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Tuesday, November 23, 2021

Meaning,Types and Causes and Consequences of Migration

 

प्रवास का अर्थ

किसी विशेष उद्देश्य से लोगों का एक स्थान कों छोकर दूसरे स्थान पर जाकर रहना प्रवास कहलाता है |

प्रवास की प्रक्रिया

प्रवास की प्रक्रिया के अंतर्गत व्यक्ति का अपने स्थान कों छोड़कर जाने और दूसरे स्थान पर आकर रहना दोनों ही प्रकार की प्रक्रिया कों शामिल किया जाता है | ये निम्नलिखित दो प्रकार की होती है |

A.     आप्रवास (In-Migration)

 

जब लोग किसी नए स्थान पर आकर रहने लगते है | तो इस प्रक्रिया कों आप्रवास कहते है |

B.     उत्प्रवास  आप्रवास (Out- Migration)

 

जब लोग एक स्थान कों छोडकर चले जाते हैं | तो इस प्रक्रिया कों उत्प्रवास कहते है |

समय के  अवधि अनुसार प्रवास के प्रकार

प्रवास के समय के अवधि अनुसार प्रवास तीन प्रकार का होता है |  स्थाई, अस्थाई तथा मौसमी प्रवास | इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है |

A.     स्थाई प्रवास

जब व्यक्ति किसी स्थान कों छोड़कर चला जाए और दूसरे स्थान पर स्थाई रूप से रहने लगे तो इस प्रकार के प्रवास कों स्थाई प्रवास कहते है | महिलाओं अधिकतर विवाह के बाद इसी तरह का प्रवास करती हैं |

B.     अस्थाई प्रवास

जब व्यक्ति कुछ समय के लिए अपने स्थान कों छोड़कर रहने लगता है | तो इस तरह के प्रवास कों अस्थाई प्रवास कहते है | जैसे विद्यार्थी द्वारा शिक्षा प्राप्त करने के लिए अपने जन्म स्थान कों छोड़कर जाना और शिक्षा ग्रहण करने पर वापस लौट आना |

C.     मौसमी प्रवास

जब प्रवास एक विशेष समय (मौसम) में किया जाता है तो यह मौसमी प्रवास कहलाता है | इस प्रवास का मुख्य रूप से कृषि क्रिया में होता है | लोग कृषि कार्य करने के लिए जैसे कटाई या बुआई के मौसम में प्रवास करते हैं और काम समाप्त हो जाने पर अपने घर लौट आते है |  इसी तरह जम्मू कश्मीर से चरवाहे सर्दी के समय मैदानी क्षेत्रों में आ जाते है और गर्मियों की शुरुआत में वापस  पहाड़ी क्षेत्रों में जाने लगते है | 

गंतव्य स्थान के आधार पर प्रवास के प्रकार

गंतव्य स्थान के आधार पर प्रवास दो प्रकार का होता है | आंतरिक प्रवास तथा अंतर्राष्ट्रीय प्रवास |

आंतरिक प्रवास (Inland Migration)

प्रवास देश की सीमा में हो तो आंतरिक प्रवास कहलाता है |

अंतर्राष्ट्रीय प्रवास (International Migration)

प्रवास जब देश की सीमा के बाहर  (एक देश से दूसरे देश में ) हो तो अंतर्राष्ट्रीय होता है |

प्रवास की धाराएँ

प्रवास की चार मुख्य धाराएँ हैं |

(a)    गांव से गांव    (b)   गांव से नगर      (c)   नगर से नगर      (d)  नगर से गांव

आप्रवासी और उत्प्रवासी में अन्तर

आप्रवासी (in-migrant )

वे लोग जो किसी नए स्थान पर आकर बस जाते हैं, आप्रवासी कहलाते हैं |

उत्प्रवासी (out- migrant)

वे लोग जो अपने स्थान कों छोड़कर  बाहर चले जाते है, उत्प्रवासी कहलाते हैं |

उद्गम स्थान और गंतव्य स्थान में अन्तर

उद्गम स्थान

वह स्थान जहाँ से लोग चले जाते हैं या गमन कर जाते है | उस स्थान कों उद्गम  स्थान कहते है | उत्प्रवास के प्रवास के कारण  यहाँ उद्गम स्थान की जनसंख्या में कमी होती है |

गंतव्य स्थान

वह स्थान जहाँ पर लोग आकार बीएस जाते हैं | उस स्थान कों गंतव्य स्थान कहते है | आप्रवास के कारण गंतव्य स्थान की जनसंख्या में वृद्धि होती है |

प्रवास कों प्रभावित करने वाले कारक

लोग अपने जन्म स्थान से भावनात्मक रूप से जुड़े होते हैं | लेकिन बेहतर आर्थिक और सामाजिक जीवन जीने के लिए या सामाजिक और राजनैतिक कारणों से अपने जन्म स्थान कों छोड़कर प्रवास करते है |  इसी तरह बहुत से ऐसे कारक होते है जो लोगों कों प्रवास करने लिए प्रोत्साहित करते हैं या उन्हें बाध्य करते है | प्रवास कों प्रभावित करने वाले कारकों कों हम दो भागों में बाँट सकते हैं |  ये प्रतिकर्ष कारक तथा अपकर्ष कारक  कहलाते है |  इनका संक्षिप्त वर्णन निम्न प्रकार से है |

प्रतिकर्ष कारक (Push Factors of Migration)

वे कारक जो लोगों कों उनके निवास स्थान या उद्गम स्थान कों छोड़कर जाने का कारण बनते है उन्हें प्रवास के प्रतिकर्ष कारक कहते हैं | इन कारकों के अंतर्गत बेरोजगारी, रहन-सहन की निम्न दशाएँ, राजनैतिक उपद्रव, प्रतिकूल जलवायु, बाढ़ और सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं का बार बार आना, महामारियाँ तथा सामाजिक और आर्थिक पिछड़ापन आदि शामिल हैं | जिनके कारण लोग अपना स्थान छोड़कर चले जाते है |

अपकर्ष कारक  (Pull Factors of Migration)

वे कारक जो लोगों कों विभिन्न स्थानों से आकार रहने के लिए आकर्षित करते हैं उन्हें प्रवास के अपकर्ष कारक कहते है | इन कारकों में रोजगार के अच्छे अवसर, रहन-सहन की उच्च दशाएँ, राजनैतिक शांति और स्थायित्व, जीवन और सम्पति की सुरक्षा, अनुकूल जलवायु, तथा सामाजिक और आर्थिक रूप से उन्नत समाज आदि शामिल हैं | ये ऐसे कारक है जो किसी स्थान (गंतव्य स्थान ) कों उद्गम स्थान की अपेक्षा अपनी ओर आकर्षित करते हैं | 

प्रश्न : भारत में पुरुष प्रवास के मुख्य कारण क्या है ?

उत्तर :  काम और रोजगार |

प्रश्न :  भारत के किस शहर में सर्वाधिक संख्या में आप्रवासी आते हैं ?

उत्तर : महाराष्ट्र

प्रश्न :  भारत में प्रवास की निम्न धाराओं में से कौन सी धारा एक धारा पुरुष प्रधान है ?

क.     ग्रामीण से नगरीय

ख.     नगर से नगरीय

ग.      ग्राम से ग्राम

घ.      नगर से ग्राम

उत्तर : ग्राम से नगरीय

प्रश्न :  किस नगरीय समूहन में प्रवासी जनसंख्या का अंश सर्वाधिक है ?

उत्तर : मुंबई नगरीय समूहन में |

जनगणना में प्रवास पर पूछे जाने वाले प्रश्न

भारतीय जनगणना में प्रवास पर निम्नलिखित प्रश्न पूछे जाते है |

1.       क्या व्यक्ति इसी गांव अथवा शहर में पैदा हुआ है ?  यदि नहीं, तब जन्म के स्थान (ग्रामीण या नगरीय) की स्थिति , जिले, और राज्य का नाम और यदि भारत के बहार का है तो जन्म के देश के नाम की सूचना प्राप्त की जाती है |

2.       क्या व्यक्ति इस गांव या शहर में कहीं और से आया है ? यदि हाँ, तब निवास के पूर्व (पिछले) स्थान के स्तर (ग्रामीण या नगरीय) , जिले और राज्य का नाम और यदि भारत के बहार का है तो जन्म के देश के नाम के बारे में आगे प्रश्न पूछे जाते है |

भारत की जनगणना में प्रवास की गणना के आधार

भारतीय जनगणना में प्रवास की गणना दो आधारों पर की जाती है |  जीवन पर्यंत प्रवासी  तथा  पिछले निवास स्थान से प्रवासी |

1.       जीवन पर्यन्त प्रवासी (जन्म स्थान से प्रवासी ) : यदि प्रवास करने वाले व्यक्ति के जन्म का स्थान गणना के स्थान से भिन्न है तो उसे जीवन पर्यन्त प्रवासी या जन्म स्थान से प्रवासी के नाम से जाना जाता है |

2.       पिछले निवास स्थान से प्रवासी  : यदि  प्रवास करने वाले व्यक्ति के निवास का पिछला स्थान गणना के स्थान से भिन्न है तो उसे निवास के पिछले स्थान से प्रवासी के रूप जाना जाता है |

पुरुष वरणात्मक (चयनात्मक) प्रवास के मुख्य कारण

पुरुष बड़ी संख्या में  ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों की ओर रोजगार की तलाश में प्रवास करते हैं | 

स्त्री वरणात्मक (चयनात्मक) प्रवास के मुख्य कारण

स्त्रियाँ विवाह के कारण प्रवास करती हैं | क्योंकि भारत में लड़की कों विवाह के बाद अपने मायके  के घर से सुसराल के घर तक प्रवास करना होता है | जो अधिकाँश ग्रामीण क्षेत्र से ग्रामीण क्षेत्र में ही होता है |

उद्गम और गंतव्य स्थान की आयु व लिंग संरचना पर ग्रामीण नगरीय प्रवास का प्रभाव

बड़ी संख्या में युवक रोजगार की तलाश में ग्रामीण इलाकों कों से नगरों की ओर प्रवास करते हैं | इससे ग्रामीण क्षेत्रों में युवकों की संख्या में कमी हो जाती है | इसके विपरीत नगरों में इनके जाने से नगरों में इनकी संख्या बढ़ जाती है | गाँवों में बूढ़े, बच्चें तथा स्त्रियाँ रह जाती हैं | अत: ग्रामीण नगरीय प्रवास से उद्गम तथा गंतव्य दोनों ही स्थानों की आयु एवं लिंग संरचना पर प्रभाव पड़ता है |

भारत में  लोगों के  ग्रामीण  से नगरीय क्षेत्रों में प्रवास के कारण 

किसी भी क्षेत्र में प्रवास के लिए दो प्रकार के कारक उत्तरदायी होते है | प्रतिकर्ष कारक तथा अपकर्ष कारक |

प्रतिकर्ष कारक (Push Factors of Migration)

वे कारक जो लोगों कों उनके निवास स्थान या उद्गम स्थान कों छोड़कर जाने का कारण बनते है उन्हें प्रवास के प्रतिकर्ष कारक कहते हैं |  भारत में प्रवास के लिए उत्तरदायी प्रतिकर्ष कारक निम्नलिखित है |

गरीबी, कृषि भूमि पर जनसंख्या के अधिक दबाव, स्वास्थ्य सुविधाओं के आभाव आदि के कारण भारत में लोग  ग्रामीण  से नगरीय क्षेत्रों में प्रवास करते हैं |

प्राकृतिक कारक जैसे बाढ़, सूखा, चक्रवातीय तूफान, भूकंप तथा सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाएँ  लोगों कों प्रवास के लिए प्रेरित करती है |

युद्ध, स्थानीय संघर्ष भी प्रवास के लिए प्रतिकर्ष कारक पैदा करते है |

 

अपकर्ष कारक  (Pull Factors of Migration)

वे कारक जो लोगों कों विभिन्न स्थानों से आकार रहने के लिए आकर्षित करते हैं उन्हें प्रवास के अपकर्ष कारक कहते है | भारत में प्रवास के निम्न लिखित कारण हैं |

गरीबी , कृषि भूमि पर जनसंख्या के अधिक दबाव, स्वास्थ्य सुविधाओं के आभाव आदि के कारण भारत में लोग  ग्रामीण  से नगरीय क्षेत्रों में प्रवास करते हैं |

प्राकृतिक कारक जैसे बाढ़, सूखा, चक्रवातीय तूफान, भूकंप तथा सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाएँ  लोगों कों प्रवास के लिए प्रेरित करती है |

युद्ध, स्थानीय संघर्ष भी प्रवास के लिए प्रतिकर्ष कारक पैदा करते है |

प्रवास की तरंगें (भारतीय लोगों के अंतर्राष्ट्रीय प्रवास तथा उनके कारण )

भारतीय इतिहास में भरतीय लोगों के प्रवास या भरतीय प्रसार की तीन मुख्य तरंगें देखने कों मिलती है |

पहली तरंग

भारतीय लोंगों के द्वारा उत्प्रवास की पहली तरंग ब्रिटिश काल के दौरान पैदा हुई | जब अंग्रेजों ने उत्तर प्रदेश और बिहार से मॉरीशस,कैरिबियन द्वीप समूह (ट्रिनिडाड, टोबैगो और गुयाना ), फिजी और दक्षिणी अफ्रीका में , फ्रांसीसियों और जर्मनी ने रियूनियन द्वीप, गुआडेलोप, मार्टीनीक और सूरीनाम में ; फ्रांसीसी और डच लोगों तथा पुर्तगालियों ने गोवा, दमन और दीव से अंगोला, मोजाम्बिक व अन्य देशों में करारबद्ध लाखों लोगों श्रमिकों कों रोपण कृषि में काम करने के लिए भेजा था | इस तरह के सभी प्रवास भारतीय उत्प्रवास अधिनियम या गिरमिटिया एक्ट नामक समयबद्ध अनुबंध के तहत किए गए थे | इस अधिनियम के  द्वारा गए मजदूरों कों अमानवीय परिस्थितियों में रखा जाता था और उनकी दशा दासों जैसी ही होती थी |

दूसरी तरंग

यह तरंग 1970 के दशक में आई | इस तरंग ने  प्रवासियों की नूतन समय में व्यवसायियों, शिल्पियों व्यापारियों तथा फैक्ट्री मजदूरों कों निकटवर्ती देशों में भेजा | इस तरंग में जाने वाले लोग बेहतर आर्थिक अवसरों की तलाश में थाईलैंड,मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया, ब्रूनेई आदि देशों में जाकर बस गए | यह प्रवृति अब भी जारी है | 1970 के दशक में पश्चिमी एशिया के देशों में अचानक ही तेल के उत्पादन में वृद्धि हुई जिसके परिणाम स्वरूप भारत से बहुत बड़ी संख्या में कुशल तथा अर्धकुशल श्रमिकों कों आकृषित किया | कुछ बाह्य प्रवास उधमियों, भंडार मालिकों, व्यवसायिकों का भी पश्चिमी देशों में प्रवास हुआ है |

तीसरी तरंग

इस तरंग में उच्च शिक्षा प्राप्त कुशल व्यक्तियों ने प्रवास किया | वर्ष 1969 के बाद डॉक्टरों और अभियंताओं ने तथा 1980 के बाद सॉफ्टवेयर अभियंताओं, प्रबंध परामर्शदाताओं, वित्तीय विशेषज्ञ संचार माध्यम से संबंधित आदि  व्यक्तियों ने प्रवास किया | ये लोग उच्च स्तरीय व्यतीत करने तथा अधिक धन कमाने के लिए भारत कों छोड़कर संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाड़ा, यू०  के० (यूनाइटेड किंग), ऑस्ट्रेलिया न्यूजीलैंड न्यूजीलैंड, जर्मनी देशों में आ आकर बस गए | 1991 में उदारीकरण के बाद शिक्षा और ज्ञान आधारित भारतीय उत्प्रवासियों नें  भारतीय प्रसार  कों “विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली प्रसार में से एक बना दिया है |

भारत में अंतर्राष्ट्रीय प्रवास

आंतिरक प्रवास की प्रक्रिया के साथ - साथ भारत के में अंतर्राष्ट्रीय प्रवास भी देखने कों मिलता है | अंतर्राष्ट्रीय प्रवास के अंतर्गत पड़ोसी देशों से आप्रवास और उन देशों में भारत के लोग उत्प्रवास करते है | सन् 2011 की जनगणना के अनुसार  50 लाख लोगों का भारत में अन्य देशों से आप्रवास हुआ है | इनमें से अधिकाँश आप्रवासी भारत के पड़ोसी देशों से आए है | सन् 2001 की जनगणना के अनुसार  96 प्रतिशत आप्रवासी भारत के पड़ोसी देशों से आए थे जो सन् 2011 में घटकर 88.9 प्रतिशत रह गए |  अकेले बंगलादेश से 27.47 लाख से अधिक प्रवासी भारत में है | जो कुल आप्रवासियों का 51.2  प्रतिशत है | उसके बाद नेपाल से 8.10 लाख लोग भारत में आप्रवासी है जो कुल आप्रवासियों का 15.1 प्रतिशत है | पाकिस्तान से 9.18 लाख लोग आप्रवासी के रूप में रह रहे है जो कुल आप्रवासियों का 17.1 प्रतिशत है | इसके अलावा तिब्बत, भूटान, श्रीलंका, अफगानिस्तान, ईरान और म्यांमार के आप्रवासी भी शामिल है |

जहाँ भारत से उत्प्रवास का प्रश्न है ऐसा अनुमान है कि भारतीय डायस्पोरा के लगभग 1.25 करोड़ लोग है जो विश्व के लगभग 110 देशों में फैले हुए है | जिनमें मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका, दक्षिणी अफ्रीका, कनाडा, इंग्लैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, ऑस्ट्रेलिया, कैरिबियन द्वीप समूह तथा पश्चिमी एशिया के देशों  (संयुक्त अरब अमीरात, ईरान, कुवैत, साउदी अरब) आदि देशों में भारतीय लोग उत्प्रवास करते है |

 

प्रवास के परिणाम

प्रवास के अच्छे तथा बुरे दोनों ही प्रकार के परिणाम होते है | प्रवास के कारण किसी क्षेत्र में जीवन पर आर्थिक, जनांकिकीय, सामाजिक तथा पर्यावरणीय परिणाम होते है | जिनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है |

आर्थिक परिणाम

बहुत से लोग आर्थिक लाभ के लिए प्रवास करते हैं | प्रवास का सबसे बड़ा परिणाम भी आर्थिक लाभ ही है | देश के बाहर जाने वाले प्रवासी अधिक धन कमाते हैं  और उससे अपने परिवार की आर्थिक सहायता करते हैं | अंतर्राष्ट्रीय प्रवासियों द्वारा भेजी जाने वाली हुंडियाँ विदेशी विनिमय के प्रमुख स्त्रोतों में से एक है | विश्व बैंक की प्रवास और हुंडी तथ्य- पुस्तिका 2008 के अनुसार विदेशों से हुंडी प्राप्त करने वाले देशों में भारत का प्रथम स्थान है | 2007 में भारत ने हुंडियों के रूप में 27 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्राप्त किए थे | भारत के बाद चीन, मैक्सिकों, फिलीपीन्स, फ्रांस तथा स्पेन  आदि देश है जो प्रवास के कारण अच्छी विदेशी हुंडियाँ प्राप्त करते है | प्रवास के कारण निम्नलिखित आर्थिक परिणाम देखने कों मिलते हैं |

1)      पंजाब, केरल तथा तमिलनाडु अपने अपने राज्यों से विदेशों में गए प्रवासियों से महत्वपूर्ण राशि हुंडी के रूप में प्राप्त करते हैं | इन हुंडियों  से प्राप्त धन का प्रयोग भोजन, ऋणों की अदायगी, रोगों के इलाज, विवाह , बच्चों की शिक्षा, कृषीय निवेश, गृह निर्माण आदि कार्यों में किया जाता है |

2)      बिहार, उत्तरप्रदेश, ओडिसा, आन्ध्रप्रदेश तथा हिमाचलप्रदेश आदि राज्यों के हजारों निर्धन गाँवों की अर्थव्यवस्था के लिए ये हुंडियाँ जीवन दायक रक्त का काम करती हैं |

3)      पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तरप्रदेश में हरित क्रान्ति के कारण पूर्वी उत्तरप्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश तथा ओडिसा से बड़ी संख्या में कृषि मजदूरों ने प्रवास किया है | जिससे इन प्रदेशों में भी रोजगार की समस्या उत्पन्न होने लगी है |

4)      रोजगार की तलाश में महानगरों में बड़ी संख्या में अनियमित रूप से पलायन हो रहा है जिससे रोजगार के साथ- साथ भीड़ – भाड़ की समस्या और मलिन बस्तियों की समस्या भी पैदा हो गई है |

जनांकिकीय परिणाम

प्रवास से देश के अंदर जनसंख्या के वितरण में जनांकिकीय असंतुलन पैदा हो जाता है | ग्रामीण इलाकों से युवा आयु वर्ग वाले दक्ष और कुशल लोगों का नगरों की ओर प्रवास करने से ग्रामीण जनांकिकीय संघटन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है | उदाहरण के लिए उत्तराखंड, राजस्थान, मध्यप्रदेश और पूर्वी महाराष्ट्र से होने वाले बाह्य प्रवास ने इन राज्यों की आयु लिंग संरचना में गंभीर असंतुलन पैदा कर दिया है | इसी तरह के असंतुअलं उन राज्यों में भी उत्पन्न हो गए है जिनमें ये प्रवासी लोग जाकर बस जाते है |

सामाजिक परिणाम

1)      प्रवासी लोग सामाजिक परिवर्तन के अच्छे माध्यम होते है | क्योंकि ये नवीन प्रौद्योगिकी, परिवार , भोजन , बालिका शिक्षा, रीति रिवाज, आदि के संबंध में नए विचारों का प्रसार करते है |

2)      प्रवास से विविध संस्कृतियों का अंतमिश्रण होता है | जिससे संकीर्ण विचारों के भेदन तथा लोगों के मानसिक क्षितिज कों  विस्तृत करने में सहायता मिलती है |

3)      प्रवास के कुछ नकारात्मक परिणाम भी समाज में देखने कों मिलते है | प्रवास के कारण गुमनामी होती है |  जो व्यक्तियों में सामाजिक निर्वात और खिन्नता की भावना भर देती है | खिन्नता की सतत भावना लोगों कों अपराध और औषध दुरूपयोग (ड्रग्स लेना या दवाओं के द्वारा नशा करना ) जैसी असामाजिक क्रियाओं के जाल में फँसने के लिए अभिप्रेरित करती है |

4)      प्रवास में अलग –अलग  क्षेत्रों से लोग आते है उनकी भाषा, रीति रिवाज, धर्म आदि अलग होने से भाईचारे की भावना भी कम होती जा रही है |

पर्यावरणीय परिणाम

1)      बड़ी संख्या में लोग ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों की ओर प्रवास करते हैं | जिसके कारण लोगों का अति संकुलन नगरीय क्षेत्रों में  भीड़ भाड़  बढ़ जाती है | जो नगरों के सामाजिक और भौतिक अवसंरचना (आधारभूत ढाँचे) पर दबाव डालता है |

2)      प्रवास के कारण बढ़ी हुई जनसंख्या से मलिन बस्तियों तथा क्षुद्र कॉलोनियों का विस्तार होता है |  जिससे नगरीय पर्यावरण प्रदूषित होता है |

3)      भीड़ भाड़ से प्राकृतिक संसाधनों का अति शोषण होता है | भौम जल का अधिक उपयोग होने से भौम जल का स्तर तेजी से नीचे गिर रहा है | जल की कमी होती है |

4)      इनके अतिरिक्त जल प्रदूषण, भूमि प्रदूषण, वायु प्रदूषण, वाहित मल के निपटान तथा ठोस कचरे के प्रबंधन जैसी अनेकों गम्भीर समस्याएँ पैदा हो जाती है |

प्रवास के अन्य परिणाम

प्रवास महिलाओं के जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव डालता है | ग्रामीण इलाकों में पुरुष रोजगार की तलाश में अपनी पत्नियों कों छोड़कर नगरों की ओर प्रवास करते है | जिससे महिलाओं पर अत्यधिक शारीरिक दबाव पड़ता है | शिक्षा एवं रोजगार के लिए स्त्रियों द्वारा प्रवास उनकी स्वायत्तता और अर्थव्यवस्था में उनकी भूमिका कों बढता है | परन्तु उन्हें सुभेद्य भी बना देता है |

            प्रवास की प्रक्रिया के कारण स्त्रोत प्रदेश (उद्गम क्षेत्र ) कों सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि प्रवासियों के परिवार कों हुंडियों के रूप में धन मिलता है | परन्तु इसका सबसे बड़ा दोष यह है कि स्त्रोत प्रदेश (उद्गम क्षेत्र ) से कुशल व्यक्तियों का अभाव हो जाता है |

विश्व स्तर पर कुशलता का महत्व बढ़ गया है और वैश्विक बाजार वास्तव में कुशलता का बाजार बन गया है | गत्यात्मक औद्योगिक अर्थव्यवस्थाएँ गरीब प्रदेशों से उच्च प्रशिक्षित व्यवसायिकों कों सार्थक अनुपात में प्रवेश दे रही है  और भर्ती कर रही हैं | परिणाम स्वरूप स्त्रोत प्रदेश (उद्गम क्षेत्र ) के  वर्तमान में चल रहे अल्पविकस को बल मिलता है |

 


Friday, October 29, 2021

Population of India : Distribution

 

जनसंख्या : वितरण, घनत्व, वृद्धि और संघटन

कक्षा- 12 (भूगोल)

भारत की जनसंख्या

            भारत विश्व के अधिकतम जनसंख्या वाले देशों में से एक है | भारत विश्व के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 2.4 प्रतिशत भाग पर विस्तृत है जबकि यहाँ पर विश्व की 17.5 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है |

            सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 121.02 करोड़ है | जनसंख्या के हिसाब से भारत चीन के बाद दूसरा स्थान है | भारत की कुल जनसंख्या उत्तर अमेरिका, दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की कुल जनसंख्या से भी अधिक है |

 

भारत की विशाल जनसंख्या का प्रभाव

विशाल जनसंख्या के कारण बहुत अधिक समस्याएँ सामने आती है | जो निम्नलिखित हैं |

1)      प्राय: यह तर्क दिया जाता है कि इतनी बड़ी जनसंख्या निश्चित तौर पर देश के सीमित संसाधनों पर दबाव डालती है |

2)      देश में अनेक सामाजिक आर्थिक समस्याओं के लिए उत्तरदायी है |

3)      जनसंख्या के अधिक बोझ के कारण गरीबी एक विकराल रूप धारण कर रही है |

4)      विशाल जनसंख्या ने पर्यावरण संबंधी कई समस्याएँ उत्पन्न कर दी हैं |

 

भारत में जनसंख्या की गणना (जनगणना)  या जनसंख्या के आँकड़ों के स्त्रोत

भारत में जनसंख्या से संबंधित आँकडों कों प्रति दस वर्ष के बाद होने वाली जनगणना के द्वारा एकत्रित किए जाते है | भारत में पहली जनगणना 1872 ई० में हुई थी | लेकिन यह पूर्ण नहीं थी | भारत की पहली सम्पूर्ण जनगणना  1881 ई० में हुई थी |  हमारे देश की अंतिम जनगणना सन् 2011 में हुई थी | अब तक कुल 14 संपूर्ण जनगणना हो चुकीं है | अगली (पंद्रहवी) जनगणना सन् 2021 में होनी है |  

 

भारत में जनसंख्या वितरण

सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल  जनसंख्या 121.02 करोड़ है | भारत की इतनी विशाल जनसंख्या समान रूप से देश में वितरित नहीं है बल्कि असमान रूप से देश के विभिन्न भागों में वितरित है |

देश के विशाल आकार वाले राज्यों की जनसंख्या कों देखते है तो पता चलता है कि उत्तरप्रदेश भारत में सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य है  यहाँ  सन् 2011 की जनगणना के अनुसार 19.95 करोड़ लोग रहते हैं | 11.23 करोड़ जनसंख्या के साथ महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर है | बिहार में 10.38 करोड़ जनसंख्या निवास करती है | इसके बाद पश्चिम बंगाल में 9.13 करोड़ तथा आंध्रप्रदेश की जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 8.46 करोड़ थी | ये पाँच बड़े राज्यों में देश की लगभग 50 % (आधी) जनसंख्या पाई जाती है | देश के दस राज्यों उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र , बिहार,बंगाल पश्चिम बंगाल आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश, राजस्थान कर्नाटक तथा गुजरात भारत की लगभग 76 प्रतिशत जनसंख्या रहती है |  

            जबकि विशाल आकार होते हुए भी कुछ राज्य ऐसे है जिनमें बहुत ही कम जनसंख्या रहती है | जैसे सन् 2011 की जनगणना के अनुसार ही जम्मूकश्मीर में देश की केवल 1.04 %, अरुणाचलप्रदेश  में देश की  0.84% तथा उत्तराखंड में  केवल 0.83 % जनसंख्या ही निवास करती है | क्षेत्रफल की हिसाब से देश के सबसे बड़े राज्य राजस्थान में कुल जनसंख्या का केवल 5.67% हिस्सा ही रहता है |

            सिक्किम सबसे कम जनसंख्या वाला राज्य है जहाँ लगभग 6 लाख लोग ही रहते है | जो देश की जनसंख्या का केवल 0.05% जनसंख्या ही है | इसके अलावा अधिकाशं उत्तरी पूर्वी राज्यों जैसे नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, त्रिपुरा तथा अरुणाचल प्रदेश राज्यों में देश की बहुत ही कम जनसंख्या निवास करती है |

  

केन्द्र शासित प्रदेशों में दिल्ली में सबसे अधिक जनसंख्या मिलती है | जबकि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह तथा लक्षद्वीप समूह में बहुत ही कम संख्या में लोग रहते हैं |

 

 

जनसंख्या का विषम स्थानिक वितरण जनसंख्या और देश के भौतिक, समाजिक, आर्थिक और ऐतिहासिक कारकों के बीच घनिष्ठ संबंध  

या

भारत में जनसंख्या के असमान वितरण के कारण

भारत में जनसंख्या का वितरण असमान है | जनसंख्या का यह विषम स्थानिक वितरण देश की जनसंख्या और देश के भौतिक (भौगोलिक ), समाजिक, आर्थिक और ऐतिहासिक कारकों के बीच घनिष्ठ संबंध प्रकट करता है |  ये कारक जनसंख्या के वितरण कों अत्यधिक प्रभावित करते है | इनका वर्णन निम्न प्रकार से है |

 

जनसंख्या के वितरण कों प्रभावित करने वाले भौतिक कारक

भौतिक कारकों में धरातल, जलवायु तथा जल की उपलब्धता आदि प्रमुख है | ये कारक जनसंख्या के वितरण कों काफी प्रभावित करते हैं | जैसे भारत के उत्तरी मैदान, डेल्टाओं और तटीय मैदानों में जनसंख्या का अनुपात दक्षिणी तथा मध्य भारत के राज्यों के आंतरिक जिलों में अधिक है क्योंकि मैदानी भाग पर लोग अधिक रहना पसंद करते है |

            हिमालय, उत्तरी-पूर्वी राज्यों में विरल जनसंख्या पाई जाती है | जो की पर्वतीय क्षेत्रों में शामिल है | इसी तरह राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्रों में भी विरल जनसंख्या मिलती है |

हिमालय पर्वतीय राज्यों में खास तौर पर हिमाचल तथा जम्मू कश्मीर में विषम जलवायु के कारण बहुत ही कम लोग रहते है | इसी तरह राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्रों में भी जलवायु की विषमता  तथा जल की कमी लोगों के रहने के उपयुक्त स्थान नहीं उपलब्ध होने देती है अत: वहाँ भी जनसंख्या विरल है |

कुछ पठारी क्षेत्रों में भी भौतिक कारकों के करण जैसे जल की की कमी से जनसंख्या अपेक्षाकृत कम मिलती है |

            इन क्षेत्रों में नहरों के विकास तथा आर्थिक विकास संबंधी कर उपलब्ध कराने के बाद जनसंख्या का अनुपात उच्च होता जा रहा है | जैसे राजस्थान में  इंदिरा गाँधी नहर से सिंचाई की व्यवस्था के बढ़ने और झारखण्ड के छोटा नागपुर के पठार में खनिजों एवं ऊर्जा के अपार भण्डारों के कारण इन राज्यों में मध्यम से उच्च जनसंख्या अनुपात मिलता है |

 

जनसंख्या के वितरण कों प्रभावित करने वाले समाजिक, आर्थिक और ऐतिहासिक कारक

इन कारकों में स्थाई कृषि उद्भव और विकास, मानव बस्ती के प्रतिरूप, परिवहन जाल तंत्र का विकास, औद्योगिकरण और नगरी करण महत्वपूर्ण हैं |

समान्यत: नदी घाटियों के मैदानों, तथा तटीय क्षेत्रों में अधिक जनसंख्या पाई जाती है | क्योंकि इन इलाकों में मानव बस्तियों के आरम्भिक इतिहास और परिवहन जाल तंत्र के विकास के कारण जनसंख्या का सांद्रण  उच्च बना हुआ है |

दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, बंगलौर, पुणे, अहमदाबाद, चेन्नई और जयपुर के नगरीय क्षेत्र औद्योगि विकास तथा नगरीकरण के कारण बड़ी संख्या में ग्रामीण लोगों कों अपनी और आकृषित कर रहे है | इसलिए इन क्षेत्रों में जनसंख्या का सांद्रण उच्च बना हुआ है |  

Sunday, October 10, 2021

Biosphere, Ecology, Ecological System, Types of Biomes and cycles in biosphere

 अध्याय 15

पृथ्वी पर जीवन

कक्षा 11वीं (भूगोल)

जैव मंडल ( Biosphere )

पृथ्वी के पर्यावरण का वह भाग जहाँ पर जीवन पाया जाता है जैवमंडल कहलाता है | यह पृथ्वी के पर्यावरण के तीन मण्डलों स्थलमंडल, वायुमंडल तथा जलमंडल के मिलन स्थल होता है | इस मंडल में तीनों मंडलों के गुण विद्यमान होते है |  इसमें सभी जीवित जीव पाए जाते हैं |

जैवमंडल का महत्व

जैवमंडल हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है | क्योंकि पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवधारी जिसमें मानव सभी प्रकार के पौधे जन्तु तथा सभी प्रकार के सूक्ष्म जीव भी इसी मंडल में रहकर पारस्परिक क्रिया करतें है | जैव मंडल और इसके घटक अन्य प्राकृतिक घटक जैसे भूमि, जल व मिट्टी के साथ पारस्परिक क्रिया करते हैं | ये वायुमंडल के तत्वों जैसे तापमान, वर्षा, आर्द्रता व सूर्य के प्रकाश से प्रभावित होते है | पर्यावरण के जैविक घटकों का स्थल, जल तथा वायु के साथ पारस्परिक आदान–प्रदान होता रहता है | जो जीवों के जीवित रहने, बढ़ने व विकसित होने में सहायक होता है |

पारिस्थितिकी (Ecology)                    

            इकोलॉजी (Ecology) शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों Oikos (ओइकोस) तथा logy (लॉजी) से मिलकर बना है | जिसमें ‘ओइकोस’ का शाब्दिक अर्थ ‘घर’ तथा ‘लॉजी’ का अर्थ विज्ञान या अध्ययन है | इस प्रकार इकोलॉजी का शाब्दिक अर्थ पृथ्वी पर सभी प्रकार के जीवों (पौधों, मनुष्यों, जंतुओं तथा सूक्ष्म जीवों ) के घर के रूप में अध्ययन करना है |

जर्मन प्राणीशास्त्री अर्नस्ट हैक्कल (Ernst Haeckel) ने पारिस्थितिकी से संबंधित ओइकोलॉजी (Oekologie) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम सन् 1869 में किया था | इसलिए ये पारिस्थितिकी के ज्ञाता के रूप में जाने जाते हैं |

जैवमंडल में रहने वाले सभी वनस्पति जगत तथा प्राणी जगत के जीव  एक दूसरे के साथ अंतक्रिया करते हुए एक दूसरे कों प्रभावित करते है | इसके साथ ही ये अपने भौतिक जीवन कों भी प्रभावित करते है | पर्यावरण तथा जीवों के बीच होने वाली इन पारस्परिक क्रियाओं के अध्ययन कों ही पारिस्थितिकी (Ecology) कहते है |

पर्यावरण में पाए  जाने वाले जैविक घटकों (जीवधारियों) तथा अजैविक  घटकों (भौतिक पर्यावरण के तत्वों ) के  पारस्परिक सम्पर्क के अध्यन्न कों ही पारिस्थितिकी विज्ञान कहते है | अत: जीवधारियों का आपस में व उनका भौतिक पर्यावरण से अंतर्सबंधों का वैज्ञानिक अध्ययन ही पारिस्थितिकी है |

पारितंत्र (Ecological System)

किसी क्षेत्र विशेष में किसी विशेष समूह के जीवधारियों का अजैविक तत्वों  (भूमि, जल अथवा वायु ) से ऐसा अंतर्संबंध जिसमें उर्जा प्रवाह व पोषण श्रंखलाएं स्पष्ट रूप से समायोजित हो, उसे पारितंत्र कहा जाता है |

आवास (Habitat)

पारिस्थिति के संदर्भ में पर्यावरण के भौतिक तथा रासायनिक कारकों के योग को आवास कहते है |

 पारिस्थितिक अनुकूलन (Ecological Adaptation)

विभिन्न प्रकार के पर्यावरण तथा विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों में भिन्न प्रकार के पारितंत्र पाए जाते है , जहाँ अलग-अलग प्रकार के पौधे व जीव-जन्तु विकास करते है | जिस पर्यावरण में रहकर जीव विकास की प्रक्रिया करते है उसी पर्यावरण के अभ्यस्त हो जाते है |  इस प्रक्रमण (प्रक्रिया ) कों पारिस्थितिक अनुकूलन कहते है |

पारितंत्र की संरचना

पारितंत्र की संरचना का संबंध परितंत्र में पाए जाने वाले पौधों तथा जंतुओं की प्रजातियों से होता है | इन पारितंत्र की संरचना कों समझने के लिए हमें इसके घटकों के बारे में जानना अनिवार्य है  | जिनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है |

पारितंत्र के घटक (कारक)  

पौधों और जंतुओं कों परितंत्र के घटक कहते है | जो अजैविक तथा जैविक घटकों के में वर्गीकृत किए जाते है |

अजैविक कारक  (Abiotic Factors )

इन्हें भौतिक कारक भी कहते है | क्योंकि ये भौतिक पर्यावरण का प्रतिनिधित्व करते हैं | इन कारकों में सूर्य का प्रकाश, वर्षा, तापमान, आर्द्रता तथा मृदा की स्थिति के साथ साथ अकार्बनिक तत्व जैसे कार्बन डाईऑक्साइड, जल, नाइट्रोजन, कैल्सियम, फॉस्फोरस तथा पोटाशियम आदि शामिल है |   

जैविक कारक (Biotic Factors)

जैविक कारकों या घटकों में सभी प्रकार के जीव शामिल किए जाते है | जिनमें उत्पादक, प्राथमिक उपभोक्ता, द्वितीयक उपभोक्ता तृतीयक उपभोक्ता तथा अपघटक शामिल है |

उत्पादक (Primary Producers)

पौधे प्राथमिक उत्पादक होते है | क्योंकि ये सूर्य के प्रकाश का उपयोग करके प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के द्वारा अपना भोजन स्वयं निर्मित (उत्पादन) करते है | इसलिए पौधों कों उत्पादक कहते है | पौधें अपना आहार स्वयं बनाते है इसलिए ये स्वपोषित भी कहलाते है | ये भूतल पर मानव सहित समस्त जंतुओं के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आहार एवं ऊर्जा की आपूर्ति के प्रमुख स्त्रोत है |

प्राथमिक उपभोक्ता (Primary Consumer)

पारितंत्र के वे घटक जो अपने आहार के लिए प्राथमिक उत्पादकों  (हरे पौधों) पर निर्भर रहते है | उन्हें प्राथमिक उपभोक्ता कहते है | सभी शाकाहारी जीव इस वर्ग में शामिल किए जाते है | जैसे हिरण, चूहें, गाय, बकरी तथा हाथी आदि |

द्वितीयक उपभोक्ता (Carnivores)

वे जीव जो मांसाहारी होते है उन्हें द्वितीयक उपभोक्ता कहा जाता है | ये जीव प्राथमिक उपभोक्ता (छोटे जीवों) कों अपने आहार के रूप में ग्रहण करते है | इस वर्ग में बाघ, शेर, साँप आदि जीवों कों शामिल लिया जा  सकता है |

तृतीयक उपभोक्ता (सर्वाहारी ) चरम स्तर के माँसाहारी (Top Carnivores)

वे मांसाहारी जीव जो अपने भोजन के लिए दूसरे मांसाहारी जीवों पर निर्भर होते है उन्हें  तृतीयक उपभोक्ता (सर्वाहारी ) चरम स्तर के माँसाहारी कहते है | जैसे बाज, नेवला, आदि |

अपघटक (Decomposers)

अपघटक वे सूक्ष्म जीव होते हैं जो मृत जीवों  पर निर्भर रहते है उन्हें अपघटक या वियोजक कहा जाता है | ये जीव मृत पौधों, जन्तुओं तथा जैविक पदार्थों  कों अपघटित करते है और उन्हें जटिल कार्बनिक पदार्थों से सरल अकार्बनिक पदार्थों में बदल देते हैं | इस वर्ग में सूक्ष्म जीव जैसे बैक्टीरिया तथा कवक (फंगस) शामिल किए जाते हैं |

जीवोम या बायोम के प्रकार (Types of Biomes )

वन बायोम

मरुस्थलीय बायोम

घासभूमि बायोम

जलीय बायोम

उच्च प्रदेशीय बायोम

जल चक्र

जल एक पुनः पूर्ति योग्य संसाधन है | जल एक चक्र के रूप में महासागर से धरातल तथा धरातल से महासागर तक पहुँचता है | जल इस प्रकार चक्र के द्वारा पृथ्वी पर, पृथ्वी के नीचे व वायुमंडल में पृथ्वी के ऊपर संचलन करता है | जल के इसी संचलन कों जलीय चक्र या जल चक्र कहते है | जलीय चक्र पृथ्वी के जलमंडल में विभिन्न रूपों अर्थात गैस, तरल (द्रव) तथा ठोस के रूप में जल का परिसंचरण है | इसका संबंध महासागरों, वायुमंडल, भूपृष्ठ, अध:स्तल और जीवों के बीच जल के सतत आदान प्रदान से है |  जल चक्र कों हम  निम्न प्रकार से समझ सकते है |

महासागरों में उपस्थित जल वाष्पीकरण की प्रक्रिया के द्वारा जलवाष्प के रूप में वायुमंडल में पहुँचता है | वायु के ठंडा होने पर ये जलवाष्प संघनित होकर  आर्द्रताग्राही कणों पर बूंदों के रूप में जमने लगती है जिससे बादलों का निर्माण होता है | बादलों में उपस्थित जल वर्षण के विभिन्न रूपों (वर्षा, ओला वृष्टि, हिमपात आदि  के रूप ) में पृथ्वी के धरातल पर पहुँचता है |

            इनमें से अधिकांश जल वाही जल के रूप में नदियों के द्वारा वापस महासागरों में आकार मिल जाता है | जल का एक हिस्सा हिम के रूप में जमा होता है वो भी हिम के पिघलने पर नदियों के द्वारा महासागरों में आ जाता है | कुछ जल भूमिगत (पृथ्वी के सतह के नीचे)  कुछ गहराई में जाकर जमा हो जाता है | उसमें से कुछ जल भूमिगत नदियों के द्वारा महासागरों में या अन्य जल स्त्रोतों तक पहुँच जाता है |

            नदियों हिमनदियों से जल पुनः वाष्पीकृत होता है और वायुमंडल में पहुँच जाता है | भूमिगत जल भी पेड़ पौधों के द्वारा  अवशोषित किया जाता है जिसे बाद में इनके द्वारा वाष्पोत्सर्जन की क्रिया के द्वारा वायुमंडल में छोड दिया जाता है |

इस प्रकार यह चक्र चलता रहता है और जल चक्र के द्वारा महासागर से धरातल तथा धरातल से महासागर तक पहुँचता है |

कार्बन चक्र

 कार्बन जैवमंडल में पाए जाने वाले  समस्त जीवन का आधार है और समस्त कार्बन यौगिक का मूल, तत्व है | कार्बन चक्र, कार्बनडाइऑक्साइड का परिवर्तित रूप है जो पोधों में प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया द्वारा कार्बनडाइऑक्साइड का यौगिककरण आरम्भ होता है | इस प्रक्रिया से काबोहाईड्रेट्स व ग्लूकोस बनता है, जो कार्बनिक यौगिक : जैसे –स्टार्च, सैल्यूलोस, सूक्रोज के रूप में पौधों में संचित हो जाता है | काबोहाईड्रेट्स का कुछ भाग सीधे पौधों की जैविक प्रक्रिया में प्रयुक्त होते है और शेष पौधों के उत्तकों में  संचित हो जाते हैं | पौधे या तो शाकाहारी पौधों का जीवन बनते है या सूक्ष्म जीवों द्वारा विघटित हो जाते है | शाकाहारी उपभोग किए गए काबोहाईड्रेट्स कों कार्बनडाइऑक्साइड में परिवर्तित करते हैं और श्वसन क्रिया द्वारा वायुमंडल में छोडते हैं | इनमें शेष काबोहाईड्रेट्स का जंतुओं के मरने पर सूक्ष्म जीव अपघटन करते हैं | सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा काबोहाईड्रेट्स ऑक्सीजन प्रक्रिया द्वारा कार्बनडाइऑक्साइड में परिवर्तित होकर पुनः वायुमंडल में आ जाती है|

ऑक्सीजन चक्र

ऑक्सीजन  जीवन के अनिवार्य है, क्योंकि हम साँस  लेते समय ऑक्सीजन का प्रयोग करते हैं | यह प्रकाश संश्लेषण का मुख्य उत्पाद है| ऑक्सीजन का चक्रण बहुत ही जटिल प्रक्रिया है क्योंकि यह अनेक रासायनिक तत्वों तथा मिश्रणों के रूप में होता है | यह अन्य कई के साथ मिलकर ऑक्साइड का निर्माण कर्ता है | जल अणुओं (H2O)के विघटन से ऑक्सीजन उत्पन्न होती है और पौधों की वाष्पोत्सर्जन प्रक्रिया के दौरान भी यह वायुमंडल में पहुँचती है|

 

नाइट्रोजन चक्र

नाइट्रोजन हमारे वायुमंडल की संरचना का प्रमुख घटक है| वायुमंडलीय गैसों के 78.08 प्रतिशत भाग में नाइट्रोजन ही है | विभिन्न कार्बनिक यौगिक : जैसे – एमिनो एसिड, न्यूक्लिक एसिड, विटामिन व वर्णक (Pigment) आदि में यह एक महत्वपूर्ण घटक है | नाइट्रोजन चक्र को वायुमंडलीय नाइट्रोजन के मिट्टी ,जल,वायु तथा जीवों के बीच निरंतर चक्रण तथा वायुमंडल में इसकी वापसी के रूप परिभाषित किया जाता है | इसे प्रत्यक्ष गैसीय रूप में मृदा जीवाणु तथा ब्लू ग्रीन एल्गी जैसे जीव ही ग्रहण कर सकते हैं | सामान्यत: इसे यौगिकीकरण (Fixation) द्वारा ही प्रयोग किया जाता है | नाइट्रोजन का 90 प्रतिशत भाग जैविक है जिसे यौगिकीकरण द्वारा ही ग्रहण कर सकते हैं | स्वतंत्र नाइट्रोजन का प्रमुख स्रोत मिट्टी के सूक्ष्म जीवाणुओं की क्रिया व संबंधित पौधों की जड़ें व रंध्र वाली मृदा है, जहाँ से यह वायुमंडल में पहुंचती है | वायुमंडल में भी बिजली चमकने (Lighting) व कोसमिक रेडियेशन (Cosmic Radiation) द्वारा नाइट्रोजन का यौगिकीकरण होता है | वायुमंडलीय नाइट्रोजन के यौगिक रूप में उपलब्ध होने से हरे पौधों में इसका स्वांगीकरण (Assimilation ) होता है | पौधों कों शाकाहारी जीव खाते है जिससे नाइट्रोजन का कुछ भाग उनके शरीर में चला जाता है | इसके बाद मृत पौधों तथा जीवों के नाइट्रोजनी अपशिष्ट मिट्टी में उपस्थित बैक्टीरिया द्वारा नाइट्रेट परिवर्तित हो जाते है | कुछ जीवाणु नाइट्राइट को नाइट्रेट में परिवर्तित करने की क्षमता रखते हैं व पुनः हरे पौधों द्वारा नाइट्रोजन-यौगिकीकरण हो जाता है | कुछ अन्य प्रकार के जीवाणु इन नाइट्रेट कों पुन स्वतंत्र नाइट्रोजन में परिवार्तित करने में सक्षम होते हैं और इस प्रक्रिया को डी-नाइट्रीकरण (De-nitrification) कहते है |

प्रश्न : निम्नलिखित में से कौन सा जैवमंडल में सम्मलित है ?

अ)    केवल पौधे

आ)  केवल प्राणी 

इ)       सभी जैव तथा अजैव जीव

ई)       सभी जीवित जीव 

उत्तर : सभी जीवित जीव 

प्रश्न : उष्णकटिबंधीय घास के मैदान निम्न में से किस नाम से जाने जाते है ?

(क).प्रेयरी

(ख).                        स्टैपी

(ग). सवाना

(घ). इनमें से कोई नहीं

उत्तर :  सवाना

प्रश्न : चट्टानों में पाए जाने वाले लोहांश के साथ ऑक्सीजन मिलकर निम्नलिखित में से क्या बनाती है ?

(क).आयरन कार्बोनेट

(ख).                        आयरन ऑक्साइड

(ग). आयरन नाइट्राइट

(घ). आयरन  सल्फेट

उत्तर :  आयरन ऑक्साइड

प्रश्न : प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया के दौरान, प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाई ऑक्साइड जल के साथ मिलकर क्या बनाती है ?

(क).प्रोटीन

(ख).                        कार्बोहाइड्रेट्स

(ग). एमिनो एसिड

(घ). विटामिन

उत्तर : कार्बोहाइड्रेट्स