आधुनिक प्रौद्योगिक (तकनीकी) निवेशों जैसे उच्च पैदावार देने वाले बीज, रासायनिक उर्वरक और सिंचाई के उपयोग से इस फसल के उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है | कर्नाटक, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश,  बिहार आंध्रप्रदेश तथा तेलंगाना प्रमुख मक्का उत्पादक राज्य है |

प्रश्न : ज्वार की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन करें | भारत में इसके उत्पादन तथा वितरण का वर्णन कीजिए |

अथवा

प्रश्न : ज्वार की खेती के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ कौन-सी है ? भारत में ज्वार कहाँ-कहाँ पैदा किया जाता है ?

भारत में उगाए जाने वाले प्रमुख मोटे अनाजों में से  ज्वार एक है | इसका प्रयोग चारे के लिए भी किया जाता है | उत्पादन की दृष्टि से यह भारत की तीसरी सबसे महत्वपूर्ण फसल है | यह पोषक तत्वों से भरपूर होता है | इसकी खेती के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ तथा इसके प्रमुख उत्पादक राज्य निम्नलिखित है |

ज्वार की  खेती के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ

1.       तापमान : यह अधिक तापमान में होने वाली फसल है | भारत के दक्षिणी राज्यों में यह खरीफ तथा रबी दोनों ही ऋतुओं में बोया जाता है | जबकि उत्तरी भारत में केवल खरीफ ऋतु में ही बोया जाता है |

2.       वर्षा : इसकी खेती के लिए वर्षा पर निर्भर करती है | यह अधिकतर आर्द्र प्रदेशों में उगाई जाती है | जहाँ सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती ||

3.       मिट्टी : यह जलोढ़ मिट्टी तथा काली मिट्टी वाले प्रदेशों में अच्छी तरह से उगता और विकसित होता है |

प्रमुख उत्पादक क्षेत्र :

महाराष्ट्र भारत का सबसे बड़ा ज्वार त्पादक राज्य है |  जो देश के कुल ज्वार उत्पादन का आधे से अधिक उत्पादन करता है | इसके कर्नाटक, आंध्रप्रदेश तथा मध्यप्रदेश  ज्वार उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्य है |

प्रश्न :  बाजरे की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन करें | भारत में इसके उत्पादन तथा वितरण का वर्णन कीजिए |

उत्तर : बाजरा भारत में उगाए जाने वाले प्रमुख मोटे अनाजों में से एक है | यह पोषक तत्वों से भरपूर होता है | लोहे के मात्रा इसमें बहुत अधिक होती है | इसकी खेती के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ तथा इसके प्रमुख उत्पादक राज्य निम्नलिखित है |

बाजरे की  खेती के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ

1.       तापमान : यह एक खरीफ की फसल है | इसके लिए अधिक तापमान की आवश्यकता होती है |

2.       वर्षा : इसकी खेती के लिए कम वर्षा की आवश्यकता होती है | 50 सेंटीमीटर से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में यह आसानी से बोया ज सकता है |

3.       मिट्टी : बाजरा रेतीली (बलुआ) मिट्टी या उथली काली मिट्टी वाले प्रदेशों में अच्छी तरह से उगता और विकसित होता है |

प्रमुख उत्पादक क्षेत्र :

राजस्थान भारत का सबसे बड़ा बाजरा उत्पादक राज्य है | इसके बाद उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात तथा हरियाणा बाजरा उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्य है |

प्रश्न : रागी की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन करें | भारत में इसके उत्पादन तथा वितरण का वर्णन कीजिए |

 

उत्तर : रागी भारत में उगाए जाने वाले प्रमुख मोटे अनाजों में से एक है | यह पोषक तत्वों से भरपूर होता है | इसमें लोहे, कैल्शियम तथा पेट कों साफ़ करने वाले तत्व पाए जाते हैं | इसकी खेती के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ तथा इसके प्रमुख उत्पादक राज्य निम्नलिखित है |

रागी की  खेती के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ

1.       तापमान : यह शुष्क क्षेत्रों  की फसल है | इसके लिए अधिक तापमान की आवश्यकता होती है |

2.       वर्षा : इसकी खेती के लिए अन्य मोटे अनाज की अपेक्षा अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है | |

3.       मिट्टी : रागी लाल, काली, दोमट तथा रेतीली मिट्टी वाले प्रदेशों में अच्छी तरह उगती है |

प्रमुख उत्पादक क्षेत्र :

कर्नाटक तथा तमिलनाडु राज्य भारत में सबसे अधिक रागी उत्पन्न करते हैं | इसके बाद हिमाचलप्रदेश  उत्तराखंड, सिक्किम तथा अरुणाचल प्रदेश उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्य है |

प्रश्न : मोटे अनाज किन खाद्यान फसलों कों कहते है ? भारत में इनकी खेती की संक्षिप्त जानकारी दीजिए |

 

भारत में उगाए जाने वाले मोटे अनाजों में ज्वार बाजरा तथा रागी प्रमुख है | इनकी खेती की संक्षिप्त जानकारी निम्नलिखित है |

ज्वार

ज्वार प्रमुख खाद्यान्न फसल है | इसका प्रयोग चारे के लिए भी किया जाता है | उत्पादन की दृष्टि से यह भारत की तीसरी सबसे महत्वपूर्ण फसल है | यह पोषक तत्वों से भरपूर होता है | इसकी खेती के लिए अधिक तापमान में होना चाहिए है | भारत के दक्षिणी राज्यों में यह खरीफ तथा रबी दोनों ही ऋतुओं में बोया जाता है | जबकि उत्तरी भारत में केवल खरीफ ऋतु में ही बोया जाता है |  इसकी खेती वर्षा पर निर्भर करती है | यह अधिकतर आर्द्र प्रदेशों में उगाई जाती है | जहाँ सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती | यह जलोढ़ मिट्टी तथा काली मिट्टी वाले प्रदेशों में अच्छी तरह से उगता और विकसित होता है | महाराष्ट्र भारत का सबसे बड़ा ज्वार त्पादक राज्य है |  जो देश के कुल ज्वार उत्पादन का आधे से अधिक उत्पादन करता है | इसके कर्नाटक, आंध्रप्रदेश तथा मध्यप्रदेश  ज्वार उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्य है |

बाजरा

बाजरा भारत में उगाए जाने वाले प्रमुख मोटे अनाजों में से एक है | यह पोषक तत्वों से भरपूर होता है | लोहे के मात्रा इसमें बहुत अधिक होती है | यह एक खरीफ की फसल है | इसके लिए अधिक तापमान की आवश्यकता होती है | इसकी खेती के लिए कम वर्षा की आवश्यकता होती है | 50 सेंटीमीटर से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में यह आसानी से बोया ज सकता है | बाजरा रेतीली (बलुआ) मिट्टी या उथली काली मिट्टी वाले प्रदेशों में अच्छी तरह से उगता और विकसित होता है | राजस्थान भारत का सबसे बड़ा बाजरा उत्पादक राज्य है | इसके बाद उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात तथा हरियाणा बाजरा उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्य है |

रागी

रागी पोषक तत्वों से भरपूर मोटा अनाज होता है | इसमें लोहे, कैल्शियम तथा पेट कों साफ़ करने वाले तत्व पाए जाते हैं | यह शुष्क क्षेत्रों  की फसल है  इसकी खेती के लिए अधिक तापमान की आवश्यकता होती है | अन्य मोटे अनाज की अपेक्षा रागी की खेती के लिए अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है | | रागी लाल, काली, दोमट तथा रेतीली मिट्टी वाले प्रदेशों में अच्छी तरह उगती है | कर्नाटक तथा तमिलनाडु राज्य भारत में सबसे अधिक रागी उत्पन्न करते हैं | इसके बाद हिमाचलप्रदेश  उत्तराखंड, सिक्किम तथा अरुणाचल प्रदेश उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्य है |

प्रश्न : चाय की खेती के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ कौन-सी है ? भारत में चाय कहाँ-कहाँ पैदा की जाती है ?

 

उत्तर : चाय एक प्रमुख पेय फसल है | जिसे अंग्रेज भारत लाए थे | यह एक रोपण कृषि की फसल है |  चाय की फसल कों उगाने के लिए  निम्नलिखित अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियों की आवश्यकता होती है |

1)      चाय के पौधे के लिए उष्ण और उपोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है | इसके पौधे के लिए वर्ष भर उष्ण (गर्म) तथा पाला रहित जलवायु होनी चाहिए |

2)      इसकी फसल के लिए अच्छे जल निकास वाली गहरी उपजाऊ मृदा की आवश्यकता होती है | जो ह्यूमस और जीवाश्म युक्त हो |

3)      चाय की फसल के लिए ढलवाँ भूमि होनी चाहिए जिससे की पानी चाय की झाडियों  की जड़ों में ना रुक सके |

4)      चाय के लिए वर्ष भर समान रूप से वर्षा की हल्की बौछारें पडती रहनी चाहिए |

5)      इस फसल में अधिकतर कार्य हाथों से होता है इसलिए सस्ते तथा कुशल श्रमिक उपलब्ध होने चाहिए |

भारत में चाय का उत्पादन तथा वितरण

चाय के उत्पादन में भारत 2018 के आँकड़ों के अनुसार चीन के बाद दूसरे स्थान पर है |

चाय के  मुख्य उत्पादक क्षेत्रों में  असम, पश्चिमी बंगाल के दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी जिलों की पहाडियाँ, तमिलनाडु तथा केरल हैं |

इनके अलावा हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, मेघालय, आंध्र प्रदेश और त्रिपुरा आदि राज्यों में भी चाय उगाई जाती है |

प्रश्न : भारत में कहवा (कॉफी ) की उत्पादन तथा वितरण का वर्णन कीजिए |

उत्तर :     भारतीय कॉफी अपनी गुणवत्ता के लिए विश्व में प्रसिद्ध है |

भारत में यमन से लाई गई अरेबिका किस्म की कॉफी की पैदावार की जाती है | जिसकी विश्व में माँग रहती है |

भारत में इसकी खेती की शुरुआत बाबा बुदन की पहाड़ियों से हुई थी |

भारत में इसकी खेती नीलगिरी की पहाड़ियों के आस पास की जाती है |

इसकी खेती करने वाले प्रमुख राज्य कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल हैं |

प्रश्न : दलहन किसे कहते है ? भारत में इनकी खेती की संक्षिप्त जानकारी दीजिए |

उत्तर : हमारे भोजन में उपलब्ध दालों को दलहन कहा जाता है | शाकाहारी भोजन में दालें सबसे अधिक प्रोटीन दायक होती है |इन्हें फलीदार फसलें भी कहा जाता है | भारत में  दालें खरीफ तथा रबी दोनों फसली ऋतुओं में उगाई जाती है हैं |

खरीफ ऋतु में तुर (अरहर), मूंग तथा उडद, की दालें बोई जाती है | जबकि मटर, मसूर तथा चना रबी की ऋतु में बोई जाने वाली दलहन फसलें हैं | 

इसमें नमी की आवश्यकता कम होती है और इन्हें शुष्क परिस्थितियों में उगाया जा सकता है | फलीदार फसलें होने के कारण अरहर को छोड़कर अन्य सभी दालें वायु से नाइट्रोजन लेकर भूमि की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाती हैं | इसलिए दालों की खेती आमतौर पर अन्य फसलों के आवर्तन (Rotating) में बोया जाता है |

भारत विश्व में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक है | भारत में  मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश और कर्नाटक दालों के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं |

प्रश्न : तिलहन से आप क्या समझते हैं ? प्रमुख तिलहन फसलें कौन –कौन सी हैं ? भारत में तिलहन फसलों के उत्पादन पर नोट लिखें |

उत्तर : वे फसलें जिनके बीजों से तेल प्राप्त किया जाता है उन्हें तिलहन फसलें कहा जाता है |

2018 के बाद भारत चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा तिलहन उत्पादक देश है | सन् 2018 में तोरिया के उत्पादन में भारत विश्व में कनाडा और चीन के बाद तीसरे स्थान पर था | देश में कुल बोये गए क्षेत्र के 12 प्रतिशत भाग पर कई प्रकार की तिलहन की फसलें उगाई जाती है |

मूँगफली, सरसों, नारियल, तिल, सोयाबीन, अरंडी, बिनौला, आलसी और सूरजमुखी भारत में उगाई जाने वाली प्रमुख तिलहन फसलें हैं |  

इनमें से अधिकतर तिलहन फसलें खाद्य हैं और हमारा खाना बनाने में प्रयोग की जाती है |

इनमें से कुछ तेल के बीजों को साबुन, प्रसाधन (श्रंगार का सामान ),और उबटन उद्योग में कच्चे माल के रूप में भी प्रयोग किया जाता है |

मूँगफली भरता की प्रमुख तिलहन फसल है | यह खरीफ ऋतु की फसल है | देश में मुख्य तिलहनों के कुल उत्पादन का आधा भाग इसी फसल से प्राप्त होता है | गुजरात प्रमुख मूँगफली उत्पादक राज्य है|  इसके अतिरिक्त राजस्थान, तमिलनाडु और महाराष्ट्र प्रमुख मूँगफली उत्पादक राज्य है |

आलसी और सरसों रबी की फसलें है |

तिल उत्तरी भारत में खरीफ की फसल है जबकि दक्षिणी भारत में यह रबी की फसल है |

इसी प्रकार अरंडी भी खरीफ और रबी दोनों ही फसली ऋतुओं में बोया जाता है |   

प्रश्न : भारत में बागवानी फसलों के उत्पादन पर नोट लिखें | (भारत में फलों तथा सब्जियों की खेती का वर्णन कीजिए | )

उत्तर : सन् 2018 में भारत का विश्व में फलों और सब्जियों के उत्पादन में चीन के बाद दूसरा स्थान है |

भारत उष्ण कटिबंधीय और शीतोष्ण कटिबंधीय दोनों ही प्रकार के फलों का उत्पादक है |

भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग –अलग प्रकार के फलों  और सब्जियों का उत्पादन होता है | जो निम्नलिखित है |

         (i)         महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बंगाल आम के  प्रमुख उत्पादक राज्य है |

        (ii)        नागपुर  (महाराष्ट्र) और चेरापूंजी (मेघालय) के संतरा के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं |

       (iii)       केला उत्पादक प्रमुख राज्य केरल, मिजोरम, महाराष्ट्र और तमिलनाडु हैं |

       (iv)       लीची  का उत्पादक प्रमुख राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार हैं |

        (v)        अनन्नास उत्पादक प्रमुख राज्य मेघालय है | 

       (vi)       अंगूरों के उत्पादन में महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना का मुख्य स्थान है |

      (vii)      हिमाचल प्रदेश और जम्मू व कश्मीर के सेब नाशपाती, खूबानी और अखरोट विश्व भर में प्रसिद्ध हैं |

     (viii)     मटर, फूलगोभी, बन्दगोभी, प्याज, टमाटर, बैंगन और आलू के उत्पादन में भारत का प्रमुख स्थान है |

प्रश्न : रबड़ की खेती के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ कौन-सी है ? भारत में रबड़  कहाँ-कहाँ पैदा की जाती है ?

उत्तर : रबड़ रोपण कृषि की एक फसल है | यह रबड़ उद्योगों में प्रयोग किया  जाने वाला एक महत्वपूर्ण कच्चा माल है |

रबड़ भूमध्यरेखीय क्षेत्र की फसल है | परन्तु विशेष परिस्थितियों में उष्ण और उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में भी यह उगाई जाती है | इस की खेती के लिए निम्नलिखित अनुकूल भौगोलिक परिस्थितयाँ होनी चाहिए |

इसके लिए नम और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है | अत: इसकी फसल के लिए 25° सेल्सियस से अधिक तापमान की आवश्यकता होती है | साथ ही इसको 200 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है |

भारत में मुख्य रूप से केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, और मेघालय में गारों पहाड़ियों में उगाया जाता है |

प्रश्न : जूट(पटसन) की खेती के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ कौन-सी है ? भारत में जूट(पटसन)  कहाँ-कहाँ पैदा की जाती है ?

उत्तर : जूट को सुनहरा रेशा तथा पटसन भी कहा जाता है | इसकी खेती के लिए निम्नलिखित भौगोलिक परिस्थितियों की आवश्यकता होती है |

जूट के बढ़ने के समय उच्च तापमान की आवश्यकता होती है |

जूट की फसल बाढ़ के मैदानों में जल निकास वाली उर्वरक मिट्टी में उगाई जाती है | जहाँ हर वर्ष बाढ़ से आई नई मिट्टी जमा होती रहती है |

प्रमुख उत्पादक क्षेत्र

भारत में पश्चिम बंगाल, बिहार, असम और ओडिशा तथा मेघालय जूट के प्रमुख उत्पादक राज्य है |

उपयोग

यह जूट उद्योग के लिए प्रमुख कच्चा माल है | इसका प्रयोग बोरियाँ, चटाई, रस्सी, तंतु व धागे, गलीचे उर दूसरी दस्तकारी की वस्तुएँ बनाने में किया जाता है |

बाजार में जूट की माँग कम होने के कारण

बाजार में जूट की माँग कम होने के कारण निम्नलिखित हैं |

     (i)            जूट की उच्च लागत

    (ii)            कृत्रिम रेशों और पैकिंग सामग्री , विशेषकर नाइलोन की कीमत कम होना

प्रश्न : भूदान और ग्रामदान आंदोलन का संक्षिप्त वर्णन कीजिए ?

उत्तर : महात्मा गाँधी के अध्यात्मिक उत्तराधिकारी विनोबाभावे जब आंध्रप्रदेश के एक गाँव पोचमपल्ली में ग्रामीणों को संबोधित कर रहे थे | तो कुछ भूमिहीन गरीब ग्रामीणों ने उनसे अपने आर्थिक भरण –पोषण के लिए कुछ भूमि माँगी तो विनोबा भावे ने उनको आश्वासन दिया की वे सहकारी खेती करें तो भारत सरकार से बात करके उनके लिए जमीन उपलब्ध करवायेंगे | अचानक श्री राम चन्द्र रेड्डी उठे और उन्होंने 80 भूमिहीन ग्रामीणों को 80 एकड़ भूमि बाँटने की बात की | इसी को भूदान के नाम से जाना जाता है |

विनोबा भावे की यात्राओं के दौरान उन्होंने भूमि दान करने का विचार पूरे भारत में फैलाया तो कुछ जमींदार जो अनेक गाँवों के मालिक थे उन्होंने भूमिहीनों को पूरा गाँव  दान करने की पेशकश की | इसी को ग्रामदान कहा गया |

विनोबा भावे द्वारा शुरू किए गए भूदान –ग्रामदान आंदोलन को रक्तहीन क्रांति का नाम दिया गया |

प्रश्न : प्रारम्भिक जीवन निर्वाह कृषि की विशेताएँ बताइए है ?   

उत्तर : इस कृषि कि को आदिम निर्वाह कृषि भी कहा जाता है | इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं |

इस प्रकार की कृषि में कृषि भूमि के छोटे टुकड़े पर आदिम (पुराने) कृषि औजारों जैसे लकड़ी के हल, डाओ (Dao) और खुदाई करने वाली छड़ी आदि का प्रयोग किया जाता है |

प्रारम्भिक जीवन निर्वाह कृषि परिवार अथवा समुदाय के सदस्यों की सहायता से की जाती है |

इस प्रकार की कृषि प्राय: मानसून , मृदा की प्राकृतिक उर्वरता और फसल उगाने के लिए अन्य पर्यावरणीय परिस्थितियों पर निर्भर करती है |

कर्तन दहन प्रणाली (Slash and Burn)कृषि या स्थानांतरित कृषि इसी प्रकार की कृषि का एक प्रकार है |  

प्रश्न : प्राम्भिक जीवन निर्वाह कृषि के एक प्रकार का वर्णन कीजिए |

अथवा

प्रश्न : कर्तन दहन प्रणाली (Slash and Burn)कृषि का वर्णन कीजिए |

उत्तर : कर्तन दहन प्रणाली (Slash and Burn)कृषि प्रारम्भिक जीवन निर्वाह कृषि का एक प्रकार है |

जिसमें किसान जमीन के टुकड़े साफ़ करके उन पर अपने परिवार के  भरण-पोषण के लिए अनाज व अन्य फसलें उगता है |

जब मृदा की उपजाऊ शक्ति (उर्वरता) कम हो जाती है तो किसान उस भूमि के टुकड़े से स्थानांतरित हप जाते है और कृषि के लिए भूमि का दूसरा टुकड़ा साफ़ करते हैं  और उस पर खेती करते हैं |

बार-बार स्थानांतरण करने के कारण इसे स्थानांतरित कृषि भी कहते है |

इस प्रकार की कृषि के प्रकार में स्थानान्तरण के कारण प्राकृतिक प्रक्रियाओं के द्वारा मिट्टी की उर्वरता शक्ति बढ़ जाती है | क्योंकि किसना उर्वरक अथवा किसी अन्य आधुनिक तकनीकों का प्रयोग इस प्रकार की कृषि में नहीं करता इसलिए इस प्रकार की कृषि में उत्पादकता कम होती है |

प्रश्न : भारत के विभिन्न भागों में कर्तन –दहन प्रणाली कृषि को किन नामों से जाना जाता है ?

उत्तर : भारत के विभिन्न भागों में कर्तन –दहन प्रणाली कृषि को विभिन्न नामों से जाना जाता है |

     (i)            उत्तरी पूर्वी भारत के राज्यों असम,मेघालय, मिजोरम और नागालैंड में इस झूम कहा जाता है |

   (ii)            मणिपुर में इसे पमालू (Pamlou) कहा जाता है |

 (iii)            छतीसगढ़ के बस्तर जिलें में और अंडमान निकोबार द्वीप समूह में इसे दीपा कहा जाता है | 

प्रश्न: विश्व के विभिन्न भागों में कर्तन दहन प्रणाली कृषि को किन-किन नामों से जाना जाता है ?

उत्तर : विश्व के विभिन्न भागों में कर्तन दहन प्रणाली कृषि को निम्नलिखित नामों से जाना जाता है

(i)     मैक्सिको और मध्य अमेरिका में ‘मिल्पा’

(ii)   वेनेजुएला में ‘कोनुको’

(iii) मध्य अफ्रीका में ‘मसोले’

(iv)  इंडोनेशिया तथा मलेशिया में ‘लादांग’

(v)    वियतनाम में ‘रे’

 

प्रश्न: भारत के विभिन्न क्षेत्रों में प्रारम्भिक जीवन निर्वाह कृषि की जाती है ? विभिन्न क्षेत्रों में प्रारम्भिक जीवन निर्वाह कृषि को किन नामों से जाना जाता है ?

उत्तर : भारत के विभिन्न क्षेत्रों में प्रारम्भिक जीवन निर्वाह कृषि निम्नलिखित नामों से जानी जाती है |

     (i)            मध्य प्रदेश में ‘बेबर’ अथवा ‘दहिया’

   (ii)            आंध्रप्रदेश में ‘पोडू’ अथवा  ‘पेंडा’

 (iii)            ओडिशा में’ पामडाबी’ या ‘कोमान’ या ‘बरीगाँ’

  (iv)            पश्चिमी घाट में ‘कुमारी’

    (v)            दक्षिणी –पूर्वी राजस्थान में ‘वालरे’ या ‘वाल्टरे’

  (vi)            हिमालयन क्षेत्र में ‘खिल’

(vii)            झारखंड में ‘कुरुवा’

(viii)            उत्तरी पूर्वी प्रदेशों में ‘झूम’

प्रश्न : गहन जीवन निर्वाह कृषि की विशेताएँ क्या है ?

उत्तर :  गहन निर्वाह कृषि उन प्रदेशों में की जाती है जहाँ भूमि पर जनसँख्या का दवाब अधिक होता है |

यह श्रम-गहन खेती है जहाँ अधिक उत्पादन के लिए अधिक मात्रा में जैव –रासायनिक निवेशों और सिंचाई का प्रयोग किया जाता है |

प्रश्न : कृषि भूमि पर अधिक दवाब क्यों है ?

उत्तर: भू स्वामित्व में विरासत के अधिकार के कारण पीढ़ी दर पीढ़ी जोतों (खेतों) का आकार छोटा होता जा रहा है | किसानों के पास वैकल्पिक रोजगार न होने के कारण किसान सीमित भूमि से अधिकतम पैदावार लेने कि कोशिश करते है | इन्हीं कारणों से कृषि भूमि पर बहुत अधिक दवाब बढ़ता जा रहा है |

प्रश्न : वाणिज्यिक कृषि की मुख्य विशेषताओं के बारे में बताएँ ?

उत्तर: इस प्रकार की कृषि  के मुख्य लक्षण आधुनिक निवेशों जैसे अधिक पैदावार देने वाले बीजों, रासायनिक उर्वरकों और किट नाशकों के प्रयोग के द्वारा उच्च पैदावार प्राप्त करना है | रोपण कृषि वाणिज्यिक प्रकार की कृषि  है |

प्रश्न: वाणिज्यिक कृषि के एक प्रकार  (रोपण कृषि )का की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ?

उत्तर : रोपण कृषि की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं |

                 (i)            रोपण कृषि एक प्रकार की वाणिज्यिक कृषि का प्रकार है |

               (ii)            इस प्रकार की खेती में लंबे चौड़े क्षेत्र में एकल बोई जाती है |

             (iii)            यह कृषि उद्योग और कृषि के बीच एक अन्तरापृष्ठ (Interface) है |

              (iv)            रोपण कृषि व्यापक क्षेत्र में की जाती है |

                (v)            यह कृषि अत्यधिक पूँजी और श्रमिकों की सहायता से की जाती है |

              (vi)            इससे प्राप्त सारा उत्पादन उद्योगों में कच्चे माल के रूप प्रयोग किया जाता है |

            (vii)            भारत में चाय, कॉफी, रबड़. गन्ना, केला आदि महत्वपूर्ण रोपण कृषि की फसलें हैं | असम और पश्चिम बंगाल में चाय, कर्नाटक में कॉफी मुख्य रोपण फसलें हैं |

          (viii)            क्योंकि रोपण कृषिमें उत्पादन बिक्री के लिए होता है | इसलिए रोपण कृषि के विकास में परिवहन और संचार साधन से संबंधित उद्योग तथा बाज़ार महत्वपूर्ण  योगदान देते हैं |

प्रश्न : भारत में फसली ऋतुओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए ?

अथवा

प्रश्न : भारत में कौन – कौन सी शस्य ऋतुएँ पाई जाती हैं ? इनमें विभिन्न क्षेत्रों में कौन – कौन सी फसलें बोई जाती हैं ? संक्षेप में वर्णन कीजिए |

उत्तर : भारत में भौतिक विविधताओं के साथ साथ संस्कृतियों की भी बहुलता है | जिसको हम भारत की कृषि  पद्धतियों में और शस्य प्रारूपों में देखते हैं | भारत में अनेक प्रकार के खाद्यान्न, दालें, रेशे वाली फसलें, फल, सब्जियाँ मसाले आदि की कृषि विभिन्न समय में की जाती है | जिन्हें हम तीन शस्य ऋतुओं में विभाजित करते हैं | ये फसली ऋतुएँ  रबी खरीफ तथा जायद हैं |

रबी ऋतु :

रबी ऋतु की फसलें शीत ऋतु में अक्टूबर से दिसम्बर के मध्य तक बोई जाती है और ग्रीष्म ऋतु में अप्रैल से जून के मध्य तक काटी जाती है | गेहूँ, चना, सरसों जौ तथा मटर कुछ रबी की मुख्य फसलें हैं |

            यद्यपि ये फसलें देश के विस्तृत भाग में बोई जाती हैं | फिर भी पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश गेहूँ तथा अन्य रबी फसलों के उत्पादन करने वाले मुख्य राज्य हैं | इन राज्यों में शीत ऋतु में पश्चिमी विक्षोभों से होने वाली वर्षा रबी ऋतु की फसलों की वृद्धि में सहायक होती हैं |

खरीफ ऋतु :

 इस ऋतु की फसलें भारत के विभिन्न भागों में मानसून के आगमन के समय बोई जाती है और सितम्बर –अक्टूबर में काट ली जाती है | इस ऋतु में बोई जाने वाली मुख्य फसलें चावल, मक्का, ज्वार बजारा, , तुर (अरहर), उडद मूँग, कपास, जूट, मूँगफली और सोयबीन हैं |

चावल की खेती मुख्य रूप से असम, पश्चिमी बंगाल, ओडिशा, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल और महाराष्ट्र में विशेषकर कोंकण तटीय क्षेत्रों में, उत्तर प्रदेश  और बिहार में की जाती है | पिछले कुछ वर्षों में हरियाणा और पंजाब में भी यह खरीफ ऋतु की मुख्य फसल बन गई गई है | 

असम, पश्चिमी बंगाल और ओडिशा में धान (चावल) की एक वर्ष में अलग अलग समय पर तीन फसलें उगाई जाती हैं | जिन्हें ऑस, अमन और बोरो कहा जाता है |

जायद ऋतु :

रबी और खरीफ फसल ऋतुओं के बीच ग्रीष्म ऋतु में बोई जाने वाली फसल को जायद कहा जाता है | जायद ऋतु में मुख्य रूप से तरबूज, खरबूजे, खीरे, सब्जियों और चारे की फसलों की खेती की जाती है |

प्रश्न : कृषि की दृष्टि से भारत एक महत्वपूर्ण देश है | उदाहरण देकर स्पष्ट करें |

उत्तर :  कृषि की दृष्टि से भारत एक महत्वपूर्ण देश है | जो निम्न उदाहरणों से स्पष्ट है |

     (i)            भारत की दो तिहाई जनसँख्या कृषि कार्यों में संलग्न है |

   (ii)            हमारे अधिकाँश खाद्य पदार्थ कृषि से ही प्राप्त होते हैं |

 (iii)            यह उद्योगों के लिए  कच्चा माल भी पैदा करती है |  जैसे वस्त्र उद्योग के लिए कपास, चीनी उद्योग के लिए गन्ना, चाय उद्योग के लिए चाय की पत्तियाँ और रबड़ उद्योग के लिए प्राकृतिक रबड़ |

प्रश्न : भारतीय कृषि विदेशी मुद्रा प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है | क्यों ?

उत्तर : जैसे चाय, कॉफी, मसाले आदि कृषि उत्पादों का निर्यात भारत विदेशों को करता है | जिससे  विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है |

प्रश्न : भारत में उगाई जाने वाली रेशेदार फसलें कौन सी हैं ?

उत्तर : भारत में उगाई जाने वाली रेशेदार फसलें कपास, जूट, सन तथा रेशम है |

प्रश्न : रेशम किट पालन या रेशम उत्पादन से क्या अभिप्राय है ?

उत्तर : रेशम के उत्पादन के लिए रेशम के कीड़ों का पालन रेशम उत्पादन (Sericulture) कहलाता है |  इसके अंतर्गत मलबरी (शहतूत) के पेड़ की हरी पत्तियों पर रेशम का कीड़ा पाला जाता है | जिससे कोकून प्राप्त होता है | उस कोकून से रेशम तैयार किया जाता है |

प्रश्न : कुछ नकदी फसलों के नाम बताएँ |

उत्तर : रबड़, चाय, कपास, गन्ना तथा जूट आदि नकदी फसलें हैं जिन्हें बाजार में बेचकर धन प्राप्त किया जाता है |

प्रश्न : खाद्यान फसलें कौन सी हैं ?

उत्तर : चावल और गेहूँ प्रमुख खाद्यान्न फसलें हैं |

प्रश्न: किस आंदोलन को रक्तहीन क्रांति का नाम दिया गया ?

उत्तर: विनोबा भावे द्वारा शुरू किए गए भूदान –ग्रामदान आंदोलन को रक्तहीन क्रांति का नाम दिया गया |


Saturday, September 7, 2024

COMPOSITION AND STRUCTURE OF ATMOSPHERE


 

प्रश्न  1                    वायुमंडल किसे कहते हैं ?

उत्तर :           वायुमंडल विभिन्न गैसों का मिश्रण है जो पृथ्वी को चारों ओर से ढके हुए है |

प्रश्न  2                    वायुमंडल के द्रव्यमान का 99 प्रतिशत भाग कितने किलोमीटर की ऊँचाई तक पाया जाता है ?

उत्तर :           32 किलोमीटर

प्रश्न  3                    ऑक्सीजन गैस वायुमंडल में कितनी ऊँचाई तक पाई जाती है ?

उत्तर :           120 किलोमीटर

प्रश्न  4                    जलवाष्प वायुमंडल में कितनी ऊँचाई तक पाई जाती है ?

उत्तर :           90 किलोमीटर

प्रश्न  5                    कार्बन  डाई ऑक्साइड गैस वायुमंडल में कितनी ऊँचाई तक पाई जाती है ?

उत्तर :           90 किलोमीटर

प्रश्न  6                    ओज़ोन गैस वायुमंडल में कहाँ पाई जाती है ?

उत्तर :           ओज़ोन गैस वायुमंडल में समतापम मंडल में पृथ्वी की सतह से 10 से 50 किलोमीटर के बीच पाई जाती है |

प्रश्न  7                    ओज़ोन गैस पर संक्षिप्त नोट लिखों |

उत्तर :           ओज़ोन गैस वायुमंडल में समतापम मंडल में पृथ्वी की सतह से 10 से 50 किलोमीटर के बीच पाई जाती है | यह वायुमंडल का महत्वपूर्ण घटक है | इस गैस कि परत एक फिल्टर की तरह कार्य करती है | यह सूर्य से निकलने वाली पैराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर लेती है और उनको पृथ्वी तक नहीं पहुँचने देती | जिससे पृथ्वी का तापमान अधिक नहीं हो पाता | ये पैराबैंगनी किरणों के हानिकारक प्रभावों से मानव तथा जीवों को बचाती है |

प्रश्न  8                    वायुमंडल के संघटन की व्याख्या करें |

अथवा

वायुमंडल में पाई जाने वाली विभिन्न गैसों, जलवाष्प तथा धूलकणों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए |

 

उत्तर :           वायुमंडल विभिन्न गैसों का मिश्रण है जो पृथ्वी को चारों ओर से ढके हुए है | इसके संघटन में विभिन्न प्रकार की गैसें, जैसे नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, आर्गन, कार्बन डाई ऑक्साइड, ओजोन, हीलियम, हाइड्रोजन, निओन, फ़्रीओन,  क्रेप्टो, जेनन आदि शमिल हैं |  इनके अलावा वायुमंडल में जलवाष्प तथा धूलकण भी पायें जाते हैं |  जिनकी संक्षिप्त व्याख्या निम्नलिखित है |

  1.  नाइट्रोजन गैस  : इस गैस की मात्रा वायुमंडल में सबसे अधिक पाई जाती है | जो कि वायुमंडल के कुल द्रव्यमान का 78.8 प्रतिशत है | यह गैसे आसानी से अन्य तत्वों के साथ रासायनिक अभिक्रिया नहीं करती | यह मृदा में स्थिर हो जाती है | इस गैस का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह वस्तुओं को तेजी से जलने से बचाती है | नाइट्रोजन पेड़ –पौधों में प्रोटीन का निर्माण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है | नाइट्रोजन गैस के कारण ही वायुदाब, पवनों की शक्ति तथा प्रकाश के परावर्तन का पता चलता है |
  2.  ऑक्सीजन गैस : यह गैस जीवन दायनी गैस है | क्योंकि इसके बिना हम साँस नहीं ले सकते | ऑक्सीजन वायुमंडल के कुल द्रव्यमान का 20.95 भाग है | यह गैस वायुमंडल की निचली परतों में पाई जाती है | वायुमंडल में 120 किलोमीटर की ऊँचाई के बाद ऑक्सीजन गैस की मात्रा नगण्य हो जाती है | यह गैस ईंधन को जलाने के लिए आवश्यक है |  
  3.   आर्गन गैस  :     यह वायुमंडल में तीसरी सबसे अधिक मात्रा में पाई जाने वाली गैस है | जो वायुमंडल के कुल द्रव्यमान का 0.93 प्रतिशत है |
  4.  कार्बन डाई ऑक्साइड गैस:  यह गैस वायुमंडल में केवल यह गैस वायुमंडल वायुमंडल के कुल आयतन का केवल 0.036 भाग ही है | जो वायुमंडल में 90 किलोमीटर की ऊँचाई तक पाई जाती है | यह एक भारी गैस है और वायुमंडल की निचली परतों में पाई जाती है | इसका अधिकांश भाग पृथ्वी कि सतह के निकट ही होता है | कम मात्रा के होने के बावजूद भी यह एक महत्वपूर्ण गैस है | क्योंकि पेड़-पौधों के लिए प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के लिए अनिवार्य गैस है | इसके अलावा यह लघु तरंगदैधर्य वाली सौर विकिरण के लिए पारगम्य है लेकिन दीर्घ तरंगदैधर्य वाली पार्थिव विकिरण के लिए अपारगम्य है | अत: यह गैस ग्रीन हाउस प्रभाव (हरित गृह प्रभाव) के लिए उत्तरदायी है | और वायुमंडल की निचली परतों को गर्म रखती है | जैव ईंधन के अधिक जलाए जाने के कारण इस गैस की मात्रा तेजी से बढ़ रही है |
  5. ओजोन गैस : ओज़ोन गैस वायुमंडल में समतापम मंडल में पृथ्वी की सतह से 10 से 50 किलोमीटर के बीच पाई जाती है | यह वायुमंडल का महत्वपूर्ण घटक है | इस गैस कि परत एक फिल्टर की तरह कार्य करती है | यह सूर्य से निकलने वाली पैराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर लेती है और उनको पृथ्वी तक नहीं पहुँचने देती | जिससे पृथ्वी का तापमान अधिक नहीं हो पाता | ये पैराबैंगनी किरणों के हानिकारक प्रभावों से मानव तथा जीवों को बचाती है |
  6. हाइड्रोजन  गैस : यह वायुमंडल में पाई जाने वाली सबसे हल्की गैसों में से एक है | जो वायुमंडल की ऊपरी परतों में पाई जाती है | यह वायुमंडल में बहुत ही कम मात्रा में विद्यमान है | यह बहुत ही ज्वलनशील गैस है |
  7.  हीलियम गैस : यह वायुमंडल में पाई जाने वाली सबसे हल्की गैसों में से एक है | जो वायुमंडल की ऊपरी परतों में पाई जाती है |
  8. अन्य गैसें : उपरोक्त गैसों के अलावा निओन, फ़्रीओन,  क्रेप्टो, तथा जेनन जैसी अन्य गैसें भी वायुमंडल में उपस्थित है|
  9.  जलवाष्प : जलवाष्प वायुमंडल में उपस्थित एक परिवर्तनीय तत्व है | जो ऊँचाई के साथ –साथ घटती है | वायुमंडल में अधिकतम वायुमंडल में अधिकतम यह वायु के द्रव्यमान का 4 प्रतिशत तक होती है | ठंडे ध्रुवीय क्षेत्रो में तथा गर्म रेगिस्तानों जैसे शुष्क प्रदेशों में यह बहुत कम होती है जबकि आर्द्र और उष्ण प्रदेशों में यह अधिक होती है | विषुवत वृत्त से ध्रुवों की ओर जाने पर जलवाष्प की मात्रा में कमी आने लगती है |यह सूर्य से आने वाले ताप के कुछ भाग को अवशोषित करती है तथा पृथ्वी से उत्पन्न ताप को संग्रहित करती है | यह पृथ्वी के वायुमंडल को न टो अधिक गर्म होने देती और न ही अधिक ठंडा इस प्रकार यह पृथ्वी के लिए कम्बल का काम करती है | 
  10.  धूलकण : विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त वायुमंडल में उपस्थित छोटे –छोटे कण जैसे समुद्री नमक, महीन मिट्टी, धुएँ की कालिमा, राख, पराग, उल्काओं के टूटे हुए कण आदि को सम्मलित रूप से धूलकण कहा जाता है | धूलकण  प्राय: वायुमंडल के निचले भाग में ही मौजूद होते है | लेकिन कभी कभार संवहनीय धाराओं के द्वारा ये वायुमंडल में काफी ऊँचाई तक पहुँच जाते है | धूलकण आर्द्र्ताग्राही केन्द्र की तरह काम करते हैं इनके चारों ओर जलवाष्प की बूंदे संघनित हो जाती है और मेघों (बादलों) का निर्माण करती है | आकाश का नीला रंग भी धूलकणों के कारण ही दिखाई देता है | सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय आकाश का नारंगी तथा लाल रंग का दिखना इन्हीं के कारण होता है |

Friday, August 30, 2024

Lesson water

Pradhan Mantri Krishi Sinchayee Yojana (PMKSY) 
Pradhan Mantri Krishi Sinchayee Yojana has been launched by the Central Government during 2015-16 with an overarching vision to ensure access to some means of protective irrigation for all agricultural farms in the country, thus bringing much desired rural prosperity. 
Some of the broad objectives of the this programmes are to: 
• Enhance the physical access of water on the farm and expand cultivable area under assured irrigation (Har khet ko pani) 
• Promote integration of water source, distribution and its efficient use, to make best use of water through appropriate technologies and practices.
• Improve on-farm water use efficiency to reduce wastage and increase availability both in duration and exent; irrigation and other water saving technologies (Per drope more crop) • Introduce sustainable water conservation practices 
• Ensure the integrated development of rain-fed areas using the waters held approach towards soil and water conservation, regeration of ground water, providing livelihood options, etc.

Watershed management 
Watershed management basically refers to efficient management and conservation of surface and groundwater resources.

 It involves prevention of runoff and storage and recharge of groundwater through various methods like percolation tanks, recharge wells, etc. 
However, in broad sense watershed management includes conservation, regeneration and judicious use of all resources – natural (like land, water, plants and animals) and human with in a watershed.
 Watershed management aims at bringing about balance between natural resources on the one hand and society on the other. 

The success of watershed development largely depends upon community participation.

The Central and State Governments have initiated many watershed development and management programmes in the country. 

Some of these are being implemented by nongovernmental organisations also. 

Haryali Haryali Haryali is a watershed development project sponsored by the Central Government which aims at enabling the rural population to conserve water for drinking, irrigation, fisheries and afforestation. The Project is being executed by Gram Panchayats with people’s participation.
 Atal Bhujal Yojana (Atal Jal) is being implemented in 8220 water stressed Gram Panchayats of 229 administrative blocks/ talukas in 80 districts of seven states,viz. Gujarat, Haryana, Karnataka, Madhya Pradesh, Maharashtra, Rajasthan, and Uttar Pradesh. The selected States account for about 37 per cent of the total number of water-stressed (over-exploited, critical and semi-critical) blocks in India. One of the key aspects of ATAL JAL is to bring in behavioural changes in the community, from the prevailing attitude of consumption to conservation and smart water management. 

Neeru-Meeru (Water and You) programme (in Andhra Pradesh) and Arvary Pani Sansad (in Alwar, Rajasthan) have taken up constructions of various water-harvesting structures such as percolation tanks, dug out ponds (Johad), check dams, etc., through people’s participation.

Tamil Nadu has made water harvesting structures in the houses compulsory. No building can be constructed without making structures for water harvesting. Watershed development projects in some areas have been successful in rejuvenating environment and economy. 

However, there are only a few success stories. In majority of cases, the programme is still in its nascent stage. There is a need to generate awareness regarding benefits of watershed development and management among people in the country, and through this integrated water resource management approach water availability can be ensured on sustainable basis.
Rainwater harvesting is a method to capture and store rainwater for various uses. 

It is also used to recharge groundwater aquifers. It is a low cost and eco-friendly technique for preserving every drop of water by guiding the rain water to borewell, pits and wells.

Rainwater harvesting

Rainwater harvesting increases water availability, checks the declining groundwater table, 
improves the quality of groundwater through dilution of contaminants, like fluoride and nitrates, prevents soil erosion, and flooding and arrests salt water intrusion in coastal areas if used to recharge aquifers.
Rainwater harvesting has been practised through various methods by different communities in the country for a long time. 
Traditional rainwater harvesting in rural areas is done by using surface storage bodies, like lakes, ponds, irrigation tanks, etc. 
In Rajasthan, rainwater harvesting structures locally known as Kund or Tanka (a covered underground tank) are constructed near or in the house or village to store harvested rainwater 
There is a wide scope to use rainwater harvesting technique to conserve precious water resource. 
It can be done by harvesting rainwater on rooftops and open spaces. 
Harvesting rainwater also decreases the community dependence on groundwater for domestic use. 
Besides bridging the demand supply gap, it can also save energy to pump groundwater as recharge leads to rise in groundwater table. 
These days rainwater harvesting is being taken up on massive scale in many states in the country. 
Urban areas can specially benefit from rainwater harvesting as water demand has already outstripped supply in most of the cities and towns. 
Apart from the above mentioned factors, the issue desalinisation of water particularly in coastal areas and brackish water in arid and semi-arid areas,
transfer of water from water surplus areas to water deficit areas through inter-linking of rivers can be important remedies for solving water problem in India. 
However, the most important issue from the point of view of individual users, household and communities is pricing of water.

The objective of the National Water Policy, 2012 is to assess the existing situation and to propose a framework for a plan of action with a unified national perspective. 
In order to achieve the objective of the Policy, a number of recommendations have been made therein for conservation, development and improved management of water resources of the country. 
Some of the salient features of national water policy 2012 are:
• Emphasis on the need for a national water framework law, comprehensive legislation for optimum development of inter-State rivers and river valleys. 
• Water, after meeting the pre-emptive needs for safe drinking water and sanitation, achieving food security, supporting poor people dependent on agriculture for their livelihood and high priority allocation for minimum eco-system needs, be treated as economic good so as to promote its conservation and efficient use. • Adaptation strategies in view of climate change for designing and management of water resources structures and review of acceptability criteria has been emphasized. 
• A system to evolve benchmarks for water uses for different purposes, i.e., water footprints, and water auditing be developed to ensure efficient use of water. 
• Removal of large disparity in stipulations for water supply in urban areas and in rural areas has been recommended. • Water resources projects and services should be managed with communi